बिजनेस में कई बार असफल होने के बाद पति- पत्नी ने मिलकर बनाई कामयाबी की राह VIDEO
कहते हैं कि हर कामयाब इंसान के पीछे किसी औरत का हाथ होता है। गोरखपुर के अजीत सिंह इस कहावत की जीती जागती मिसाल हैं जिनकी पत्नी सुलेखा ने उनकी जिंदगी बदल दी। बिजनेस में बार-बार मिल...
कहते हैं कि हर कामयाब इंसान के पीछे किसी औरत का हाथ होता है। गोरखपुर के अजीत सिंह इस कहावत की जीती जागती मिसाल हैं जिनकी पत्नी सुलेखा ने उनकी जिंदगी बदल दी। बिजनेस में बार-बार मिल रही असफलता के बीच सुलेखा ने न सिर्फ पति और परिवार को सम्भाला बल्कि कामयाबी की नई राह भी दिखाई। आज घर से बिजनेस तकअजीत-सुलेखा का साथ, जानने वालों के बीच मिसाल बन रहा है।
लगातार 11 वें साल करवा चौथ व्रत कर रहीं सुलेखा कहती हैं, 'पति का चेहरा देखकर निर्जल व्रत तोड़ने से भी ज्यादा जरूरी है जिन्दगी की कड़ी प्रतिस्पर्धा में उनका साथ देना।' इंटरमीडिएट तक पढ़ीं सुलेखा आज जिस कुशलता से बिजनेस सम्भालती हैं वो लोगों को हैरान करती है। हार्डवेयर और इलेक्ट्रिक सामानों की होल सेल और फुटकर कारोबारी सुलेखा काउंटर ही नहीं एकाउंटिंग भी बखूबी सम्भालती हैं। आज गोरखपुर-बस्ती मंडल के विभिन्न जिलों में उनके सामान की सप्लाई है। बिजनेस अच्छा-खासा चल रहा है लेकिन 18 साल पहले आर्थिक संकटों का सामना कर रहे पति को यह बिजनेस को शुरू करने और इस मुकाम तक पहुंचाने की ताकत सुलेखा ने ही दी।
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गोरखपुर के बांसगांव क्षेत्र के कनईल गांव के अजीत सिंह इंटरमीडिएट के बाद नागालैंड चले गए थे। वहां वह टोपी-बेल्ट-चश्मे की दुकान चलाते थे। 1999 में गोरखपुर के ही रानीडिहा के पास भगता गांव की सुलेखा से उनकी शादी हो गई। इसके बाद अजीत नागालैंड से लौट आए। रिश्तेदारों की सलाह पर एक ट्रक खरीदा लेकिन इस काम में उन्हें भारी घाटा लगा। औने-पौने दाम पर ट्रक बेचना पड़ा। इसके बाद अजीत ने ट्रैक्टर-टॉली से बालू बेचने, पेंट-पालिश के सामान बेचने जैसे कई काम किए लेकिन एक के बाद एक, हर काम में नाकामयाबी ही मिली। नौबत यहां तक आ गई कि कोई भी कारोबार करने के लिए उनके पास पूंजी ही नहीं बची। मार्केट से सामान मिलना मुश्किल हो गया। तब अजीत सुबह ग्राहकों से पैसा जमा कराते, मांग के हिसाब से सामान खरीदकर शाम को उनके घर पहुंचाते। हालात दिन ब दिन खराब होते जा रहे थे। ऐसे में सुलेखा ने अपने भाइयों मदद से अपने पति को रानीडिहा के पास कारोबार करने के लिए गड़ढे की एक जमीन दिलाई। अपने गहने दिए जिसे बेचकर अजीत सिंह ने उस जमीन पर टिनशेड में काम शुरू किया। पत्नी की ही सलाह पर उन्होंने एक कम्पनी की एजेंसी ले ली। अजीत सिंह बताते हैं, 'बड़ी कठिनाई से 50 हजार रुपए जुटाकर एजेंसी ली। तब हम पति-पत्नी ने सोचा कि अब यदि असफल हुए तो कुछ भी नहीं बचेगा। इसके बाद दोनों पूरी मेहनत से दुकान चलाने में जुट गए। धीरे-धीरे एजेंसी का काम गोरखपुर-बस्ती मंडल में फैल गया। आज कई कम्पनियों की एजेंसी है। कारोबार अच्छा चल रहा है। इसके पीछे मेरी पत्नी सुलेखा की बड़ी मेहनत है।' सुलेखा कारोबार में ऐसी रमीं कि उन्हें दुकान-गोदाम में रखी हजारों छोटी-बड़ी चीजों के दाम जुबानी याद हैं। ग्राहकों, कम्पनियों के सेल्स मैनेजरों से रेट और कारोबार की बारीकियों पर धड़ल्ले से बात करती हैं। अजीत सिंह जब बिजनेस को बढ़ाने के लिए बाहर गए होते हैं तब भी सारा प्रबंधन वैसे ही चलता है। दुकान और गोदाम में सहयोग करने वाले सात कर्मचारी, दो बेटे और पति के लिए सुबह, दोपहर, शाम का नाश्ता-भोजन भी वह खुद ही तैयार करती हैं। इसके साथ 70 वर्षीय सास की सेवा और गांव की खेतीबारी का हिसाब रखना भी उन्हीं के जिम्मे है।
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