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अनूठी पहल: 'मन कक्ष' में बच्चों की मोबाइल लत छुड़ाएंगे डॉक्टर

क्या आपका बच्चा भी दिनभर मोबाइल में लगा रहता है। छीनने पर लड़ने लगता है, सिर फोड़ने लगता है। यदि ऐसा है तो सतर्क हो जाएं। यह कोई अच्छी आदत नहीं, बल्कि मोबाइल एडिक्शन (लत) है। बच्चों में बढ़ती इस लत...

अनूठी पहल: 'मन कक्ष' में बच्चों की मोबाइल लत छुड़ाएंगे डॉक्टर
नासिर जैदी, कानपुर। Wed, 24 Jul 2019 08:28 AM
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क्या आपका बच्चा भी दिनभर मोबाइल में लगा रहता है। छीनने पर लड़ने लगता है, सिर फोड़ने लगता है। यदि ऐसा है तो सतर्क हो जाएं। यह कोई अच्छी आदत नहीं, बल्कि मोबाइल एडिक्शन (लत) है। बच्चों में बढ़ती इस लत को राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रम में भी शामिल कर लिया गया है। इसे छुड़ाने के लिए प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों में  'मन कक्ष' बनाकर विशेष काउंसिलिंग की जाएगी। कानपुर में इसकी शुरुआत उर्सला अस्पताल से होगी। 

स्वास्थ्य विभाग ने स्कूली बच्चों पर एक सर्वे कराया तो पता कि इस लत के चलते बच्चों का बचपन गुम हो रहा है। वे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे हैं। पबजी और ब्लूव्हेल जैसे घातक ऑनलाइन गेम लक्ष्य पूरा न होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार ने भयावहता देखते हुए इससे निपटने के उपाय किए हैं।

प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक ने राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत सभी जिला चिकित्सालयों में  'मन कक्ष' स्थापित करने का आदेश जिलाधिकारियों एवं मुख्य चिकित्साधिकारियों को दिया है। कानपुर के सीएमओ डॉ. अशोक शुक्ला ने बताया कि शासन के पत्र को संज्ञान में लेते हुए जल्द ही बच्चों को मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाने की पहल की जाएगी। उर्सला अस्पताल में स्थापित 'मन कक्ष' में बच्चों की उम्र के हिसाब से निशुल्क काउंसिलिंग शुरू की जाएगी। इसके साथ ही बच्चों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृति को रोकने के लिए माता-पिता को भी जागरूक किया जाएगा।

बच्चों के इसलिए घातक है मोबाइल

  • 12 से 18 महीने की उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन के इस्तेमाल की बढ़ोतरी देखी गई है, इस वजह से कम उम्र में ही आंखें खराब हो रही हैं 
  • स्मार्टफोन चलाने के दौरान पलकें कम झपकाते हैं, इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। इससे आंखों का पानी सूखने से नजरें तिरछी होने लगती हैं 
  • कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह से बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं और कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं 
  • मोबाइल गेमिंग की वजह से बच्चे भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते जाते हैं, कुछ हिंसक मोबाइल गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं 
  • बच्चे अक्सर फोन पर गेम खेलते या कार्टून देखते हुए खाना खाते हैं, इस दौरान भोजन की मात्रा कम या ज्यादा होने का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है 
  • फोन के अधिक इस्तेमाल से वे बाहरी दुनिया से संपर्क करने में कतराते हैं। उन्हें रोका जाता है तो चिड़चिड़े, आक्रामक व कुंठाग्रस्त हो जाते हैं

ड्रग्स से भी घातक है यह नशा
मोबाइल का नशा शराब और ड्रग्स से भी घातक है। इसकी वजह से बच्चों को नींद न आना, भूख की कमी, दिमाग पर बुरा असर और आंख खराब होने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे बच्चों के निशुल्क इलाज और परामर्श के लिए उर्सला अस्पताल में 'मन कक्ष' स्थापित किया गया है। -डॉ. महेश, एसीएमओ, नोडल अधिकारी (राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम)

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