लोकसभा चुनाव 2019: सपा-बसपा गठबंधन की सीटों पर अभी हैं कई पेंच
समाजवादी पार्टी व बसपा गठबंधन में सीटों को लेकर अभी भी तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। दावेदारों की महत्वकांक्षाओं का ऐसा दबाव है, जो पहले से तय सीटों पर बटवारे के फार्मूलों को प्रभावित कर रहा...
समाजवादी पार्टी व बसपा गठबंधन में सीटों को लेकर अभी भी तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। दावेदारों की महत्वकांक्षाओं का ऐसा दबाव है, जो पहले से तय सीटों पर बटवारे के फार्मूलों को प्रभावित कर रहा है। अभी तक सीटें बट न पाने से बसपा से ज्यादा बेचैनी सपा में है। सीटों के बटवारे की स्थिति साफ न होने से टिकट के लिए मजबूत दावेदार भी ऊहापोह में हैं। यही नहीं प्रदेश में कांग्रेस की चुनावी कमान प्रियंका गांधी के हाथ में आने के बाद समीकरण बदल सकते हैं। इस कारण भी सपा-बसपा सीट घोषित कर लेने से पहले कील-कांटा दुरुस्त कर लेना चाहते हैं।
नोएडा सीट पर असमंजस
सपा अपने लिए नोएडा सीट चाह रही है जबकि यह बसपा को मिलनी है। रालोद को बागपत, मुजफ्फरनगर व मथुरा सीट सपा देने को तैयार है। पर, रालोद को इसके अलावा कैराना व अमरोहा सीट भी चाहिए। पूर्वी यूपी में आजमगढ़ सीट पर मुलायम सिंह यादव के न लड़ने के कारण बसपा इस सीट को चाह रही है। मध्य यूपी व पूर्वांचल की करीब छह सात सीटों पर इसी तरह कश्मकश है।
पूर्वी यूपी में श्रावस्ती, बहराइच, गोंडा व कैसरगंज सीट को लेकर भी अभी सहमति नहीं बन पाई है। इसमें सीटों में फिर से अदला-बदली की संभावना बन रही है। असल में दोनों दलों में कुछ ऐसे प्रभावशाली दावेदार हैं जो सहयोगी के खाते में सीट जाते देख कर बेचैन हैं। इसी कारण वह अपने संपर्कों के जरिए सपा-बसपा के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में हैं। दोनों दलों में इसी तरह कश्मकश के चलते सीट घोषित होने में विलंब हो रहा है।
नगीना सीट पर भी ऊहापोह
असल में पश्चिमी यूपी में नगीना सुरक्षित सीट पर बसपा चुनाव लड़ना चाह रही है। पिछले चुनाव में इस सीट पर नंबर दो पर सपा थी। ऐसे में यह सीट उसी को मिलनी है लेकिन इस सीट को बसपा अपने लिए चाह रही है। यही हाल बिजनौर सीट का है। यहां भी बसपा का खासा असर रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती बिजनौर सीट से चुनाव जीत चुकी हैं। बताया जा रहा है कि इस बार बसपा अपनी अध्यक्ष के लिए नगीना सुरक्षित सीट ज्यादा मुफीद मान रही है।
सपा खेमे में ज्यादा बेचैनी
वैसे तो सपा बसपा एक दूसरे के प्रति खासी सद्भावना दिखाते हुए चुनाव लड़ने में लगे हैं लेकिन चुनाव तैयारियों के नजरिए से देखा जाए तो सपा में स्थिति साफ नहीं है। बसपा ने तमाम सीटों पर लोकसभा प्रभारी तय कर उस क्षेत्र में चुनाव तैयारियों पर फोकस कर दिया। वहीं सपा खेमे में टिकट के तमाम दावेदारों को अभी यह साफ नहीं हो पाया है कि इच्छित सीट उनके दल के पास रहेगी या नहीं। यही नहीं सपा को गठबंधन में शहरी क्षेत्रों वाली सीटें मिलने की ज्यादा संभावना जताई जा रही है। इन सीटों पर कांग्रेस भी मजबूती से लड़ती रही है। वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों में अधिकांश सपा के खाते में आने की संभावना है।
सवा महीने पहले हुआ था गठबंधन का ऐलान
सपा व बसपा ने 12 जनवरी को लखनऊ में संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस कर गठबंधन का ऐलान करते हुए कहा था कि वह दोनों 38- 38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। कांग्रेस के लिए दो सीटें अमेठी व रायबरेली छोड़ी गई हैं, जबकि दो सीटें अन्य दलों के लिए छोड़ी गईं। गठबंधन को उम्मीद है कि भाजपा के सहयोगी भासपा व अपना दल नाराजगी की स्थिति में अगर उनके साथ आए तो दो सीटें उनको दी जा सकती हैं।