वेस्ट यूपी में जाट किसकी कराएंगे ठाठ, जानें 120 सीटों पर कैसे बन-बिगड़ रहे समीकरण
जिसके साथ जाट-उसके ठाठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी ठाठ पाने को जाट समाज के वोटों पर घमासन छिड़ गया है। भाजपा अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती है तो सपा-रालोद गठबंधन सिंहासन का मुंह अपनी ओर मोड़ना...
जिसके साथ जाट-उसके ठाठ। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी ठाठ पाने को जाट समाज के वोटों पर घमासन छिड़ गया है। भाजपा अपना वर्चस्व बनाए रखना चाहती है तो सपा-रालोद गठबंधन सिंहासन का मुंह अपनी ओर मोड़ना चाहता है। बुधवार को गृहमंत्री अमित शाह ने भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेताओं से दिल्ली में मुलाकात की। यह पहला मौका है, जब चुनाव में जाट समाज को साधने की कोशिश हुई है। जाट नेताओं ने गन्ना मूल्य के साथ ही जाट आरक्षण का भी मुद्दा उठाया।
वेस्ट यूपी की सियासत में जाट वोट अहम हैं। यह जिस तरफ होते हैं, सत्ता का सिंहासन उसी तरफ घूम जाता है। 1937 से 1977 तक चौधरी चरण सिंह कांग्रेस में थे। तब जाट समुदाय कांग्रेस का साथ था। चौधरी साहब ने कांग्रेस छोड़ी तो यह कांग्रेस से अलग हो गया। नतीजा यह निकला कि जहां पहले कांग्रेस का एकछत्र राज पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होता था, वहां बाद में कांग्रेस एक सीट को भी तरसने लगी। यह स्थिति आजतक बनी हुई है। भाजपा और रालोद के बीच तो सारी लड़ाई ही जाट मतों को लेकर है। यूपी में करीब आठ प्रतिशत वोट जाट बिरादरी के हैं लेकिन यह बिरादरी राजनीतिक रूप से अत्यधिक जागरूक मानी जाती है और किसी भी दल की हवा बनाने और बदलने में सबसे आगे है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के पहले चरण में ज्यादातर सीटों पर इनके ही मतों को लेकर घमासान है। किसान आंदोलन और कैराना पलायन के मुद्दे के बाद भी अहम सवाल यही है कि जाट किस तरफ जाएंगे।
यूपी में जाटों की आबादी 6 से 8 फीसदी मानी जाती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यही संख्या 17 फीसदी के करीब है। लोकसभा की 18 और विधानसभा की 120 सीटों पर इनका प्रभाव है। सहारनपुर, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत,बिजनौर, गाजियाबाद, मुरादाबाद, अमरोहा, गौतमबुद्धनगर से लेकर मथुरा तक यह समाज निर्णायक भूमिका में है। मुजफ्फरनगर दंगे के बाद सियासी समीकरण भी बदला।
पहले जाटों को टिकट कम मिलते थे, 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद इनका प्रतिनिधित्व भी बदला। लोकसभा में इस वक्त समाज के 24 सांसद हैं। यूपी में 14 विधायक इसी समाज के हैं। इसलिए इन सारी सीटों पर घमासान है।
● 2014 मार्च में 9 राज्यों को केंद्रीय स्तर की ओबीसी लिस्ट में शामिल किया गया।
● 2015 में इस लिस्ट को उच्चतम न्यायालय ने खत्म कर दिया।
● 26 मार्च 2015 को पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने जाट समाज आरक्षण का आश्वासन दिया।
● फरवरी 2017, यूपी चुनाव के वक्त 17 मार्च 2017 को हरियाणा के आंदोलन का समझौता करते समय फिर आरक्षण का वादा मिला।
● मानसून सत्र 2021 में एनसीबीसी एक्ट में संशोधन से आरक्षण का हक राज्यों को दिया गया, इसके अनुसार हरियाणा, पंजाब, जम्मू, कश्मीर, महाराष्ट्र व आंध्र का प्रदेश स्तर का आरक्षण राज्य सरकारों को देना है।
यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में हो रहे विधानसभा चुनाव की 240 सीटों पर जाट समाज का प्रभाव माना जाता है। यूपी में 125, पंजाब में 100 और उत्तराखंड में ऐसी 15 सीटें हैं।
मैं चवन्नी नहीं हूं जो उछल कर दूसरे पाले में चला जाऊं। भाजपा एक बार फिर चुनाव में माहौल खराब करने का प्रयास कर सकती है। गठबंधन में दरार पैदा करने का प्रयास भी किया जा रहा है। इस बार लोगों को संभल कर रहना होगा। किसी के बहकावे में नहीं आना है।
जयंत चौधरी, राष्ट्रीय अध्यक्ष, रालोद
चौधरी साहब ने कांग्रेस से अलग होने के बाद सत्ता का अपना सियासी समीकरण बनाया। अजगर यानी अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत। उनकी सारी सफलता इसी पर केंद्रित रही। बाद में मजगर भी इसमें जुड़ गया-यानी मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत। चौधरी चरण सिंह कभी भी अपने को जाट नेता कहलवाना पसंद नहीं करते थे। यही बात भाकियू के अध्यक्ष महेंद्र सिंह टिकैत की भी थी। उनके साथ सर्वसमाज जुड़ा था। मुस्लिम-जाट मिलने के बाद सत्ता ऐसी बदली कि मजगर वेस्ट यूपी की सियासत में आज भी निर्णायक है। 2014 हो या 2017 के चुनावी परिणामों के मद्देनजर सबसे बड़ा सवाल यही है...जाट किस तरफ ?
बुधवार को गृहमंत्री अमित शाह ने वेस्ट यूपी के जाटों को साधा। करीब ढाई सौ जाट नेताओं के साथ बैठक में शाह रालोद का विषय भी छेड़ा । यह भी कहा कि रालोद से हमने परहेज नहीं किया। सपा के साथ जाकर उनको नुकसान ही होगा। इसके जवाब में रालोद मुखिया जयंत चौधरी ने कहा कि हमको ऑफर मत दो। हमारे लिए किसान आंदोलन में शहीद किसानों का मुद्दा अहम है।
जाट समाज मूलत: आर्यसमाज से जुड़ा है। अपनी आन-बान और शान से जीने वाला यह वर्ग अपनी समाज और संस्कृति को विशेष महत्व देता है। इसलिए, 1992 में नईमा कांड में इस समाज के साथ मुसलिम भी काफी जुड़े। बहू-बेटियों की इज्जत इस समाज के लिए अहम है। आंदोलन से यह पीछे नहीं हटते। साक्षरता दर बढाने से लेकर फौज में नौकरियों तक इस समाज का ग्राफ काफी ऊपर है।
हम भी रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को चाहते थे, लेकिन उन्होंने गलत घर चुन लिया। अगली बार उनसे बात कर लेना। जाट समाज ने हमेशा भाजपा को वोट दिया है। आपने हमेशा हमारी झोली वोटों से भरी।
अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री