बीटेक, एमटेक पास कर रहे सबसे ज्यादा साइबर फ्रॉड, लोगों के खाते से ऐसे उड़ा रहे रुपए
मोबाइल और सोशल मीडिया पर लुभावने मैसेज, लॉटरी निकलने व कॉल करके लोगों के खाते से ऑनलाइन पैसा उड़ाने वाले साइबर अपराधी शातिर होने के साथ पढ़े लिखे भी हैं।
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मोबाइल और सोशल मीडिया पर लुभावने मैसेज, लॉटरी निकलने व कॉल करके लोगों के खाते से ऑनलाइन पैसा उड़ाने वाले साइबर अपराधी शातिर होने के साथ पढ़े लिखे भी हैं। यह लोगों को बातों में आसानी से बरगला कर आधार नम्बर, ओटीपी जान लेते हैं। बीटेक व एमटेक पास भी साइबर फ्रॉड के अपराध में उतर गए हैं। यह खुलासा लोहिया विधि विवि के शोध छात्र के तीन शहरों के 300 केस पर किये गए अध्ययन में हुआ है।
डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विवि के पीएचडी छात्र संदीप मिश्रा ने यह शोध लखनऊ, बस्ती व गाजियाबाद में किया गया है। शोध में पीड़ित, गवाह, वकील और पुलिस को शामिल किया। अध्ययन में देखा कि साइबर फ्रॉड करने वाले अधिकांश बीटेक और एमटेक पास हैं। यह अपराधी लुभावने ऑफर, लॉटरी, बैंक में केवाईसी और सिम बंद होने की बात कहकर लोगों को जाल में फंसाते हैं। संदीप ने बताया कि साइबर कानून लचीला और कमजोर से अपराधियों पर कठोर कार्रवाई नहीं हो पा रही है। जिसकी वजह से साइबर फ्रॉड के मामलों में इजाफा हो रहा है।
90 फीसदी मामले पुलिस दर्ज नहीं
संदीप ने बताया कि साइबर क्राइम के करीब 90 फीसदी मामले ही पुलिस में दर्ज होते हैं। अध्ययन में पता चला कि पीड़ित पुलिस के पास जाने से कतराते हैं। जो जाते हैं। पुलिस उल्टा इनसे तमाम तरह के सवाल पूछती है। सिर्फ 10 फीसदी पीड़ित ही साइबर हेल्प लाइन, ऑन लाइन और साइबर सेल में शिकायत दर्ज करायी है। अध्ययन में देखा कि लोगों में जागरूकता की बड़ी कमी है। इन्हें पुलिस से सहयोग नहीं मिलता है।
अपराधियों से कम पढ़े लिखे विवेचक
संदीप ने बताया कि साइबर अपराधों की जांच करने वाली पुलिस सामान्य ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट है। जबकि यह अपराधी बीटेक व एमटेक पास हैं। इनके पास आधुनिक कम्पयूटर, लैपटॉप व अन्य संसाधन हैं। जबकि पुलिस के पास पुराने संसाधन हैं। शोधार्थी संदीप ने अध्ययन साइबर अपराध से निपटने में आ रही वास्तविक समस्याएं उजागर की हैं। लोगों को इससे निपटने और प्रभावी समाधान के सुझाव भी दिये। यह शोध लोहिया विधि विवि के प्रो.केए पांडे के नेतृत्व में किया है।