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हाफिज अनवर साल के 360 दिन रखते हैं रोजा, लॉकडाउन का पालन बताते हैं इबादत

उत्तर प्रदेश के अमरौधा जिले के हाफिज हाजी अनवर साल के 360 दिन रोजा रखते हैं। यह क्रम पिछले नौ सालों से चला आ रहा है। वह रमजान माह में ही नहीं हर दिन लॉकडाउन जैसे कड़े नियमों का पालन कर रहे हैं। उनका...

हाफिज अनवर साल के 360 दिन रखते हैं रोजा, लॉकडाउन का पालन बताते हैं इबादत
उपदेश पांडेय, कानपुर देहात |Sat, 25 Apr 2020 08:50 AM
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उत्तर प्रदेश के अमरौधा जिले के हाफिज हाजी अनवर साल के 360 दिन रोजा रखते हैं। यह क्रम पिछले नौ सालों से चला आ रहा है। वह रमजान माह में ही नहीं हर दिन लॉकडाउन जैसे कड़े नियमों का पालन कर रहे हैं। उनका कहना है कि अल्लाह का पहला हुक्म अपनी जान की हिफाजत है। ऐसे में मजहबी, दुनियाबी व कानूनी ऐतबार से बेहतर है कि अपनी जान की हिफाजत करते हुए मस्जिद में चार से ज्यादा लोग इबादत न करें।

हुजूम में इफ्तार करने के बजाए गरीबों के घर जाकर उनकी मदद करें। कानपुर देहात के अमरौधा कस्बे में रहने वाले 25 साल के हाफिज व हाजी अनवर शाहिद का मानना है कि रोजा निस्फ सब्र (आधा सब्र) है। उन्हें हर दिन रोजा रखने की प्रेरणा आजमगढ़ के मुबारकपुर स्थित अल जमीअउतुल अशरफिआ यूनिवर्सिटी के प्राचार्य मोहम्मद अहमद से मिली थी। वह उन्हें खुसूनी यानी खास उस्ताद मानते हैं।

उनका कहना है कि कोई भी इबादत इंसान को पाक बनाती है। रोजा जहन्नम (नरक) से बचाने की ढाल है। रोजा अल्लाह के लिए है और उसका सवाब अल्लाह के सिवाए कोई नहीं जानता। वह मानते हैं कि हर चीज की जकात है और बदन की जकात रोजा है। रमजान में हर नेकी का सवाब दस गुना से लेकर सात सौ गुना तक है। रमजान में आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और दोजख (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं। रोजेदार के लिए दो खुशियां यकीनी हैं। एक खुशी इफ्तार के वक्त दूसरी खुशी रब से मुलाकात के वक्त।

गरीबों को तकसीम करें इफ्तारी
अनवर कहते हैं कि इफ्तार खुशी देता है। इस मौके पर रोजेदारों को इफ्तार कराया जाता है, लेकिन इन हालातों में समूह में इफ्तार पार्टी से बचना होगा। इफ्तारी कराने वाले भी इसे गरीबों को तकसीम कर दें। इस पाक महीने में कोई भूखा न रहे यह भी बड़ा सवाब है।

जानबूझ कर गलती करना गुनाह
अनवर के मुताबिक यदि कोई भी व्यक्ति जानबूझकर अपनी या किसी और की जान खतरे में नहीं डाल सकता है। इसे गुनाह माना गया है। इसलिए किसी को भी महामारी के बीच रमजान और इबादत के नाम पर इस तरह का गुनाह नहीं करना चाहिए।

इबादत में जान की हिफाजत का हुक्म
बकौल अनवर जान है तो जहान है। कोरोना के संक्रमण को अल्लाह की इबादत रोकेगी। हमें इस इबादत के महीने में अल्लाह की बारगाह में अपने गुनाहों से तौबा करनी होगी। महामारी के दौर में मस्जिदों में भीड़ लगाने के बजाए कुल चार लोग ही इबादत करें।

इसलिए साल के पांच दिन छोड़ देते हैं
अनवर कहते हैं, रोजा हमें गुनाह से दूर रखता है। इसे समझने के बाद रोजा रखने का फैसला किया। साल में सिर्फ 5 दिन रोजा न रखने का हुक्म है। एक ईद व 3 दिन बकरीद पर। इस दिन बंदा अल्लाह का मेहमान होता है। इसलिए किसी के घर रोजा रखकर नहीं जा सकता।

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