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दलों ने मुस्लिम राजनीति का रुख बदला, धुरंधर घर पर बैठे-मैदान खाली

मेरठ के चुनावी मैदान में मुस्लिम सियायत की धुरी रहे बड़े मुस्लिम चेहरे इस बार मैदान में नजर नहीं आ रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ रहने वाले इन कद्दावर नेताओं की गैरमौजूदगी में मुस्लिम सियासत...

दलों ने मुस्लिम राजनीति का रुख बदला, धुरंधर घर पर बैठे-मैदान खाली
हिन्‍दुस्‍तान टीम ,मेरठ मुजफ्फरनगर सहारनपुरWed, 19 Jan 2022 07:47 AM

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मेरठ के चुनावी मैदान में मुस्लिम सियायत की धुरी रहे बड़े मुस्लिम चेहरे इस बार मैदान में नजर नहीं आ रहे हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ रहने वाले इन कद्दावर नेताओं की गैरमौजूदगी में मुस्लिम सियासत भी ठंडी नजर आ रही है।

मेरठ में नगर निगम से लेकर विधानसभा और संसद तक की राजनीति में मेरठ के इन मुस्लिम नेताओं की धमकर हर बार रही है। एक जमाना था जब हकीमुद्दीन और मंजूर अहमद का राजनीति में सिक्का चलता था। मेरठ में एक दौर में जनरल शाहनवाज, मोहसिना किदवई, हकीम सैफुद्दीन, नेताजी हकीमुद्दीन, सफावत हुसैन, मंजूर अहमद, नजीर अंसारी, अब्दुल वहीद कुरैशी, अब्दुल हलीम मुस्लिम सियासत के केंद्र में रहे। संसद और विधानसभा में मुस्लिम नेताओं ने मेरठ का प्रतिनिधित्व किया।

मौजूदा दौर में हाजी याकूब कुरैशी व शाहिद अखलाक घराने भी मुस्लिम राजनीति के केंद्र में रहते थे। शाहिद मंजूर, बाबू मुनकाद अली, डॉ. मेराजुद्दीन अहमद, परवेज हलीम, जकीउद्दीन, मुनकाद अली, डॉ. युसूफ कुरैशी, नसीम कुरैशी राजनीति के वे चेहरे हैं जिनकी चर्चा के बिना मेरठ की कोई चुनावी सभा पूरी नहीं होती थी। लंबे समय तक कोकब हमीद ने भी मुस्लिम सियासत की, हालांकि उनका कार्यक्षेत्र बागपत रहा। इस बार उनके बेटे को टिकट मिला है।

चुनावी समर में मेरठ में अधिकांश बड़े मुस्लिम नेता घरों में हैं। इनमें से कोई चुनाव मैदान में नजर नहीं आ रहा, न इनके परिवार के लोग ही मैदान में हैं। शाहिद अखलाक मेरठ से मेयर और सांसद रहे। इस बार चुनाव में पहले उन्हें लेकर एआईएमआईएम की चर्चा हुई, फिर लखनऊ में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से वह मिले। अब लगभग सभी प्रमुख दलों के प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं, लेकिन इने लोगों का नाम किसी की सूची में शामिल नहीं हो पाया। हाजी याकूब कुरैशी पिछले लोकसभा चुनाव में हार गए थे। उनके बेटे हाजी इमरान याकूब ने सरधना से चुनाव लड़ा था। इस बार इमरान शहर दक्षिण विधानसभा से बसपा से तैयारी में थे, लेकिन उन्हें भी टिकट नहीं मिला। सहारनपुर में इमरान मसूद और विधायक अख्तर कांग्रेस को अलविदा कहकर सपा से टिकट पाने की जुगत में लगे हैं।

मुजफ्फरनगर दंगे का असर कहें या सपा रालोद गठबंधन की रणनीति! इस बार मुजफ्फरनगर में मुस्लिम राजनीति का चेहरा माने जाने वाले पूर्व सांसद कादिर राना और अमीर आलम खान या उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। कादिर राना ने अपने पुत्र को मीरांपुर से टिकट दिलाने के लिए अक्टूबर में सपा की सदस्यता भी ली। टिकट की चाह में पूर्व विधायक नूर सलीम राना ने लोकदल का दामन थामा था।

जनरल शाहनवाज, मोहसिना किदवई

हाजी अखलाक, हाजी याकूब कुरैशी (मंत्री भी रहे), रफीक अंसारी, डॉ. मेराजुद्दीन अहमद प्रदेश के कैबिनेट मंत्री रहे।

नेताजी हकीमुद्दीन, मौलाना गुलाम मोहम्मद।

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