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पुलवामा एनकाउंटर: शहीद अजय की पत्नी डिंपल चेहरा देखने के लिए चिता तक पीछे-पीछे आईं

कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए जवान अजय कुमार की अंतिम यात्रा मेरठ कैंट स्थित सेना के अस्पताल से सुबह सात बजकर 55 मिनट पर प्रारम्भ हुई। यह कंकरखेड़ा और जानी कस्बे से होती हुई गांव...

पुलवामा एनकाउंटर: शहीद अजय की पत्नी डिंपल चेहरा देखने के लिए चिता तक पीछे-पीछे आईं
मुख्य संवाददाता,मेरठ | Wed, 20 Feb 2019 02:43 PM
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कश्मीर के पुलवामा में शहीद हुए जवान अजय कुमार की अंतिम यात्रा मेरठ कैंट स्थित सेना के अस्पताल से सुबह सात बजकर 55 मिनट पर प्रारम्भ हुई। यह कंकरखेड़ा और जानी कस्बे से होती हुई गांव बासा टीकरी में 11 बजे जाकर संपन्न हुई। शहीद अजय अपने पीछे हजारों लोगों की आंखें नम छोड़ गए। इस 40 किमी के सफर में अंतिम यात्रा 50 से अधिक गांवों में से होकर निकली, जहां हजारों लोग हाथों में फूल लेकर उनका इंतजार कर रहे थे।

मुझे क्या देखते हो, देखने का काम तो उन्होंने किया है, जिन्हें देखने के लिए यह पूरा मेला यहां लगा है, लेकिन कोई मुझे तो दिखा दो, मैं तो अंतिम बार भी उनका चेहरा नहीं देख सकी, कोई तो मेरी सुनो, मुझे एक बार इनके दर्शन करा दो। यह शब्द थे शहीद अजय की गर्भवती पत्नी डिंपल के, जो रोते-रोते चिता स्थल तक आईं, लेकिन वहां मौजूद भारी भीड़ के कारण वह अपने पति की अंतिम विदाई में भी उनके अंतिम दर्शन नहीं कर सकीं। अजय के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए घर तक लाया गया था। लेकिन वहां भारी भीड़ थी, जिस कारण डिंपल अपने पति के चेहरे का अंतिम दर्शन नहीं कर सकी। घर पर दस मिनट के लिए पार्थिव शरीर को रोक कर अंत्येष्टि स्थल पर ले आया गया था। 

डिंपल भी रोते-रोते वहां तक पहुंच गईं। लेकिन भारी भीड़ के कारण वह चिता तक नहीं पहुंच सकी और बेसुध हो गई। अन्य महिलाओं ने उन्हें संभाला। यहां अपने चारों ओर लगी भीड़ को देखकर डिंपल बोली अरे मुझे क्या देखते हो, देखने का काम तो इन्होंने किया है, जिन्हें देखने के लिए यहां पर यह मेला लगा है। शहीद की पत्नी का यह हाल देखकर वहां मौजूद सभी लोगों की आंखें भर आईं। 

भाजपा मानवाधिकार प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सुधीर अग्रवाल ने शहीद अजय के बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाने का प्रस्ताव दिया है। सुधीर अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने, शहीद के परिजनों से कहा है कि वह अजय के बच्चों को देश और विदेश तक में शिक्षा का खर्चा उठाने की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं। वह जहां भी चाहें उन्हें शिक्षा हासिल कराने में वह सहयोग देंगे।

 

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