सेना ने दी 'धनुष' को हरी झंडी, कानपुर को पहले चरण में 114 का ऑर्डर
आठ साल से लगातार विभिन्न परीक्षणों और प्रयोगों से गुजर रही धनुष तोप आखिर अंतिम परीक्षा में पास हो गई। आतंकी हमलों के बाद सीमा पर तनाव के बीच सेना और रक्षा मंत्रालय ने 114 धनुष बनाने का ऑर्डर...
आठ साल से लगातार विभिन्न परीक्षणों और प्रयोगों से गुजर रही धनुष तोप आखिर अंतिम परीक्षा में पास हो गई। आतंकी हमलों के बाद सीमा पर तनाव के बीच सेना और रक्षा मंत्रालय ने 114 धनुष बनाने का ऑर्डर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री कानपुर को दिया है, जिसमें फील्डगन कानपुर और जबलपुर स्थित गन कैरिज फैक्ट्री भी अपनी भूमिका निभाएंगी। तीन चरणों में कुल 414 धनुष सेना के बेड़े में शामिल की जाएंगी। इसे बोफोर्स के स्थान पर लाया जा रहा है।
अपने प्रोटोटाइप परीक्षण से गुजर रही धनुष तोप को सोमवार को बहुप्रतीक्षित बल्क प्रोडक्शन क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (बीपीसी) मिल गया। ओएफसी में धनुष का उत्पादन वृहद स्तर पर शुरू कर दिया जाएगा। 114 आर्टिलरी गन को तीन साल में बना दिया जाएगा। ये देश की पहली पूरी तरह स्वदेशी 155 एमएम और 45 कैलिबर की आर्टिलरी गन है, जो 'मेक इन इंडिया' के तहत बड़ी कामयाबी है।
रात में भी सीधी फायरिंग में दक्ष
धनुष में इनर्शियल नेविगेशन सिस्टम को जोड़ा गया है। इसमें आटो लेइंग सुविधा है। ऑनबोर्ड बैलिस्टिक गणना और दिन व रात में सीधी फायरिंग की आधुनिकतम क्षमता से लैस है। इसमें लगी सेल्फ प्रोपल्शन यूनिट पहाड़ी क्षेत्रों में धनुष को आसानी से पहुंचाने में सक्षम है।
बोफोर्स का आधुनिक संस्करण है धनुष
बोफोर्स की उम्र 34 साल से ज्यादा हो गई है। इसे धनुष से रिप्लेस किया जाएगा। इसके लिए लंबे समय से बोफोर्स के ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी डॉक्यूमेंट पर काम किया जा रहा था। बोफोर्स से कई गुना बेहतर धनुष को मैकेनिकल रूप से अपग्रेड कर नाटो द्वारा तय अंतर्राष्ट्रीय मानक में तब्दील किया गया है। इसे इलेक्ट्रॉनिक रूप से भी अपग्रेड किया गया है, जिससे फायरिंग 'जीरो एरर' यानी गलती रहित हो गई है। इसका मतलब ये हुआ कि धनुष से निकला गोला केवल अपने लक्ष्य को भेदेगा। इसके अलावा हर तरह के हथियार का प्रयोग इसके जरिए किया जा सकता है।
बर्फ से रेगिस्तान तक 1600 किलोमीटर चलने में सक्षम
धनुष के ऊपर मौसम का कोई असर नहीं होता। यह -50 डिग्री सेल्सियस से लेकर 52 डिग्री की भीषण गर्मी में भी 24 घंटे काम कर सकती है। सेल्फ प्रोपेल्ड मोड में भी ये गन रेगिस्तान और हजारों मीटर ऊंचे खड़े पहाड़ों पर चढ़ सकती है। पहाड़ों व रेगिस्तान में ये 1600 किलोमीटर सफर तय कर सकती है। अबतक के सबसे कठिन परीक्षणों के बाद धनुष सेना के बेड़े का अंग बनेगी। इसके विकास में डीआरडीओ, डीजीक्यूए, बीईएल जैसे बड़े संस्थानों ने भी अपना योगदान दिया है।
आयुध निर्माणी बोर्ड के उपमहानिदेशक गगन चतुर्वेदी ने बताया कि धनुष का उत्पादन बड़े पैमाने पर करने के लिए बीपीसी का इंतजार था जो सोमवार को खत्म हो गया। पहले चरण में सेना को 114 धनुष सप्लाई किए जाएंगे। इसकी गुणवत्ता को देखते हुए विदेशी से बड़ी संख्या में इनक्वायरी आ रही है।