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कोरोना काल में गर्भवती महिलाओं से नहीं संभल रहा गर्भ, डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा दोनों हो रहे बीमार, जानें इसकी वजह

कोरोना काल में सबसे ज्यादा आफत गर्भवती महिलाओं, प्रसूताओं और नवजात बच्चों पर है। मांएं गर्भ नहीं संभाल पा रही हैं। प्री-टर्म बच्चे पैदा हो रहे हैं। इमरजेंसी में कई केस रोजाना आ रहे हैं, जिनमें...

कोरोना काल में गर्भवती महिलाओं से नहीं संभल रहा गर्भ, डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा दोनों हो रहे बीमार, जानें इसकी वजह
कानपुर। नासिर जैदीTue, 06 Oct 2020 07:33 AM
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कोरोना काल में सबसे ज्यादा आफत गर्भवती महिलाओं, प्रसूताओं और नवजात बच्चों पर है। मांएं गर्भ नहीं संभाल पा रही हैं। प्री-टर्म बच्चे पैदा हो रहे हैं। इमरजेंसी में कई केस रोजाना आ रहे हैं, जिनमें  एंटी बॉटम हैमरेज मिल रहा है। यानी प्लेसेंटा हटने से गर्भवती महिलाओं की जान पर खतरे में पड़ रही है। अस्पतालों में 28 से 32 सप्ताह के बीच पैदा होने वाले बच्चों की संख्या बढ़ी है। जबकि बच्चों के जन्म की आदर्श अवधि 37 सप्ताह है। खासतौर से हाई रिस्क प्रेगनेंसी वाली महिलाओं में 90 फीसदी प्री टर्म डिलीवरी हो रही है। गर्भवती महिलाएं, नवजात दोनों बीमार हालत में मिल रहे हैं। गम्म्भीर बच्चों से नियोनेटल यूनिट फुल है।

जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के अपर इंडिया जच्चा-बच्चा अस्पताल की विशेषज्ञों ने नॉन कोविड गर्भवती महिलाओं का आंकड़ा जुटाया है। यह चौंकाने वाला है। विशेषज्ञों का कहना है कि हर तीसरी गर्भवती महिला को समय से पूर्व इमरजेंसी इलाज की जरूरत पड़ रही है। प्रोफेसर सीमा द्विवेदी का कहना है कोरोना काल में तनाव बड़ा कारक बन कर उभरा है। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है। दूसरे लॉकडाउन के सख्ती के दिनों में तमाम महिलाओं की रूटीन जांचें नहीं हो सकीं। गर्भवती महिलाओं का खान-पान और देखरेख प्रभावित हुई है। उनमें प्रोटीन और विटामिन्स की गम्म्भीर कमी मिली रही है। इससे जटिलताएं पैदा हुई हैं। कई महिलाओं में एंटीबॉटम हैमरेज के भी मामले देखे जा रहे हैं। यानी प्लेसेंटा के हटने से ब्लीडिंग के मामले बढ़ रहे हैं। इससे आनन-फानन प्रसव कराने की जरूरत पड़ जाती है।

समय पूर्व डिलीवरी के भारी नुकसान
प्रो. सीमा द्विवेदी का कहना है कि समय पूर्व डिलीवरी और पोषण की कमी के भारी नुकसान है। एक तो बच्चे का वजन कम हो सकता है, दूसरे वह हाइपॉक्सिया में जा सकते हैं, जिसमें ब्रेन को ऑक्सीजन कम मिलती है। बच्चे को नियोनेटल यूनिट में शिफ्ट करना पड़ता है। मां की भी जान खतरे में रहती है। इस समय लगभग सभी बच्चे नियोनेटल यूनिट में शिफ्ट हो रहे हैं।

कानपुर के सरकारी अस्पतालों से भेजे गए बच्चों की संख्या इतनी अधिक है कि पड़ोसी जिलों के रेफर केस लेना मुश्किल हो रहा है। फिर भी जैसे-तैसे राहत दी जा रही है।
प्रो. यशवंत राव, बाल रोग विभागाध्यक्ष

प्री-मेच्योर डिलीवरी की वजहें

  1. कोरोना के खौफ में तनाव में रहीं महिलाएं
  2. सही तरीके एंटीनेटल चेकअप नहीं हो पाया
  3. पोषण पर असर, प्रोटीन की भारी कमी रही
  4. संक्रमण, बुखार, एनीमिया का इलाज नहीं मिल पाया

कोरोना कॉल में गर्भवती महिलाओं में तनाव बढ़ा

कोरोना के भय से तमाम गर्भवती महिलाओं में तनाव बढ़ गया। जिसका असर प्रसव पर पड़ा है। एंटीनेटल चेकअप समय पर न होने से तमाम तरीके की परेशानियां गर्भवती महिलाओं को झेलनी पड़ रही हैं। इसका असर सबसे ज्यादा ब्लड प्रेशर पर पड़ रहा है। ब्लड प्रेशर बढ़ने से प्रीमेच्योर डिलीवरी के मामले बढ़े हैं। केजीएमयू के क्वीनमेरी अस्पताल में रोजाना 10 से 15 डिलीवरी हो रही हैं। इनमें 5 से 6 प्रसव 28 से 32 हफ्ते के बीच के हैं। प्रीमेच्योर शिशु में तमाम तरह की बीमारियां पनप रही है। सबसे ज्यादा परेशानी फेफड़े से जुड़ी है। कई बच्चों को ऑक्सीजन सपोर्ट पर भी रखने की जरूरत पड़ रही है। पीलिया और दूसरे संक्रमण भी शिशुओ में देखने को मिल रहे हैं। 
डॉ एसपी जैसवार, चिकित्सा अधीक्षक, क्वीनमेरी, केजीएमयू  

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