UP: पेड़ काटने को लेनी होगी अनुमति, प्रदेश में महज 9 फीसदी से भी कम फॉरेस्ट कवर
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले साल जारी उस अधिसूचना को रद कर दिया है जिसके तहत कुछ किस्म के पेड़ों को छोड़कर अन्य को काटने के लिए अनुमति लेने के प्रावधान को...
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले साल जारी उस अधिसूचना को रद कर दिया है जिसके तहत कुछ किस्म के पेड़ों को छोड़कर अन्य को काटने के लिए अनुमति लेने के प्रावधान को खत्म कर दिया गया था। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि सरकार ने अधिसूचना जारी करने से पहले पर्यावरण पर इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा, इसका आंकलन नहीं किया।
एनजीटी के अध्यक्ष जस्टिस एके. गोयल की अगुवाई वाली 4 सदस्यीय पीठ ने यह फैसला क्षितिज अग्निहोत्री की ओर से दाखिल याचिका पर दिया है। पीठ ने कहा है कि तथ्यों से साफ है कि सरकार ने 31 अक्तूबर, 2017 को अधिसूचना जारी करने से पहले पर्यावरण प्रभाव का आंकलन नहीं किया। दूसरे शब्दों में कहें तो पेड़ों के अनियंत्रित कटाई से पर्यावरण को कितना नुकसान होगा, इसका अध्ययन नहीं किया। ट्रिब्यूनल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार को एग्रो-फॉरेस्ट्री के नाम पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए कानून की अनदेखी कर पेड़ों के अनियंत्रित कटाई के लिए अधिसूचना जारी करने का अधिकार नहीं है।
इसके साथ ही पीठ ने कहा है कि यदि एग्रो-फॉरेस्ट्री के नाम पर पेड़ों की अनियंत्रित कटाई की अनुमति दी भी जाती है तो सरकार को पर्यावरण और तेजी से गिरते भूजल स्तर का ख्याल रखना होगा। लेकिन सरकार ने यह अधिसूचना जारी करने से पहले इस बारे में विचार नहीं किया।
तो यूपी के बड़े शहरों का हाल भी दिल्ली-एनसीआर जैसा होगा
याचिकाकर्ता ने कहा है कि यदि पेड़ कम होंगे तो लोगों का जीना मुश्किल होगा क्योंकि इससे लोगों को सांस लेने में परेशानियों का सामना करना होगा। लोगों को सांसें लेने के लिए मास्क का इस्तेमाल करना होगा। याचिकाकर्ता ने कहा कि ठंड के दिनों में दिल्ली एनसीआर में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है, लोग मास्क पहनकर निकलते हैं। यदि यूपी सरकार प्रदेश में पेड़ों की अनियंत्रित कटाई की अनुमति देती है तो लोगों को परेशानियों का सामना करना होगा। याचिकाकर्ता ने कहा है सरकार सकारात्मक कदम उठाने के बजाए लकड़ी पर आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए पेड़ों को अनियंत्रति कटाई की अनुमति दे रही है।
यूपी में महज 9 फीसदी से भी कम है फॉरेस्ट कवर
ट्रिब्यूनल ने कहा है कि उत्तर प्रदेश में महज 8.9 फीसद फॉरेस्ट कवर है जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार द्वारा 2016 व सितंबर 2017 में तय दिशा-निर्देश के अनुसार 33 फीसद होना चाहिए। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने पीठ को बताया कि देश में अभी सिर्फ 24.16 फीसद ही फॉरेस्ट कवर है।
यूपी सरकार की दलीलें
उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्रिब्यूनल को बताया कि एग्रो-फॉरेस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए यह अधिसूचना जारी किया गया है। सरकार ने दावा कि प्रदेश में फॉरेस्ट कवर में बढ़ोतरी हुई। सरकार ने कहा कि इससे लोग अधिक से अधिक पेड़ लगाएंगे जिससे हरित क्षेत्र में बढ़ोतरी होगी। इस पर ट्रिब्यूनल ने कहा है कि सरकार ने दावा किया है कि उसने एग्रो-फॉरेस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए अधिसूचना जारी किया, लेकिन वास्तविकता में ऐसा कुछ तथ्य नजर नहीं आया।
भूजल का स्तर गिरेगा
सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा कि अनियंत्रित पेड़ों की कटाई से प्रदेश में जलाशय, तालाबों और भूजल का स्तर बुरी तरह से प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि पीठ को बताया कि पेड़ अपनी जड़ों में पानी को अवशोषित कर उसके बड़े हिस्से को बनाए रखता है जिससे भूजल स्तर बना रहता है।
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