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वाराणसी में दोहराएगा 350 साल पुराना इतिहास, विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा बनने को तैयार ज्ञानवापी कूप

पौराणिक ज्ञानवापी कूप जल्द ही काशी के प्रधान शिवालय का हिस्सा बनने वाला है। काशी विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के तहत करीब साढ़े तीन सौ साल बाद यह प्रधान शिवालय आदि विश्वेश्वर मंदिर के परिक्रमा मंडप...

वाराणसी में दोहराएगा 350 साल पुराना इतिहास, विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा बनने को तैयार ज्ञानवापी कूप
अरविंद मिश्र,वाराणसी Fri, 16 Oct 2020 09:01 AM
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पौराणिक ज्ञानवापी कूप जल्द ही काशी के प्रधान शिवालय का हिस्सा बनने वाला है। काशी विश्वनाथ कारिडोर के निर्माण के तहत करीब साढ़े तीन सौ साल बाद यह प्रधान शिवालय आदि विश्वेश्वर मंदिर के परिक्रमा मंडप में यह शामिल होगा। 

विश्वनाथ मंदिर गर्भगृह के चारों ओर तैयार विशाल परिक्रमा मंडप ज्ञानवापी के उत्तरी हिस्से में आकार लेने लगा है। कॉरिडोर पूरब से पश्चिम की ओर बढ़ रहे इस मंडप का निर्माण खूबसूरत मेहराबदार पत्थरों से काराया जा रहा है। पूरब से पश्चिम की ओर करीब 40 फुट आगे बढ़ते ही यह परिक्रमा मंडप, ज्ञानवापी कूप को अपनी परिधि में ले लेगा। यह दूरी अब चंद फुट की ही रह गई है। बताते हैं कि औरंगजेब काल में तोड़े जाने से पहले ज्ञानवापी और ज्ञानवापी कूप आदिवश्वेश्वर मंदिर परिसर में ही थे।  प्रोजेक्ट प्रभारी शशिकांत ने बताया कि परिक्रमा मंडप बनाने के लिए मुख्य मंदिर के चारों तरफ बेस तैयार कर लिया गया है। दस फुट चौड़े और छह फुट गहरे सीमेंटेड बेस पर 70 फुट लंबे और 30 फुट चौड़े परिक्रमा मंडप को आकार देने में 157 जोड़ी खम्भों का उपयोग होगा। 

18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने जारी किया था फरमान
भारत पर लंबे समय तक हुकूमत करने वाले मुगल बादशाह औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1669 को फरमान जारी करके काशी के ज्ञानवापी स्थित तत्कालीन आदिविश्वेश्वर मंदिर को ध्वस्त करने का हुक्म दिया था। बादशाह का हुक्म मिलते ही मुगल सेना ने आक्रमण करके मंदिर ध्वस्त करने के बाद बादशाह के निर्देशानुसार मंदिर के मलबे से उसी स्थान पर मस्जिद बना दी। 

ज्ञानवापी और काशी एक दूसरे के पूरक
ज्ञानवापी और काशी एक दूसरे के पूरक हैं। काशी का अर्थ है ज्ञान का प्रकाश एवं ज्ञानवापी का अर्थ ज्ञानतत्व से पूर्ण जलयुक्त विशेष आकृति का तालाब है। स्कंदपुराण के काशीखंड में ज्ञानवापी का विस्तृत उल्लेख है। विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी बताते हैं कि मुगल सेना, आदि विश्वेश्वर लिंग को क्षति न पहुंचा दे, इसलिए उनके पूर्वज आठ बालिश्त (बित्ता) ऊंचे पन्ना के शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कूप में ही कूद कर थे, जिसका सीधा संपर्क गंगा से है। 
 

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