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रामजन्‍म मंदिर आंदोलन: बावर्दी कारसेवा की, फिर नौकरी छोड़ मंदिर के हो गए परदेशी

विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी बुधवार की सुबह अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के लिए गोरक्षपीठ की मिट्टी लेने आए तो परदेशी प्रसाद भावुक हो गए। अक्सर चुप रहने वाले परदेशी की आंखें खुशी से भीग उठीं।...

रामजन्‍म मंदिर आंदोलन: बावर्दी कारसेवा की, फिर नौकरी छोड़ मंदिर के हो गए परदेशी
राजीव दत्‍त पांडेय,गोरखपुरThu, 30 Jul 2020 10:55 AM
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विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी बुधवार की सुबह अयोध्या में राम मंदिर भूमि पूजन के लिए गोरक्षपीठ की मिट्टी लेने आए तो परदेशी प्रसाद भावुक हो गए। अक्सर चुप रहने वाले परदेशी की आंखें खुशी से भीग उठीं। मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी ने उनकी पीठ थपथपा सांत्वना दी। भरे गले से परदेशी बोल पड़े, ‘अब बड़े महराज (ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ) की आखिरी इच्छा भी पूर्ण होने जा रही है।’

30 अक्तूबर के मंदिर आंदोलन में बावर्दी गिरफ्तार हुए थे पीएसी के जवान परदेशी, चला राष्ट्रद्रोह का मुकदमा
33 साल की उम्र में महंत अवेद्यनाथ एवं राम मंदिर आंदोलन से प्रभावित हो छोड़ दी पीएससी की नौकरी
1990 से ही गोरखनाथ मंदिर में ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ के सान्निध्य में आ गए

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उप्र अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के सदस्य परदेशी प्रसाद मूलत: देवरिया के पिपरखेमकरन गांव के निवासी हैं। 1981 में उन्होंने पीएससी में नौकरी ज्वाइन की। प्रयागराज में संत सम्मेलन में उनकी बटालियन की ड्यूटी थी। राम मंदिर निर्माण एवं छूआछूत पर महंत अवेद्यनाथ के भाषण ने उन्हें प्रभावित किया। उनका रुझान राममंदिर आंदोलन की ओर हो गया। रामजन्म भूमि के 9 नवंबर 1988 को हुए शिलान्यास कार्यक्रम में बिना अवकाश लिए बावर्दी अयोध्या पहुंच गए। यहां फिर महंत अवेद्यनाथ के विचार सुने।

30 अक्तूबर 1990 के मंदिर निर्माण आंदोलन में परदेशी गिरफ्तार हो गए। बावर्दी बिना अवकाश लिए आंदोलन में शामिल होने पर उनके खिलाफ पीएसी कमांडर ने राष्ट्रद्रोह का मुकदमा दर्ज करा दिया। उसके बाद तो परदेशी ने नौकरी की कोई परवाह ही नहीं की। वह घर-बार छोड़ पूरी तरह राम के हो गए। 6 दिसंबर 1992 के आंदोलन में भी शामिल हुए। उधर शाहपुर थाने में दर्ज एफआईआर साक्ष्य के अभाव में 1993 में खारिज हो गई लेकिन अब तक परदेशी का मन पूरी तरह मंदिर आंदोलन में रम चुका था। गोरक्षपीठ उस दौर में मंदिर आंदोलन की बड़ी कर्मभूमि थी। परदेशी ने नौकरी से त्यागपत्र देकर खुद को मंदिर आंदोलन को समर्पित कर दिया। वह गोरखनाथ मंदिर की आंदोलन टीम का हिस्सा हो गए।

अब यह है परदेशी की दिनचर्या
गोरखनाथ मंदिर में वह मंदिर कर्मचारियों की हाजिरी एवं गोशाला का काम संभालते हैं। मंदिर में ही रहते हैं। पत्नी और बच्चे गांव में हैं।

बड़ा बेटा जितेंद्र प्रसाद अधिवक्ता है। बेटी पुष्पा भी नौकरी में है। बेटियां किरण और बबिता मां के साथ गांव में हैं। छोटा बेटा राघवेंद्र एमए कर रहा है। उससे छोटी बेटी नेहा 12वीं में पढ़ रही है।
परदेशी का गांव आना-जाना बेहद कम है। वर्षों बाद 2014 में मतदान करने गांव गए थे। उसके बाद से घर नहीं गए। वैष्णव मत के गृहस्थ संन्यासी हैं। मंदिर में निवास करते हैं। घर का खर्च अधिवक्ता पुत्र जितेंद्र प्रसाद संभालता है। कुछ पैतृक खेतीबाड़ी भी है। परदेशी कहते हैं, मेरे नौकरी छोड़ने पर परिजनों ने काफी विरोध जताया था, लेकिन राम मंदिर की लगन में मैंने किसी की नहीं सुनी।

अब बड़े महराज जी का सपना सच होने जा रहा है। उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राम मंदिर का शिलान्यास एवं निर्माण शुरू होने जा रहा है। वर्षो के इंतजार के बाद यह सबसे ज्यादा खुशी का क्षण आया है।
परदेशी प्रसाद

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