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कोविड-19 से डिप्रेशन तो लॉकडाउन से घरेलू कलह बढ़ा, इलाज करवा रहे लोग

कोरोना ने डिप्रेशन तो लॉकडाउन ने घरेलू कलह बढ़ा दी। डिप्रेशन इतना बढ़ा कि लोगों के इलाज तक की नौबत आ गई। घरेलू झगड़े घर-घर की कहानी बन गए। युवाओं के बीच करियर को लेकर चिंताएं दिखीं तो अफेयर या...

कोविड-19 से डिप्रेशन तो लॉकडाउन से घरेलू कलह बढ़ा, इलाज करवा रहे लोग
वरिष्ठ संवाददाता, कानपुरWed, 29 Jul 2020 09:09 AM
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कोरोना ने डिप्रेशन तो लॉकडाउन ने घरेलू कलह बढ़ा दी। डिप्रेशन इतना बढ़ा कि लोगों के इलाज तक की नौबत आ गई। घरेलू झगड़े घर-घर की कहानी बन गए। युवाओं के बीच करियर को लेकर चिंताएं दिखीं तो अफेयर या शादियां टूटने से बेचैनी बढ़ गई। करीब चार माह में मनोवैज्ञानिकों के पास आईं तीन हजार कॉलों में इसी तरह के खूब प्रकरण आए। अच्छी बात यह है कि जिन लोगों ने मनोवैज्ञानिकों की मदद ली उन्हें अपनी उलझनों से राहत मिल सकी। ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो अभी तक फॉलोअप काउंसिलिंग करा रहे हैं। 

साइकोलॉजिकल टेस्टिंग एण्ड काउंसिलिंग सेंटर (पीटीसीसी) लॉकडाउन से पहले ही सक्रिय हो चुका था। चार माह में कुल तीन हजार कॉल इस सेंटर के सदस्यों के पास पहुंचीं। इनमें 15 अप्रैल से 15 जून तक पीक रहा। कॉल करने वालों में हर आयु वर्ग के लोग शामिल हैं। जैसे-जैसे लॉकडाउन का समय बढ़ता गया लोगों में तनाव की स्थिति पैदा होती रही जो घरेलू झगड़ों की मूल वजह बनी।

60 फीसदी के रिश्तों में दरार
पीटीसीसी सेंटर के निदेशक और रिटायर मंडलीय मनोवैज्ञानिक डॉ. एलके सिंह का कहना है कि घरेलू झगड़ों के मामले इस दौरान करीब 60 फीसदी रहे। पहली बार ऐसा हुआ जब गरीब-अमीर परिवारों में सभी सदस्य एकसाथ लंबे समय तक रहे। जिन्हें सांस लेने की मोहलत नहीं मिलती थी, उनके पास भी समय ही समय था। पारिवारिक कलह की वजह कहीं शराब रही तो कहीं पैसों की कमी रही। कहीं ससुराल से उधार मांगने का दबाव था तो कहीं घर का रखा सामान बेचने का। कहीं बिजनेस के बंटवारे को लेकर घरों में खींचतान बढ़ी तो कहीं बच्चों की शादी, करियर को लेकर आपस में भिड़े। यही नहीं छोटी-छोटी बातें जैसे टीवी पर क्या देखना है, खाने में क्या पकना है, घरों की सेटिंग समेत अनेक बातें इसमें शामिल थीं।

30 फीसदी डिप्रेशन के शिकार
निदेशक का कहना है कि घरेलू झगड़ों को भी तनाव मान लिया जाए तब तो सबसे ज्यादा मामले डिप्रेशन के रहे लेकिन अगर इसे अलग कर दें तो 30 फीसदी मामले डिप्रेशन के थे। डिप्रेशन घरेलू-झगड़ों से ज्यादा खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें अवसाद धीरे-धीरे अकेलेपन में बदल जाता है और ऐसे में व्यक्ति कोई भी घातक कदम उठा सकता है। बिजनेस डूबने से लेकर नौकरी जाने या वेतन न मिलने, कर्ज चुकता करने में असमर्थता, कोरोना से पहले किसी काम में बड़ा निवेश, भविष्य के प्रति अधिक चिंता और इन सब से बढ़कर कोरोना का खौफ जैसे कई कारक सामने आए।

युवाओं को करियर की चिंता
युवा वर्ग जिसमें सबसे ज्यादा इस वर्ष इंटर बोर्ड परीक्षा देने वाले या ऐसे छात्र भी शामिल थे जिनकी आधी-अधूरी बोर्ड परीक्षाएं हुई थीं। इंजीनियरिंग और यूनिवर्सिटी के साथ जेईई-मेन, जेईई एडवांस्ड, नीट या प्रबंधन कोर्सों के लिए इंट्रेंस की तैयारी कर रहे युवा भी चिंता में डूबे। 20 फीसदी कॉलें ऐसी थीं जिनमें युवा अपने भविष्य को लेकर चिंतित थे।

कहीं लड़की तो कहीं लड़का रूठा
निदेशक बताते हैं कि ज्यादातर रात 11 बजे के बाद आने वाली कॉलें ऐसे लड़के या लड़कियों की थीं जो एक दूसरे से नाराज हो गए और अफेयर ब्रेक हो गया। कई की शादियां टूट गईं। यही नहीं छिप कर बात न करने का मौका खोने से कई की पोल खुली तो मां-बाप से झगड़ा हो गया। मां-बाप भी इन शिकायतों में शामिल रहे। ऐसे करीब 10 फीसदी मामलों में युवाओं की चिंताएं कुछ रोचकता लिए हुए थीं।

ऐसे सुलझाए गए मामले
वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक डॉ. एलके सिंह का कहना है कि 70 फीसदी मामलों में एक-दो बार बात करने से बात बन गई। 20 फीसदी मामलों में बुलाकर या फोन पर लंबी और कई सिटिंग में काउंसिलिंग करनी पड़ी। 10 फीसदी मामले जो गंभीर थे, उसमें फॉलोअप अब भी चल रहा है।

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