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फैसला: समायोजित शिक्षामित्र को 25 जुलाई तक अध्यापक का वेतन मिलेगा

उत्तर प्रदेश के 1.37 लाख समायोजित शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक सहायक अध्यापक की सैलरी दी जाएगी। सचिव बेसिक शिक्षा परिषद संजय सिन्हा ने शनिवार को इसका पत्र सभी बेसिक शिक्षा अधिकारी और वित्त एवं...

वरिष्ठ संवाददाता इलाहाबादSun, 13 Aug 2017 06:39 AM
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फैसला: समायोजित शिक्षामित्र को 25 जुलाई तक अध्यापक का वेतन मिलेगा

उत्तर प्रदेश के 1.37 लाख समायोजित शिक्षामित्रों को 25 जुलाई तक सहायक अध्यापक की सैलरी दी जाएगी। सचिव बेसिक शिक्षा परिषद संजय सिन्हा ने शनिवार को इसका पत्र सभी बेसिक शिक्षा अधिकारी और वित्त एवं लेखाधिकारियों को जारी कर दिया।

समायोजन निरस्त होने के बाद जिलों में वेतन भुगतान बाधित हो गया था। शिक्षामित्रों के साथ ही दूसरे शिक्षकों को भी सैलरी नहीं मिल रही है। कई अधिकारियों ने सचिव से वेतन भुगतान के लिए मार्ग दर्शन मांगा था। सचिव के पत्र के बाद जुलाई महीने के वेतन का रास्ता साफ हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में 1.78 लाख शिक्षामित्रों की सहायक अध्यापक के रूप में नियमितीकरण को सिरे से गैरकानूनी ठहराया था। साथ ही भारी राहत देते हुए उन्हें तत्काल हटाने से मना कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि शिक्षामित्रों को शिक्षक भर्ती की औपचारिक परीक्षा में बैठना होगा और उन्हें लगातार दो प्रयासों में यह परीक्षा पास करनी होगी। शिक्षामित्रों ने हार न मानते हुए पुनर्विचार याचिका दायर करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा था कि अब राज्य सरकार चाहे तो वह नियम बनाकर शिक्षामित्रों को पूर्ण अध्यापक का दर्जा दे सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षामित्र आंदोलन पर चले गए थे लेकिन यूपी सरकार के आश्वासन के बाद वे काम पर लौटे आये थे।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उत्तर प्रदेश को चार साल से मथ रहे इस विवाद की समाप्ति हो गई। जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और यू.यू. ललित की विशेष पीठ ने 25 जुलाई को यह आदेश देते हुए कहा था कि शिक्षामित्रों के नियमितीकरण को गैरकानूनी ठहराने वाले 2014 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं है। राज्य को आरटीई एक्ट की धारा 23(2) के तहत शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यताओं को घटाने का कोई अधिकार नहीं है। आरटीई की बाध्यता के कारण राज्य सरकार ने योग्यताओं में रियायत देकर शिक्षामित्रों को नियुक्ति दी थी। पीठ ने कहा कि कानून के अनुसार ये कभी शिक्षक थे ही नहीं, क्योंकि ये योग्य नहीं थे।