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दुग्धधार तो कहीं ‘सुगंधित धूप’, यूपी के इस जिले में लुभा रहा अदभुत लोक, दिख रहा आस्था का ज्वार

अधिकमास में गोवर्धन के गिरिराज पर्वत की परिक्रमा के लिए उमड़ रहे रसिकजनों के आने से रोजाना बन रहा अद्भुत संसार। पद्यनि एकादशी पर शनिवार-रविवार रात श्रद्धा के सैलाब से ब्रज के सारे रास्ते जाम हो गए।

दुग्धधार तो कहीं ‘सुगंधित धूप’, यूपी के इस जिले में लुभा रहा अदभुत लोक, दिख रहा आस्था का ज्वार
Yogesh Yadav हरिओम चौधरी, गोवर्धन(मथुरा)Sun, 30 July 2023 03:07 PM
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राधे-राधे की टेर। कहीं बह रही दुग्धधार तो कहीं ‘सुगंधित धूप’ की धूनियों के बीच उमड़ रहा श्रद्धालुओं का सैलाब। जाकी कृपा पंगु गिर लंघे...आस्था के वशीभूत पीं-पीं करते ई-रिक्शा से सप्तकोसीय परिक्रमा करते हजारों असहायों के बीच सबसे कठिन ‘व्रत’ दंडवती करते श्रद्धालुओं की आस्था का ज्वार। अधिकमास में गोवर्धन के गिरिराज पर्वत की परिक्रमा के लिए उमड़ रहे रसिकजनों के आने से रोजाना बन रहा अद्भुत संसार। पद्यनि एकादशी पर शनिवार-रविवार रात श्रद्धा का ऐसा सैलाब उमड़ा कि ब्रज के सारे रास्ते जाम हो गए। मथुरा से गोवर्धन 20 किमी पहुंचने में भक्तजनों को 3 से 4 घंटे लग गए। मगर आस्था न डिगी। रात को उमड़े परिक्रमार्थियों के रेला से बनी मानव श्रृंखला अनवरत थी। 

आस्था का अदभुत लोक बनी गिरिराज महाराज की नगरी के नजारे अपनी आंखों में बसाने और प्रभु की कृपा पाने के लिए देशी ही नहीं दुनियाभर के देशों से श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। भक्तजन कहते हैं कि गिरिराज महाराज की सप्तकोसीय दंडवती परिक्रमा करने में करीब एक पखवाड़े का समय लगता है। एक औसत लंबाई के व्यक्ति को दंडवती परिक्रमा में 17300 दंडवत लगानी पड़ती हैं। गोवर्धन की पैदल परिक्रमा अनवरत चलती रहती है। प्रति माह पूर्णिमा पर लाखों लोग परिक्रमा लगाते हैं। अधिक मास में धार्मिक आयोजनों से संपूर्ण तलहटी का वातावरण कृष्णमय हो गया है। गिर्राज मराहाज के जयकारों से तलहटी गूंज रही है। 

ब्रज में भक्तिरस की बरसा 

मंदिरों में होने वाले भजन संध्या व अन्य कार्यक्रम वातावरण में भक्तिरस घोल रहे हैं। दिन-रात परिक्रमार्थियों की टोलियां गिरिराज महाराज और राधा-कृष्ण के जय-जयकारों के बीच परिक्रमा लगा रहे है। मंदिरों में दर्शनों के लिये लाइनें लगी हुई है। मंदिरों में प्रात: गिरिराज महाराज का दूध से अभिषेक व शाम को श्रृंगार के साथ राजभोग फिर आकर्षक फूल बंगला व छप्पन भोग के दर्शन आकर्षण का केन्द्र बने हैं। प्रसिद्ध दानघाटी मंदिर, मुकुट मुखारविंद मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर, सनातन गोस्वामी मंदिर, राधा-श्याम सुंदर मंदिर आदि में धार्मिक आयोजनों की धूम है। 

सप्तकोसीय परिक्रमा पांच प्रकार से लग रही   

गिरिराज महाराज की सप्तकोसीय परिक्रमा पांच प्रकार से लगती है। पैदल, दुग्धधार, धूप परिक्रमा, ई रिक्शा परिक्रमा और दंडवती परिक्रमा मुख्य रूप से लगाई जाती है। इनमें दंडवती परिक्रमा सबसे कठिन है। इसमें भक्त गिरिराज प्रभु की 21 किमी परिक्रमा दंडवत करते हुए लेटकर लगाते हैं। इसमें एक बार लेटकर सर और आंखों को ब्रजरज से स्पर्श कर प्रभु को दंडवत करते हैं। हाथ की अंगुलियों से पैर की अंगुलियों तक की लंबाई की दंडवत एक दंडवती में आती है।

निशान के रूप में हाथों में छोटा सा पत्थर अथवा नारियल रखते हैं। लंबा हाथकर लेटने के बाद निशान को वहीं छोड़ देते हैं। फिर निशान के बाद अगली दंडवती करते हैं। दंडवती के निशान से पैदल आगे नहीं जाना धार्मिक परंपरा में शामिल है। यह अमूमन सात दिन में पूरी हो जाती है। इसमें साबुन व तेल का प्रयोग निषेध माना गया है। दूध पीना भी वर्जित है। दिल्ली निवासी एक भक्त कोमल शर्मा ने निशानी के लिए एक रुपये के सिक्के का भी प्रयोग किया।

प्रत्येक दंडवती पर एक रुपये का सिक्का छोड़ा गया। जिसकी कुल राशि 17300 रुपये बैठी। यानी पर्वतराज की दंडवती परिक्रमा में 17 हजार 300 बार दंडवत करनी पड़ती है। वैसे तो परिक्रमा कहीं से भी प्रारंभ हो जाती है, लेकिन समापन उसी जगह पर होगा जहां से परिक्रमा शुरू होगी। जमीन पर लेटकर दंडवती करने का महत्व खड़ी परिक्रमा करने से अधिक माना जाता है। 

दुग्धाधार और धूप परिक्रमा 

भक्तजन हाथों में मिट्टी के बर्तन में दूध भरकर चलते हैं। मिट्टी के बर्तन में नीचे की तरफ छेद होता है, जिसमें कुशा (एक तरह की घास) लगी होती है। छेद से दूध की धार निकलती रहती है। दूध की धार सहित सात कोस परिक्रमा लगाई जाती है। इस परिक्रमा में 40 से 45 लीटर दूध गिरिराज जी को चढ़ाया जा रहा है। इसी प्रकार मिट्टी के बर्तन में सुलगते उपले पर हवन में प्रयुक्त होने वाली सुगंधित धूप डाल कर परिक्रमा करते हैं। इससे यहां का वातावरण शुद्ध हो रहा है। कुछ लोग तो अगरबत्ती सुलगाकर परिक्रमा पूरी कर रहे हैं। 

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