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साहित्‍य अकादमी के पूर्व अध्‍यक्ष ने कहा- अब निर्धन और निरक्षर ही बचा सकते हैं हिन्दी को

हिन्दी भारत की अधिसंख्य जनता द्वारा बोली जाने वाली एक ऐसी महत्वपूर्ण भाषा है जिसका दुनिया भर की भाषाओं में एक स्थान है। इसमें न केवल बोलने वालों का बल्कि हिन्दी सिनेमा और लेखकों का भी योगदान है। खास...

साहित्‍य अकादमी के पूर्व अध्‍यक्ष ने कहा- अब निर्धन और निरक्षर ही बचा सकते हैं हिन्दी को
मुख्‍य संंवाददाता ,गोरखपुर Mon, 14 Sep 2020 12:18 PM
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हिन्दी भारत की अधिसंख्य जनता द्वारा बोली जाने वाली एक ऐसी महत्वपूर्ण भाषा है जिसका दुनिया भर की भाषाओं में एक स्थान है। इसमें न केवल बोलने वालों का बल्कि हिन्दी सिनेमा और लेखकों का भी योगदान है। खास तौर से हिन्दी के भक्ति कालीन संतों-भक्तों के साहित्य का। तुलसीदास की रचानाओं का अनुवाद दुनिया की बहुत सी भाषाओं में हो चुका है। रूसी और चीनी भाषा में भी। हिन्दी की चेतना मूलत: करुणा व प्रेम की चेतना है। इसलिए इस भाषा का सांस्कृतिक महत्व तो है ही लेकिन आजकल इसका रोजगार परक महत्व बहुत महत्वपूर्ण है।

हिन्दी भाषा के विस्तार के कारण बहुत सी बड़ी कम्पनियां अपने प्रचार के लिए हिन्दी भाषियों को बैंकों तथा अन्य कार्यालयों में रोजगार दे रही हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। तमाम दूतावासों और विदेशों में हिन्दी अनुवादकों की जरूरतें बढ़ रही हैं और ऐसे युवकों को रोजगार भी मिल रहा है। लेकिन हिन्दी के विकास में सबसे बड़ी समस्या युवा पीढ़ी के आगे न आने की है। भारत का मध्य वर्ग जिसे थोड़ी भी आर्थिक सुरक्षा मिली हुई है वह अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ही डाल रहा है। आश्चर्य यह होता है कि ये बच्चे जब बड़े होंगे और इनके भीतर से हिन्दी के प्रति अनुराग समाप्त हो जाएगा तो हिन्दी का भला कैसे होगा! हिन्दी माध्यम से केवल वे ही बच्चे पढ़ रहे हैं जो निर्धन और अति पिछड़े क्षेत्रों के ग्रामीणों के हैं। इसलिए मुझे तो ऐसा लगता है कि हिन्दी को बचाने में निर्धनों और निरक्षरों की भूमिका ही सबसे ज्यादा होगी।

भारत सरकार की नई शिक्षा नीति में मातृभाषाओं को महत्व दिया जाना स्वागत योग्य है। प्रारम्भिक शिक्षा अपनी-अपनी मातृभाषाओं में दी जाए, इसका स्वागत पूरे देश की भाषाएं करेंगी। मगर हिन्दी के साथ एक कठिनाई यह है कि हिन्दी भाषी क्षेत्र में कम से कम 20 भाषाएं ऐसी हैं जो मातृभाषा होने का दावा कर सकती हैं। इससे भी हिन्दी को अपनी रक्षा करनी पड़ेगी। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल भी एक समस्या बनेंगे जिनके लिए सरकार को सोचना होगा। सबसे ज्यादा चिंता हिन्दी भाषी क्षेत्र के मध्य वर्ग के मन की है जो कुछ हीनता बोध के कारण और कुछ रोजगार की चिंता के कारण अपने बच्चों को स्वयं अपनी मातृभाषा से बिलग कर रहा है। इन परिस्थितियों पर सभी प्रबुद्धजनों को विचार करना होगा।

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