ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेशInterview: प्रधानमंत्री के लिए विपक्ष के पास बहुत नाम, भाजपा के पास एक- अखिलेश

Interview: प्रधानमंत्री के लिए विपक्ष के पास बहुत नाम, भाजपा के पास एक- अखिलेश

कभी समाजवादी पार्टी की धुर विरोधी रहीं बसपा की मुखिया मायावती के साथ गठबंधन कर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा को चुनौती दी है। वहीं कांग्रेस के चुनावी समीकरणों को भी झटका दिया है।...

Interview: प्रधानमंत्री के लिए विपक्ष के पास बहुत नाम, भाजपा के पास एक- अखिलेश
लखनऊ, केके उपाध्यायSat, 20 Apr 2019 11:46 AM
ऐप पर पढ़ें

कभी समाजवादी पार्टी की धुर विरोधी रहीं बसपा की मुखिया मायावती के साथ गठबंधन कर सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भाजपा को चुनौती दी है। वहीं कांग्रेस के चुनावी समीकरणों को भी झटका दिया है। गठबंधन की रैलियों, सभाओं में उमड़ रही भीड़ और पहले व दूसरे चरण के मतदान के बाद अखिलेश पूरे जोश में नजर आ रहे हैं। वह गठबंधन को ही देश में महापरिवर्तन का माध्यम करार दे रहे हैं। ‘हिन्दुस्तान’ लखनऊ के कार्यकारी संपादक केके उपाध्याय से उन्होंने मायावती से गठबंधन, यूपी की सियासत और चुनाव के मुद्दे पर खुलकर बात की।

अखिलेश जी इस बार आप गठबंधन के साथ चुनाव में हैं, पूरे देश की निगाहें उत्तर प्रदेश पर हैं। आप किन मुद्दों को लेकर चुनाव मैदान में हैं। 

पिछले विधानसभा चुनाव में सपा ने कहा कि काम बोलता है, और इसी नारे पर हम लोग चुनाव में गए। लेकिन भाजपा ने कभी दिवाली-रमजान और श्मशान-कब्रिस्तान की बात कही। हमारा अभी भी मानना है जो मुद्दे हैं उनमें भाजपा आना नहीं चाहती है। हम उनसे अच्छे दिन पूछ रहे हैं। किसान की बदहाली के बारे में चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम किसानों को लाभकारी मूल्य देंगे, लेकिन किसानों को खाद उपलब्ध नहीं हो पा रही है। खाद कम दे रहे हैं, डीजल पेट्रोल महंगा हुआ है।  नौजवानों को नौकरी देने की बजाय नौकरियां कम कर दी नोटबंदी और जीएसटी ने। इन्होंने वन डिस्ट्रिक्ट-वन प्रोडक्ट की बात की जमीन पर नहीं उतार सके। इन्वेस्टेमेंट मीट इन्होंने किया, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को बुलाए। पर जमीन पर कुछ नहीं उतार सके। आज भी हमारे मुद्दे हैं। लेकिन जीतने के लिए समीकरण जरूरी है। इसलिए सपा ने गठबंधन किया है। भाजपा ने गठबंधन पहले किया था। उनके गठबंधन ने हमें विधानसभा चुनाव हराया था। अब ये गठबंधन उनसे मुकाबला कर लेगा। 

मोदी जी भाषणों में कहते हैं कि यह नेचुरल गठबंधन नहीं है। धुर-विरोधी दल सिर्फ सत्ता के लिए एक मंच पर आ गए हैं। 

 राजनीति में परिस्थितियों के हिसाब से गठबंधन हुआ करते हैं। सबसे नेचुरल गठबंधन अगर है तो यही है। यह बात इसलिए कहता हूं कि भीमराव आंबेडकर और लोहिया मिलकर काम करना चाहते थे। डा. आंबेडकर के स्वास्थ्य और समय ने साथ नहीं दिया जिससे दोनों नेता एक साथ काम नहीं कर पाए। इनके पत्र आरकाइव में हैं। एक बार नेता जी और कांशीराम ने यही गठबंधन किया था इस बार यह गठबंधन जमीन का गठबंधन है। यह विचारों का संगम है। भाजपा को कुछ नहीं कहना चाहिए। उन्होंने पिछले साल कश्मीर में गठबंधन किया था। तीन साल सरकार चलाई। विचारधारा से उलट के लोग थे आधे रास्ते से भाग गए। उत्तर प्रदेश में ओम प्रकाश राजभर को देखिए अभी भी सुबह-शाम जब मौका मिलता है अपने विचार दे देते हैं। अपना दल से इन्होंने गठबंधन किया है। जब ये गठबंधन किए हैं तो हमारी मजबूरी बनती है कि हम भी गठबंधन करें। जो रास्ता उन्होंने दिखाया उसी रास्ते पर हम चल रहे हैं। हमारा अच्छा खासा निषाद पार्टी का नेता था पता नहीं आश्रम से कौन सा प्रसाद मिला। वह प्रसाद लेकर चला गया। नार्थ ईस्ट में भाजपा ने उन लोगों से गठबंधन किया है जो बिल्कुल विपरीत विचारधारा के लोग हैं। 

