Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़Elephants imposed evening curfew in Lakhimpur Kheri Villages forest department appeal

हाथियों ने लगाया लखीमपुर खीरी के गांवों में ‘ईवनिंग कर्फ्यू’, वन विभाग की अपील शाम को कोई न जाए खेत

जंगली हाथियों के झुंड ने लखीमपुर खीरी जिले के महेशपुर इलाके में ‘ईवनिंग कर्फ्यू’ का माहौल बना दिया है। हाथियों का ऐसा डर है कि शाम छह बजे के बाद लोग घरों से निकलने में घबराते हैं।

Srishti Kunj मयंक वाजपेयी, लखीमपुरखीरीMon, 12 Dec 2022 01:12 AM
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जंगली हाथियों के झुंड ने लखीमपुर खीरी जिले के महेशपुर इलाके में ‘ईवनिंग कर्फ्यू’ का माहौल बना दिया है। हाथियों का ऐसा डर है कि शाम छह बजे के बाद लोग घरों से निकलने में घबराते हैं। यहां हाथी एक माह में एक किसान की जान ले चुके हैं जबकि दो को घायल कर चुके हैं। वन विभाग इन हाथियों को वापस जंगल भेजने में नाकाम साबित हुआ है। 

नेपाल के जंगलों से निकलकर करीब आठ माह पहले हाथियों का एक दल भारत आया है। यह दल बीते तीन माह से दक्षिण खीरी की मोहम्मदी रेंज के महेशपुर जंगल में मौजूद है। दिनभर हाथी जंगल में रहते हैं और शाम ढलते ही बस्ती व खेतों की ओर निकल पड़ते हैं। हाथियों की दहशत इतनी है कि लोग शाम के बाद घर से निकलने और हाईवे की ओर जाने से भी डरते हैं। गांववालों ने डर के मारे पहरा की ड्यूटी लगाई है। गांव के युवाओं का समूह रात को गांव के बाहर मचान से रखवाली करता है और हाथियों के आते ही शोर मचाकर सतर्क करता है। 

वन विभाग की टीम भी हाथियों को खदेड़ने में लगी है लेकिन ये कवायदें नाकाम साबित हुई हैं। करीब तीस हाथियों का दल अब भी जंगल में मौजूद है जो बेखौफ किसानों की फसलें रौंद रहा है। साथ ही, सामना होने पर इंसानों पर हमले भी कर रहा है। डीएफओ संजय विश्वाल कहते हैं कि इस क्षेत्र में हाथियों की मौजूदगी है। इस वजह से गांववालों को सतर्क किया गया है। उनसे कहा गया है कि हाथियों के दल के सामने न जाएं और न ही फोटो खींचे। उनसे दूर रहें और वन विभाग को सूचित करें।

दो साल में तीन को मारा, तीन को घायल किया
हाथियों की दहशत खीरी जिले में दो साल से ज्यादा है। पिछले साल हाथियों ने महेशपुर व निघासन में दो की जान ली थी। इस साल एक किसान को महेशपुर में कुचलकर मार चुके हैं। हाथियों ने दो युवकों को घायल किया है।

सैकड़ों एकड़ फसल रौंदी
जंगली हाथियों ने धान और गन्ने की सैकड़ों एकड़ फसल दो माह में रौंदी है। अकेले महेशपुर में हाथी करीब 50 एकड़ गन्ना रौंद चुके हैं। अन्य इलाकों में भी लगभग इतने ही धान-गन्ने का नुकसान कर चुके हैं। बीते साल हाथियों ने करीब 40 एकड़ फसल रौंदकर बर्बाद की थी। वन विभाग अभी तक सर्वे पूरा नहीं करा सका है और मुआवजा तो दूर की बात है।

गन्ने की वजह से डेरा, अब मिर्च का सहारा
वन विभाग ने हाथियों की मौजूदगी का कारण जानने के लिए डब्ल्यूटीआई और असम के काजीरंगा नेशनल पार्क के विशेषज्ञों से अध्ययन कराया। डीएफओ संजय विश्वाल का कहना है कि अध्ययन में सामने आया है कि हाथी गन्ने की फसल की वजह से यहां से नहीं जा रहे हैं। जंगल के किनारे गन्ने की खेती होती है और हाथी को गन्ना पसंद है। असम के विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि गन्ने के साथ सहफसली के रूप में मिर्च की खेती की जाए तो हाथियों से पीछा छूट सकता है।

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