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परिवार में थे सिर्फ तीन पुरुष, फिर अर्थी को कंधा देकर मुस्लिमों ने पेश की मिसाल

- मुंशीपुरवा का यह क्षेत्र कोरोना संक्रमण के चलते हॉटस्पॉट में आता है  - सामाजिक सद्भाव की ऐसी मिसाल देख लोगों की आंखों से छलके आंसू  कहते हैं पड़ोसी का धर्म सबसे बड़ा होता है। कानपुर...

परिवार में थे सिर्फ तीन पुरुष, फिर अर्थी को कंधा देकर मुस्लिमों ने पेश की मिसाल
हिन्दुस्तान,कानपुरWed, 22 Apr 2020 10:50 PM
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- मुंशीपुरवा का यह क्षेत्र कोरोना संक्रमण के चलते हॉटस्पॉट में आता है 
- सामाजिक सद्भाव की ऐसी मिसाल देख लोगों की आंखों से छलके आंसू 

कहते हैं पड़ोसी का धर्म सबसे बड़ा होता है। कानपुर के बाबूपुरवा क्षेत्र के मुंशीपुरवा में यहां के लोगों ने इसे सही साबित कर दिखाया। हिंदू परिवार में एक महिला की मृत्यु हो गई। परिवार में केवल तीन लोग थे। अर्थी को कंधा देने के लिए चार लोगों की जरूरत पड़ती है। ऐसे में पड़ोसी मुस्लिम भाई सामने आए। अर्थी को कांधा देकर श्मशान घाट तक ले गए। यहां पर हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार कर दिया गया।

मुंशीपुरवा का यह क्षेत्र कोरोना संक्रमण के चलते हॉटस्पॉट क्षेत्र में आता है। मंगलवार देर रात डॉक्टर बिन्नी कुमार के भाई भरत कुमार उर्फ डब्ल्यू की सास सुखरानी का निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार चल रही थीं। निधन के बाद परिवार के लोग परेशान हो गए। कारण यह था कि लॉकडाउन की सख्ती के कारण न तो कोई वहां आ सकता था और न ही कोई बाहर जा सकता था। 

परिवार में केवल तीन सदस्य
डॉ बिन्नी के परिवार में तब उनके बेटे राजेश उर्फ बउवा और भाई भरत कुमार थे। केवल तीन सदस्यों के लिए यह कठिन समय था क्योंकि ऐसे समय रिश्तेदार नहीं आ सकते थे। यह मुस्लिम अधिसंख्य आबादी वाला इलाका है। जैसे ही पड़ोस में जानकारी हुई लोग एकत्रित होना शुरू हो गए। आश्वस्त किया कि वे बिल्कुल न परेशान हों। उनके पड़ोसी भाई उनके साथ हैं।

मुस्लिमों ने दिया कांधा
क्षेत्र के लोगों ने अर्थी तैयार करने में भी मदद की। इसके बाद जब शव अंतिम यात्रा के लिए रवाना हुआ तो पड़ोसी मुस्लिम युवकों ने कंधा दिया। इस दौरान राम नाम सत्य है की गूंज होती रही। जिस रास्ते से अर्थी गुजरी वहां के लोग भाईचारे और सांप्रदायिक सद्भावना की इस मिसाल को देख अपनी आंखों से आंसू नहीं रोक सके।

बाकरगंज कब्रिस्तान में दफनाया 
घाट तक ले जाने के लिए कई तरह की अनुमति की आवश्यकता थी। लॉकडाउन की सख्ती में ऐसा कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था। निर्णय लिया गया कि बाकरगंज स्थित श्मशान घाट में अंतिम संस्कार कर लिया जाए। इसमें खासतौर से शरीफ, बब्लू, इमरान, आफाक, उमर, जुगनू, भुलू, लतीफ, नौशाद और तौफीक आदि शामिल हुए।

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