यह भी पढ़ें- चुनावी विश्लेषण : मुलायम को पिछड़ों का असली नेता बता गईं मायावती

आप गठबंधन की बात करते हैं यदि विपक्ष सत्ता में आता है तो पीएम पद का उम्मीदवार आप किसे सोचते हैं। क्या आप हैं?  

पिछले 15 सालों से केंद्र में गठबंधन की सरकारें चल रही हैं। दो कांग्रेस की थीं और एक भाजपा की। देश में जब कभी जरूरत पड़ती है नए नामों की, पार्टियां और जनता तय कर लेती हंै। विपक्ष के पास तो च्वाइस ही च्वाइस है। जब भी मौका मिला है सबने अच्छा काम किया है। भाजपा में कोई च्वाइस नहीं है। वह नया भारत बनाना चाहते हैं हम नया प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। नाम में कुछ नहीं है नाम अपने आप चुनाव के बाद मिल जाएंगे। 

मायावती इशारों-इशारों में और स्पष्ट रूप से कह चुकी हैं कि वह प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकती? 

अच्छी बात है अगर उन्होंने समय-समय पर कहा है। देश के किसी कोने से कोई प्रधानमंत्री बन सकता है। देश को नया प्रधानमंत्री यूपी से मिले इससे अच्छी बात क्या होगी। यह मैं इसलिए कह रहा हूं सब नाम तय हो जाएंगे, जब गठबंधन में हैं। पहले सोचने की बात ही नहीं है। नाम चुनाव बाद तय हो जाएगा।  

गठबंधन की जब बातें चल रही थीं तब यह था कि कांग्रेस आपके साथ आ सकती है, ऐसा क्या हुआ कि आप कांग्रेस को साथ लेकर नहीं चले। 

भाजपा को रोकने की बात है। सवाल यह है कि भाजपा को कौन रोक सकता है। सपा, बसपा और रालोद ही यह कर सकते हैं। यह गठबंधन ही संघर्ष कर सकता है। यही सक्षम है। 

क्या आपको नहीं लगता कि कांग्रेस थोड़ी ताकत या ठीक से लड़ती है तो नुकसान आपको होगा। 

जब चुनाव होता है हर दल कुछ ना कुछ फैसले लेता है। सपा, बसपा, रालोद का मकसद है भाजपा को रोकना। क्योंकि भाजपा ने देश की सभी संस्थाओं को बर्बाद कर दिया है। कांग्रेस का लक्ष्य है कांग्रेस पार्टी बनाना। उनका लक्ष्य भाजपा को रोकना नहीं 2022 में सरकार बनाना है। यह फर्क है गठबंधन और कांग्रेस में। तीन राज्य जीतने के बाद कांग्रेस ने किसी से बात तक नहीं की। शायद उन्हें लगता था कि तीन राज्यों में जो परिणाम आया वही लोकसभा में आएगा। उनके एक्सपर्ट ने राय यही दी होगी। 

आपने अब चुनावी भाषणों को चाय वाला बनाम दूधवाला कर दिया है। यह विचार कहां से आया। इसकी जरूरत क्यों पड़ी। 

 अगर हेडलाइन अच्छी नहीं होगी तो कोई न्यूज नहीं पढ़ेगा। भाषण में जब तक मसाला ना हो लोगों को मजा नहीं आता। लोग भाषण सुनने आए हैं तो उनकी बात नहीं कहेंगे तो किसकी बात करेंगे। जो लोग चाय पीकर थक जाते हैं वे ब्लैक टी और ग्रीन टी पर चले जाते हैं। लेकिन अभी ग्रामीण इलाकों में लोग दूध की ही चाय पीते हैं। चाय तभी अच्छी होगी जब दूध अच्छा होगा। 

आपका एजेंडा क्या है, भविष्य की योजनाएं क्या हैं और उन्हें लागू कैसे करेंगे। आप तो कुल 40 सीटों पर हैं और 40 पर ही मायावती लड़ रही हैं।  

