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अयोध्या विवाद : संत-महंतों सहित हिन्दू संगठनों की 'सुप्रीम' फैसले पर नजर

इस्मॉइल फारुखी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस को रीओपेन करते हुए सात जजों की संविधान पीठ को सुनवाई के लिए भेजने के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला शुक्रवार की दोपहर तक आएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस...

अयोध्या विवाद : संत-महंतों सहित हिन्दू संगठनों की 'सुप्रीम' फैसले पर नजर
अयोध्या। हिन्दुस्तान संवादThu, 27 Sep 2018 01:01 PM
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इस्मॉइल फारुखी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस को रीओपेन करते हुए सात जजों की संविधान पीठ को सुनवाई के लिए भेजने के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का फैसला शुक्रवार की दोपहर तक आएगा। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अयोध्या के संत-महंतों के साथ ही हिन्दू संगठनों की भी नजर लगी है। मालूम हो कि छह दिसम्बर 1992 को रामजन्मभूमि पर स्थित विवादित ढांचे के ध्वंस के बाद सात जनवरी 1993 को केन्द्र सरकार ने दि एक्यूजिशन ऑफ सरटेन एरिया एट अयोध्या एक्ट के जरिए रामजन्मभूमि परिसर के ईद-गिर्द करीब 70 एकड़ भूमि का अधिग्रहण कर लिया था।
दि एक्यूजिशन ऑफ सरटेन एरिया एट अयोध्या एक्ट के खिलाफ इस्मॉइल फारुखी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। जस्टिस वेंकट चेलैया की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अयोध्या एक्ट को कानून की मान्यता दे दी। इसके साथ यह भी कहा कि  इस्लाम में मस्जिद की कोई मान्यता नहीं है क्योंकि नमाज कहीं भी पढ़ी जा  सकती है। 1994 में दिए गए इस निर्णय को किसी पक्ष ने चुनौती नहीं दी। इस बीच 30 सितम्बर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ की ओर से  रामजन्मभूमि बनाम बाबरी मस्जिद प्रकरण की सुनवाई के बाद फैसला आया तो हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्षों ने विवादित भूमि के बंटवारे को चुनौती दी। इसकी सुनवाई के दौरान 1994 के फैसले पर मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता की ओर
से बहस शुरू कर दी गई।

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विहिप के सलाहकार पुरुषोत्तम नारायण सिंह का कहना है कि वह कोर्ट का सम्मान करते हैं कि लेकिन एक तरफ कोर्ट ने माना कि मुख्य बिन्दु पर सुनवाई को लम्बा खींचने और जानबूझकर बाधित करने का प्रयास किया जा रहा है। फिर भी कोर्ट ने सुनवाई का न सिर्फ अवसर मुहैया कराया और उस पर निर्णय सुरक्षित भी कर लिया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में महज  प्रक्रिया के कारण ही एक ओर सुनवाई शुरू होने में ही सात साल लगा और जब  दोबारा केस रीओपेन करने के साथ सात जजों की पीठ को प्रकरण स्थानान्तरित किया जाएगा तो मूल मुद्दा जस का तक पड़ा रह जाएगा। उन्होंने कहा कि कोर्ट  की इस प्रकार की कार्रवाई अविश्वास करने के लिए मजबूर करती है। निर्वाणी अखाड़ा हनुमानगढ़ी के महंत धर्मदास ने भी कहा कि न्याय की प्रक्रिया को वह बाधित नहीं करना चाहते हैं लेकिन पांच जजों की पीठ की ओर से फैसला देने के मामले को तीन जजों की पीठ फिर सुनवाई कर रही है, यह खटकने वाली बात है। उन्होंने कहा कि यह सब केवल मामले को उलझाने की साजिश है जिससे कि मुख्य मुद्दे पर सुनवाई टल जाए। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो न्यायिक प्रक्रिया बाधित हो जाएगी और अराजक स्थिति उत्पन्न हो सकती है। फिर भी कोर्ट के निर्णय का इंतजार तो करना ही है।

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