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Hindustan Special: श्राप के डर से पौ फटते ही एक दिन के लिए घर छोड़ देता है पूरा गांव, जानें क्‍या है सच्‍चाई

इस गांव में रहने वाला हर परिवार एक दिन के नवजात से लेकर बुजुर्ग सदस्यों को लेकर इस खास दिन को अपना पूरा दिन गांव छोड़ बाहर सीवान, मंदिर, पंचायत भवन में गुजारता है। यहां तक कि पशु भी गांव में नहीं रहते।

Hindustan Special: श्राप के डर से पौ फटते ही एक दिन के लिए घर छोड़ देता है पूरा गांव, जानें क्‍या है सच्‍चाई
Ajay Singhनवीन विषेन,महराजगंजTue, 29 Aug 2023 11:23 AM
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Fear of Curse: यूपी में एक ऐसा गांव है, जहां हर तीन साल पर पौ फटते ही एक दिन के लिए ग्रामीण घर छोड़ देते हैं। पूरे दिन गांव के सीवान में पूजा-पाठ होती है। शाम होने के बाद ग्रामीण अपने घरों में लौटते हैं। 

जी हां, हम बात कर रहे हैं महराजगंज जिले के बेलवा चौधरी गांव का। सिसवा ब्लाक का यह गांव अब सिसवा नगर पालिका का हिस्सा है। इस गांव में रहने वाला हर परिवार एक दिन के नवजात से लेकर बुजुर्ग सदस्यों को लेकर इस खास दिन को अपना पूरा दिन गांव छोड़कर बाहर सीवान, मंदिर और पंचायत भवन में गुजारता है। यहां तक कि पशु भी गांव में नहीं रहते हैं। 

बैशाख पूर्णिमा यानी परावन का है यह खास दिन 
हर तीन साल के बाद जिस दिन इस गांव के लोग दिन भर गांव छोड़ देते हैं वह खास तिथि होती है वैशाख पूर्णिमा की। इसे ग्रामीणों द्वारा परावन पर्व कहा जाता है। इस पर्व को हर तीन वर्ष पर वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन ग्रामीण अपने पूरे परिवार की रक्षा के लिए एक दिन घर छोड़कर पूरे दिन गांव के सीवान में रहते हैं। यह परंपरा इस गांव में लगभग सौ सालों से चली आ रही है। 

श्राप के डर से परंपरा को निभाते हैं ग्रामीण
इस परंपरा के विषय में ग्रामसभा निवासी किसान आदर्श इंटर कॉलेज के प्रबंधक सुरेंद्र मल्ल का कहना है कि बुजुर्गों के अनुसार लगभग सौ साल पहले कुशीनगर जनपद के बगही कुटी के एक संत अपने शिष्यों के साथ यहां से गुजर रहे थे। इस बीच गांव के बागीचे में उनका दल रुककर भोजन-पानी की व्यवस्था करने लगा। इसके लिए उन्होंने गांव वालों से लकड़ी मांगी। जब उन्हें लकड़ी नहीं मिली तो संतों के दल ने बगीचे में अनाज की दंवरी के लिए गाड़े गए मेह (खूंटों) को उखाड़कर अपना भंडारा बनाकर भोजन किया।

मेह उखाड़े जाने की जानकारी होने पर ग्रामीणों ने आपत्ति जताई। इस पर संत ने क्रोधित होकर ग्रामीणों को गांव के विनाश का शाप दे दिया। तभी कुछ ग्रामीण समय की नजाकत को देखते हुए उनसे क्षमा याचना करने लगे। इस पर संत ने अपने क्रोध को शांत करते हुए कहा कि गांव वाले आज की तिथि अर्थात वैशाखी पूर्णिमा को दिन भर गांव के बाहर प्रत्येक तीन वर्ष पर दिन भर सपरिवार व्यतीत कर सायंकाल अपने घरों को जाएंगे तो शाप नहीं लगेगा।  

गांव में आज भी होती है बिना मेह की दंवरी 
गांव के रहने वाले नागेंद्र मल्ल और अन्य ग्रामीण बताते हैं कि शाप के दौरान ग्रामीणों ने काफी क्षमा याचना की थी। इस पर संतों ने जाते-जाते कहा कि गांव में साधुओं ने मेह उखाड़ा है। इसलिए आज से इस गांव में बिना मेह के ही दंवरी हुआ करेगी। तब से लेकर आज तक इस गांव में बिना मेह के ही दंवरी होती चली आ रही है। 

धार-कपूर जलाने के बाद ही घर में प्रवेश करते हैं ग्रामीण 
संतों के शाप दिए जाने के बाद से ग्रामवासी हर तीन वर्ष पर वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर घरों में ताला बंदकर गांव के बाहर खेत, सीवान व बगीचे में डेरा डालकर दिन बिताते हैं। दिन डूबने के बाद अपने घरों को वापस लौटते हैं। महिलाएं घरों से मुख्य गेट पर छाक देकर धार-कपूर जलाकर ही घर में प्रवेश करती हैं। 

2020 में लॉकडाउन में टूटी थी परंपरा 
सौ सालों से चली आ रही यह खास परंपरा वर्ष 2020 में कोरोना के लॉकडाउन के चलते टूटी थी। उस दिन इस परंपरा को ग्रामीणों ने घरों के आंगन में ही रहकर निभाया था। 

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