हालांकि मेनिफेस्टो हमने नहीं लागू किया है। हमने विजन डाक्यूमेंट रखा है। कांग्रेस न्याय योजना ला रही है। समाजवादियों ने करके दिखाया है। हम ये कहते हैं कि तीन हजार रुपये देंगे। उन लोगों को शामिल करेंगे जो विकलांग, विधवा पेंशन योजनाओं से होंगे। अलग अलग पेंशन योजनाएं हैं। सभी को समाजवादी पेंशन के तहत 3000 रुपये पेंशन देंगे। इसके लिए इलीट क्लास से दो फीसदी लेंगे, सेस लगेगा। इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर नहीं होगा तो विकास कैसे होगा। हमारा बड़ा उदाहरण है एक्सप्रेस वे, बड़ा उदाहरण है एयरपोर्ट, बड़ा उदाहरण है मेट्रो, बड़ा उदाहरण है कैंसर  इंस्टीट्यूट यही तो भाजपा कह रही है। हम एचसीएल लाए उत्तर प्रदेश में। हमने बिजली बनाने का काम किया। इनवेस्टमेंट का माहौल बनाया। हम ये जानते हैं। यह सब हमारे एजेंडे में रहेगा। लोहिया आवास रहेगा तीन लाख पांच हजार रुपये देते थे हम। यदि टेक्नालाजी बदलने से चीजें सस्ती हुई हैं तो उसे अपनाना चाहिए। सोलर पंप से कन्नौज के एक गांव में चार साल से फ्री बिजली चल रही है। आज पढ़ाई बदलनी है। हम पढ़ाई को भी बदलना चाहते हैं। सबसे अधिक मुनाफा रिटेल में रिलायंस को हुआ। हमनें लैपटाप बांटे थे। आज भी लैपटाप खराब नहीं हुए। बिजनेस का तरीका बदला है तो पढ़ाई का तरीका भी बदलना पड़ेगा। स्किल डेवलेपमेंट प्रोग्राम भी बदलने पड़ेंगे। 

कांग्रेस ने न्याय योजना कहकर साल के 72 हजार रुपये देने की बात कही है। क्या इससे देश पर बोझ नहीं पड़ेगा। यह मुमकिन है।?

कांग्रेस के बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता हूं।  हमने पांच सौ रुपये 55 लाख महिलाओं को देने की व्यवस्था की थी। ऐसा काम कीजिए गरीबों का काम भी चल जाए और अर्थव्यवस्था पर बोझ भी ना पड़े। पता लगा कि 3000 देने की बात तो हो सकती है लेकिन इतना पैसा कहां से लाएंगे। खैर यह उनका मुद्दा है कहां से लाएंगे। जहां जहां इन्होंने वादे किए थे क्या हुआ, एमपी की बात कर लीजिए बेरोजगारी भत्ता, कर्ज माफी नहीं हो सकी। सरकार बनाने के लिए ऐसा वादा नहीं किया जाना चाहिए जो पूरा ना हो सके। यदि पूरा कर लिए तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। हमने यूपी में करके दिखाया है। हम तीन हजार भी कर सकते हैं।

यह भी पढ़ें- यूपी में कांग्रेस नहीं हम भाजपा से लड़ रहे : अखिलेश यादव

प्रियंका गांधी वाड्रा की चुनाव में एंट्री को किस तरीके से देखते हैं। 

अच्छी बात है वह राजनीति में आई हैं। और काम करें और अच्छी बात होगी। कम से कम बदलाव की बात तो होगी। दुनिया में बदलाव पर कांग्रेस के लोग सोचेंगे तो सही। अमेरिका, फ्रांस व रूस कहां पहुंच गए। यह लोग आएंगे तो उन्हें एहसास तो होगा कि कहां गलती हुई किस कारण हम आगे नहीं बढ़ पाए। जब आकलन करेंगे तो रिजल्ट अच्छा निकलेगा। अच्छी बात है उनका आना। 

यूपी में प्रदेश सरकार के दो साल हो गए हैं उनके कामकाज को कैसे देखते हैं। आप क्या सोचते हैं कहां-कहां काम नहीं हुए हैं। 

बाबा मुख्यमंत्री बहुत अच्छे हैं। बाबाजी को जब फुर्सत मिलती है भजन में लीन हो जाते हैं। हम समझते हैं इन्हें ऐसे ही काम करते रहना चाहिए तभी तो हम सरकार में आएंगे। जनता फर्क तो देख रही है। अभी तक कोई नया काम नहीं किया। यह कहते हैं कि लखनऊ का चुनाव विरासत का चुनाव है। अटल बिहारी वाजपेयी जी के गांव मैं गया था। उसी दिन इन्होंने इकाना स्टेडियम जो पीपीपी मॉडल पर बना था उसका नाम बदल दिया, भगवान से आगे निकल गए ये लोग। हजरतगंज चौराहे का नाम बदला, कोई नहीं बोलता। इतने बड़े नेता के नाम पर चौराहे का नाम किया। रिवर फ्रंट उनके नाम कर देते और काम तो शुरू करा देते। कैंसर  इंस्टीट्यूट का नाम रखकर काम शुरू कर देते। कोई नई बिल्डिंग बनाकर उसके सामने उनकी प्रतिमा लगाते तो उनका सम्मान बढ़ता। पता नहीं भाजपा कैसी है। बाबा मुख्यमंत्री का रहना ही हमें सत्ता में लाएगा। 

