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बनारस : वैज्ञानिकों ने पंगास कैटफिश के जेनेटिक बदलावों का शुरू किया अध्ययन

केंद्रीय मत्य विकास प्रधिकरण के चार वैज्ञानिक छह दिन के दौरे पर पहुंचे बनारस अत्याधुनिक उपकरणों से लैस टीम ने जिले के छह तालाबों पर किया परीक्षण केंद्रीय मत्य विकास प्रधिकरण के वैज्ञानिकों...

बनारस : वैज्ञानिकों ने पंगास कैटफिश के जेनेटिक बदलावों का शुरू किया अध्ययन
प्रमुख संवाददाता,वाराणसीThu, 15 Oct 2020 10:57 AM
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  • केंद्रीय मत्य विकास प्रधिकरण के चार वैज्ञानिक छह दिन के दौरे पर पहुंचे बनारस
  • अत्याधुनिक उपकरणों से लैस टीम ने जिले के छह तालाबों पर किया परीक्षण

केंद्रीय मत्य विकास प्रधिकरण के वैज्ञानिकों की टीम ने कारोबारी दृष्टि से तालाबों में सबसे अधिक पाली जाने वाली पंगास कैटफिश (पंगेसियर या पयासी) में आ रहे जेनेटिक बदलावों पर बुधवार से बनारस में अध्ययन शुरू कर दिया। बुधवार को ही बनारस पहुंचे चार वैज्ञानिकों के एक दल ने पहले दिन जिले के आधा दर्जन तालाबों पर जिंदा पयासी की चीर-फाड़ की। छह दिवसीय दौरे पर आई टीम अध्ययन के लिए वाराणसी मंडल के सभी जिलों में जाएगी।

डीएनए टेस्ट के लिए बीस दिन से 90 दिन तक की उम्र वाली मछलियों के नमूने लिए गए

प्राधिकरण की लखनऊ इकाई से आई टीम ने बरियासनपुर, बनियापुर और जयापुर में आधा दर्जन तालाबों में जिंदा मछलियों पर अध्ययन किया। अत्याधुनिक उपकरणों से लैस टीम ने मछलियों के रक्त परीक्षण के बाद उनके अंदरूनी अंगों की बनावट में हो रहे बदलावों पर भी गौर किया। बीस दिन से लेकर 90 दिन की उम्र तक वाली मछलियों के डीएनए टेस्ट के लिए नमूने भी जुटाए गए। इन नमूनों के परीक्षण से पंगास की प्रकृति में हो रहे परिवर्तनों का पता लगेगा।

वैज्ञानिकों के इस दल का नेतृत्व डॉ. विकास साहू कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के साथ कोऑर्डिनेट कर रहे बुल फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन के सूत्रों के अनुसार परीक्षण में पंगास कैटफिश की रोग प्रतिरोधक क्षमता और तालाब के पानी में डाले जाने वाले कीटनाशकों का उनपर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है।

वियतनाम से भारत आई थी पंगास कैटफिश 

वियतनाम की मेकांग नदी डेल्टा की मूल निवासी पंगास कैट फिश को कारोबार की दृष्टि से तालाबों में पालने के लिए 1995-96 में बांग्लादेश के रास्ते भारत लाया गया था। मीठे पानी में पलने वाली दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी प्रजाति की मछलियों को पूर्वांचल में पालने के लिए आंध्र प्रदेश से लाया गया। कम से कम ऑक्सीजन में भी आसानी से पलने और तेजी से विकसित होने के गुण के कारण ये मछलियां मत्स्यपालकों की प्रिय मछली मानी जाती है। चाइनीज कार्प की भांति पंगास कैटफिश भी आसानी से कृत्रिम भोजन ग्रहण कर लेती है।

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