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जानें डॉ.संजय ने कैसे तय किया निषाद आरक्षण आंदोलनकारी से कैबिनेट मंत्री तक का सफर

उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) नए सितारे की तरह चमक रही है। भाजपा से गठबंधन के बाद पार्टी की ताकत लगातार बढ़ रही है। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने

जानें डॉ.संजय ने कैसे तय किया निषाद आरक्षण आंदोलनकारी से कैबिनेट मंत्री तक का सफर
मनीष मिश्र,गोरखपुरFri, 25 Mar 2022 07:03 PM

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उत्‍तर प्रदेश की राजनीति में निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) नए सितारे की तरह चमक रही है। भाजपा से गठबंधन के बाद पार्टी की ताकत लगातार बढ़ रही है। विधानसभा चुनाव में पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर 16 सीटों पर प्रत्याशी खड़े किए थे। इनमें से 11 पर जीत हासिल हुई है।

निषादों को पूर्वी यूपी का बड़ा वोटबैंक माना जाता है। राजनैतिक और सामाजिक रूप से उपेक्षित निषादों को पूर्व मंत्री स्व. जमुना निषाद ने बड़ी पहचान दी। उनके निधन के बाद निषाद पार्टी ने धीरे-धीरे समाज को सहेजना शुरू किया। इसमें 7 जून 2015 में सहजनवा का कसरवल कांड अहम मोड़ साबित हुआ। एससी आरक्षण के लिए रेलवे ट्रैक पर आंदोलन उग्र होने पर हुई पुलिस फायरिंग में एक युवक की मौत हो गई थी। इस मामले में डॉ. संजय निषाद और उनके समर्थकों पर केस हुआ और 35 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। इसके बाद डॉ. संजय निषाद बड़े नेता के तौर पर उभरे।

इलेक्ट्रो होम्योपैथ के वजूद को पहचान दिलाने से शुरू हुआ संघर्ष
डॉ. संजय निषाद ने इलेक्ट्रोहोम्योपैथी का कोर्स किया है। इस कोर्स को बतौर चिकित्सा विधा के सम्मान दिलाने के लिए उन्होंने संघर्ष शुरू किया। वर्ष 2002 में पूर्वांचल मेडिकल इलेक्ट्रो होम्योपैथी एसोसिएशन का गठन किया। इसके माध्यम से वह इस विधा को मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष करने लगे। कई नेताओं और प्रभावशाली लोगों से मुलाकात की। फिर अपने समाज के उत्थान के लिए उन्होंने वर्ष 2013 में निषाद पार्टी का गठन किया। इसके पहले उन्होंने वर्ष 2008 में ऑल इंडिया बैकवर्ड एंड माइनारिटी वेलफेयर मिशन और शक्ति मुक्ति महासंग्राम नाम के दो संगठन भी बनाए थे। संघर्ष को मुकाम देने के लिए वह राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद बनाकर भी लोगों को सहेज चुके थे।

पीस पार्टी के साथ समझौता कर लड़े चुनाव
2017 के विधानसभा चुनाव में पहली बार निषाद पार्टी ने पीस पार्टी के साथ समझौता कर चुनाव लड़ा। गठबंधन के तहत निषाद पार्टी ने 60 सीटों पर प्रत्याशी उतारे लेकिन जीत सिर्फ ज्ञानपुर सीट पर विजय मिश्रा को मिल सकी। इस चुनाव में डॉ. संजय निषाद गोरखपुर ग्रामीण से चुनाव हार गए। उन्हें 4,869 वोट मिले। वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने गोरखपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। वर्ष 2018 में गोरखपुर लोक सभा सीट पर हुए उप चुनाव में संजय निषाद ने सपा से गठबंधन कर बेटे प्रवीण निषाद को चुनाव लड़ाया। इस लोकसभा सीट पर पहली बार भाजपा को पराजय मिली। डॉ. संजय ने भाजपा प्रत्याशी को हराकर बेटे को संसद पहुंचा दिया। इससे डॉ. संजय निषाद का ग्राफ बढ़ गया। इसके बाद वर्ष 2019 के पूर्व वह भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने प्रवीण निषाद को संतकबीर नगर जिले से टिकट दिया। वह संतकबीर नगर से सांसद चुने गए। विधान सभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने डॉ. संजय निषाद को वर्ष 2021 में विधान परिषद में पहुंचाया।

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