सपा सरकार के बहुत सारे कामों की जांच शुरू कराई गई है, और काम रुक गए हैं। 

इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जांचें, शिकायतों से कुछ नहीं निकला। एक्सप्रेस-वे, जेपी एनआईसी, रिवर फ्रंट की जांच में भी कुछ नहीं निकला। अगर जांच कराके ही सत्ता में आना है तो एक भी अधिकारी इनका साथ नहीं देगा। आप कल्पना कीजिए जिसने जांच का आदेश दिया वही चीफ सेक्रेटरी उस समय प्रमुख सचिव वित्त थे। यानी वह खुद ही अपनी जांच करेंगे। सत्ता की वजह से क्या-क्या लोग फैसले करा लेते हैं। यह बेस्ट साल्यूशन है। गंगा एक्शन प्लान का पहला प्लान यह था कि कोई गंदा पानी ना आए। हमने वह कर दिखाया। इन्हें यह बुरा लग रहा है कि अहमदाबाद के रिवर फ्रंट से अधिक सुंदर गोमती रिवर फ्रंट है। लोग परिवार के साथ बैठ सकते हैं। दुनिया में जहां भी रिवर फ्रंट हैं उससे बेहतर दिया। फाउंटेन पड़े हुए हैं, 50-60 करोड़ के एसी पड़े हैं। अब सुनने में आया है कि हेरिटेज एरिया का काम शुरू करने जा रहे हैं। जेपी एनआईसी को 60 करोड़ दिया, फिर काम शुरू होगा। इससे अच्छा करके दिखाइए। 

इस चुनाव में बदजुबानी बहुत चल रही है। आजम खां ने जो कहा उस पर आपने कुछ कहा नहीं। 

हमने यह कहा कि महिलाओं को सबसे ज्यादा सम्मान किया है हमेशा करेंगे। यदि उन्होंने कोई बात महिलाओं के लिए कही तो गलत किया है। उन्होंने किसके लिए कहा आप भी जानते हैं। लेकिन बातों को ट्विस्ट करने की ताकत भाजपा के पास है। अचानक चैनलों पर चलने लगा। आने वाले समय में सभी राजनीतिक दलों को अपनी ताकत टेलीविजन पर बढ़ानी पड़ेगी। मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाने के लिए यह करना होगा। उस समय मैं भी मंच पर था। हमने भी ध्यान नहीं दिया। हमने जब ध्यान दिया कि कहा गया तो बाद में महसूस किया कि किसी और के लिए कहा गया था, महिलाओं के लिए नहीं। आप सोचिए जो सपा का सांसद हो वह आरएसएस को अपना घर दे दे। उनके बारे में कहा गया था। देश में और भी घटनाएं हैं उनके बारे में चर्चाएं क्यों नहीं करते हैं। 

’अब चुनाव आयोग पर भी आरोप लगने लगे हैं। आयोग ने नेताओं पर प्रतिबंध लगाए। आप आजकल ठोकीदार शब्द भी मंचों से बोल रहे हैं। 

ऐसा बैन 2017 में चुनाव आयोग ने क्यों नहीं लगाया। उस समय प्रधानमंत्री क्या कह रहे थे?  श्मशान-कब्रिस्तान और दीवाली-रमजान। जाति-जाति को लड़ाने का स्टेटमेंट हो तो नफरत फैलाओ। धर्म को धर्म से कह रहे हैं तो नफरत फैला रहे हैं। भाजपा वाले सुबह शाम कहते हैं कि हिंदू एक हो जाओ। वह चुनाव आयोग नहीं देख रहा है। हम तमाम वीडियो लाकर दे सकते हैं, इससे संबंधित। तो कहीं ना कहीं उन्हें अपने मुख्यमंत्री को बैन करना था इसलिए विपक्ष को अधिक बैन किया। आप देखिए पुलिस ने एक अच्छे अधिकारी को ठोक दिया। हर जगह जनता पीट रही है। जनता और पुलिस को यह समझ नहीं आ रहा है कि किसको ठोक दो। वह इसलिए पीट रही है कि मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा था कि ठोक दो।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें