महापौर की सीटों के आरक्षण में लखनऊ की सर्वाधिक अनारक्षित रही सीट, पांचवीं बार अनारक्षित
यूपी सरकार ने महापौर सीटों के आरक्षण की अंतिम सूचना जारी कर दी है। लखनऊ की सीट एक बार फिर से अनारक्षित हो गई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी चार चुनावों में यह अनारक्षित रह चुकी है।

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यूपी सरकार ने महापौर सीटों के आरक्षण की अंतिम सूचना जारी कर दी है। लखनऊ की सीट एक बार फिर से अनारक्षित हो गई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। वर्ष 2017 का चुनाव छोड़ दें तो इसके पहले चार चुनावों में यह सीट अनारक्षित रह चुकी है। पिछले छह चुनावों में लखनऊ महापौर की सीट पांचवीं बार अनारक्षित की गई है।
सांसदी से बड़ा महापौर का क्षेत्र
बात सबसे पहले लखनऊ नगर निगम की करते हैं। लखनऊ प्रदेश की राजधानी है। लखनऊ में दो संसदीय क्षेत्र आते हैं। लखनऊ महापौर कुछ विधानसभा क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो दोनों संसदीय क्षेत्र के शहरी मतदाता चुनते हैं। लखनऊ महापौर सीट इसके पहले वर्ष 1997, 2002, 2007 और 2012 में अनारक्षित रह चुकी है। शुरुआत के दो चुनावों में डा. एससी राय व इसके बाद दो बार डा. दिनेश शर्मा लखनऊ के महापौर रह चुके हैं। वर्ष 2017 के चुनाव में इस सीट को महिला के लिए आरक्षित किया गया था और वर्ष 2022 में यह सीट एक बार फिर से अनारक्षित हो गई है।
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13 से 17 हो गए नगर निगम
प्रदेश में वर्ष 2012 तक केवल 13 नगर निगम हुआ करते थे। उस समय झांसी, आगरा, अलीगढ़, मेरठ, गाजियाबाद, सहारनपुर, इलाहाबाद, गोरखपुर, कानपुर, लखनऊ, मुरादाबाद, बरेली और वाराणसी को ही नगर निगम का दर्जा प्राप्त था। मगर वर्ष 2017 में मथुरा, फिरोजाबाद और फैजाबाद तीन अधिक महापौर की सीटों पर चुनाव हुआ। वैसे तो उस समय तक शाहजहांपुर को नगर निगम का दर्जा मिल चुका था, लेकिन चुनाव नहीं हो सका। इस बार शाहजहांपुर में भी महापौर के लिए चुनाव हो रहा है।
सबसे अधिक भाजपा का दबदबा
महापौर के चुनाव में भाजपा का दबदबा रहा है। मगर वर्ष 2017 के चुनाव में बसपा ने दो महापौर की दो सीटों पर जीत दर्ज कर सभी को चौंका दिया। इस बार सभी पार्टियां महापौर का चुनाव मजबूती से लड़ने की तैयारियां कर रही हैं।