ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेशनिर्दोष को फंसाने के लिए महिला का यौन हमले की झूठी कहानी बनाना असामान्य : हाईकोर्ट

निर्दोष को फंसाने के लिए महिला का यौन हमले की झूठी कहानी बनाना असामान्य : हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना किसी महिला के लिए असामान्य होगा।

निर्दोष को फंसाने के लिए महिला का यौन हमले की झूठी कहानी बनाना असामान्य : हाईकोर्ट
Dinesh Rathourविधि संवाददाता ,प्रयागराज।Fri, 02 Jun 2023 06:42 PM
ऐप पर पढ़ें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी निर्दोष व्यक्ति को फंसाने के लिए यौन उत्पीड़न की शिकार होने की झूठी कहानी बनाना किसी महिला के लिए असामान्य होगा। हमारे देश में यौन उत्पीड़न की शिकार महिला किसी को झूठा फंसाने के बजाय चुपचाप सहती रहेगी। एक रेप पीड़िता का कोई भी बयान एक महिला के लिए बेहद अपमानजनक अनुभव होता है और जब तक वह यौन अपराध की शिकार नहीं होती, तब तक वह असली अपराधी के अलावा किसी और को दोष नहीं देगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने 17 वर्षीय लड़की के साथ रेप के आरोपी आशाराम को जमानत देने से इनकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि भारत में कोई महिला किसी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से रेप या यौन उत्पीड़न में मुक़दमे नहीं फंसाएगी। न्यायालय को पीड़िता के साक्ष्य की सराहना करते समय देश में विशेष रूप से ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि भारत में जिन महिलाओं ने यौन आक्रामकता का अनुभव किया है, वे किसी पर झूठा आरोप लगाने की बजाय चुपचाप सहन करती हैं।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी 22 अगस्त 2022 को नाबालिग लड़की को जबरन एक सूनसान जगह पर ले गया, जहां उसने सहमति के बिना उसका यौन शोषण किया। घटना के बारे में पुलिस में शिकायत करने की धमकी देने के बाद अगले दिन उसने उसे उसके गांव के बाहर छोड़ दिया। एसपी संभल के हस्तक्षेप के बाद 31 अगस्त 2022 को आईपीसी और पोक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत राजपुरा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया। बचाव पक्ष का तर्क था कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयान में विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया है। इसके अलावा मेडिकल जांच रिपोर्ट में कोई चोट नहीं बताई गई है। 

कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत दर्ज पीड़िता के बयानों में पाया कि उसने स्पष्ट रूप से आरोपी पर उसे जबरन कैद करने और रेप करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने मेडिकल जांच के संबंध में बचाव पक्ष की दलील को खारिज कर दिया। साथ ही ग्रामीण भारत में प्रचलित मूल्यों पर विचार करते हुए कहा कि जब तक अन्यथा सिद्ध न हो जाए, यौन हमले की पीड़िता वास्तविक अपराधी के अलावा किसी और पर आरोप नहीं लगाएगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उक्त टिप्पणियां इस जमानत अर्जी के निर्धारण की सीमा तक सीमित हैं और किसी भी तरह मामले की योग्यता पर अभिव्यक्ति के रूप में नहीं मानी जाएंगी। ट्रायल कोर्ट पेश किए जाने वाले सबूतों के आधार पर अपने स्वतंत्र निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र होंगी।


 
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें