हिन्दी के बाद गुजराती, तेलुगू और बांग्ला में श्रीदुर्गासप्तशती की सबसे अधिक मांग, कोरोना काल में गीता प्रेस ने छापीं तीन लाख प्रतियां
देश एक है। विविधताओं से भरे इस देश में भाषाएं अनेक हैं। इसे एक सूत्र में बांधने में आस्था की भी भूमिका अहम है। आस्था का स्वरूप और परंपराएं भिन्न हैं पर मूल एक जैसा है। यही वजह है कि शक्ति की उपासना...
देश एक है। विविधताओं से भरे इस देश में भाषाएं अनेक हैं। इसे एक सूत्र में बांधने में आस्था की भी भूमिका अहम है। आस्था का स्वरूप और परंपराएं भिन्न हैं पर मूल एक जैसा है। यही वजह है कि शक्ति की उपासना हिन्दी भाषी राज्यों में घर-घर होती है तो गुजराती, तेलुगू और बांग्लाभाषी भी पीछे नहीं हैं। नवरात्र में शक्ति साधना के सर्वमान्य ग्रंथ श्रीदुर्गासप्तशती की हिन्दी के बाद सर्वाधिक मांग गुजराती, तेलुगू और बांग्ला में है। कर्नाटक हो, केरल हो या उड़ीसा, ज्यादातर राज्यों में यह पुस्तक शक्ति के उपासकों में लोकप्रिय है। धार्मिक पुस्तकों को दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने में लगी गीता प्रेस आठ भाषाओं में निरंतर इसे प्रकाशित कर रही है।
धार्मिक पुस्तकें लागत मूल्य पर उपलब्ध कराने के लिए प्रसिद्ध गीता प्रेस ने कोरोना काल में भी मांग को देखते हुए श्रीदुर्गासप्तशती की करीब तीन लाख प्रतियां प्रकाशित की है। इस पुस्तक की सर्वाधिक मांग हिन्दीभाषी राज्यों में है। इसके बाद गुजरात, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना, उड़ीसा, कर्नाटक और केरल में है। नेपाल में भी मांग होने की वजह से गीता प्रेस इस पुस्तक को नेपाली में भी प्रकाशित करती है। इस पुस्तक का अधिकतम मूल्य 50 रुपये और न्यूनतम मूल्य 20 रुपये है।
कोरोना पर श्रद्धा भारी
हिन्दी में इस वर्ष अभी तक श्रीदुर्गासप्तशती की कुल सवा तीन लाख प्रतियां प्रकाशित हुई हैं। इनमें 90 हजार प्रतियां चैत्र नवरात्र से पहले जनवरी-मार्च के बीच प्रकाशित हुई थीं। हालांकि उस दौरान लॉकडाउन की वजह से काफी दिक्कत हुई। अनलॉक हुआ तो शारदीय नवरात्र से पहले अगस्त-सितम्बर में कुल 2.20 लाख प्रतियां प्रकाशित हुईं जबकि अभी साल बीतने में तीन माह बचे हैं। पिछले वर्ष 3.90 लाख प्रतियां छपी थीं।
तीसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक
गीता प्रेस से गीता और रामायण के बाद यह तीसरी सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तक है। अब तक आठ भाषाओं में श्रीदुर्गासप्तशती की कुल 1.40 करोड़ प्रतियां छप चुकी हैं। वर्ष 1947 में पहली बार इसका प्रकाशन गीता प्रेस से हुआ था। अब तक सिर्फ हिन्दी में नौ साइज में कुल 491 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। अन्य भाषाओं में भी 144 संस्करण प्रकाशित हुए हैं।
तेलगु में सबसे पहले प्रकाशित हुआ था मूल
वर्ष 1999 में हिन्दी के बाद सबसे पहले तेलुगू में श्रीदुर्गासप्तशती का मूल प्रकाशित हुआ था। उसमें तेलगु में सिर्फ श्लोक थे। इसकी दस हजार प्रतियां छपी थीं। गुजराती में श्लोक के साथ भावार्थ का प्रकाशन सबसे पहले वर्ष 2001 में हुआ था। पहले गुजराती संस्करण में 20 हजार प्रतियां छपी थीं। हिन्दी के बाद गुजराती भाषा में ही सर्वाधिक 45 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। विदेशी भाषाओं में नेपाली में इसका प्रकाशन हो चुका है। वर्ष 2019 में तीन हजार प्रतियां छपी थीं।
श्रीदुर्गाचालीसा की भी हमेशा रही है मांग
श्रीदुर्गाचालीसा एवं श्रीविन्ध्येश्वरी चालीसा की मांग भी हमेशा रही है। छोटा साइज व कम कीमत (ती रुपये और चार रुपये) होने के कारण यह बहुत लोकप्रिय है। अब तक इसकी 86.95 लाख पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें 50,50000 पाकेट साइज प्रतियां और 36,45000 लघु आकार प्रतियां छप चुकी हैं। इनके अलावा मां शक्ति की श्रीमद्देवी भागवत महापुराण की 3,38,200 प्रतियां, शक्ति अंक की 1,08100 प्रतियां और महाभागवत (देवीपुराण) की 37 हजार प्रतियां गीता प्रेस प्रकाशित कर चुका है।
इन भाषाओं में छपी इतनी प्रतियां
हिन्दी 1,32,99,250
गुजराती 2,42,500
तेलगु 1,67,500
बंगला 1,08,000
उड़िया 95,500
कन्नड़ 67,000
मलयालम 4000
नेपाली 3000
श्रीदुर्गासप्तशती शक्ति की उपासना करने वालों का सर्वमान्य ग्रंथ है। गैर हिन्दीभाषी में भी हिन्दी संस्करण की कुछ प्रतियां जाती थीं। उन राज्यों से लोग इसे अन्य भाषाओं में प्रकाशित करने के लिए पत्र भी भेजते रहते थे। ऐसे में मांग को देखते इसका प्रकाशन दूसरी भाषाओं में भी किया जाने लगा।
डॉ. लालमणि तिवारी, उत्पाद प्रबंधक, गीता प्रेस