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अयोध्या मामले में देवबंदी उलेमा ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल

अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल करने पर फतवा ऑन लाइन के प्रभारी मुफ्ती अरशद फारुकी ने केन्द्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं। कहा है कि मामला...

अयोध्या मामले में देवबंदी उलेमा ने सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
हमारे संवाददाता, देवबंद(सहारनपुर)।Wed, 30 Jan 2019 03:38 AM
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अयोध्या में श्रीराम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दाखिल करने पर फतवा ऑन लाइन के प्रभारी मुफ्ती अरशद फारुकी ने केन्द्र सरकार की नीयत पर सवाल उठाए हैं। कहा है कि मामला जमीन की मिल्कियत को लेकर चल रहा है। जब तक यह साफ न हो कि एक्वायर 67 एकड़ जमीन में मस्जिद और कब्रिस्तान है या नहीं, तब उस जमीन का फैसला कोर्ट को ही लेना होगा। वहीं, दूसरी ओर दारुल उलूम के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा है कि उन्हें तथ्यों की जानकारी नहीं हैं। इसलिए इस मुद्दे पर कुछ नहीं कह सकते।

केंद्र सरकार की ओर के सुप्रीम कोर्ट में अधिग्रहीत भूमि को संबंधित न्यास को लौटाने संबंधी याचिका दाखिल की है। इस मुद्दे पर फतवा ऑन लाइन के प्रभारी मुफ्ती अरशद फारुकी ने कहा कि अदालत में मामला मूल मालिकों की पहचान को ही लेकर ही चल रहा है। और यही अदालत को तय करना है कि मूल मालिक कौन है। उन्होंने कहा कि 1991 में भी तत्कालीन सरकार द्वारा अधिग्रहित की गई 67 एकड़ जमीन पर कोई पक्ष तैयार नहीं था।

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मुफ्ती फारुकी ने कहा कि सरकार मस्जिद और वहां मौजूद कब्रिस्तान की जमीन को अदालत के फैसले तक न छेड़ें। कोर्ट का फैसला पूरी जमीन पर आना है। उक्त प्रकरण में मुस्लिम पर्सनल-लॉ-बोर्ड समेत जमीयत उलेमा-ए-हिंद पक्षकार है, जिसका फैसला वही लेंगे। क्योंकि मुस्लिम पर्सनल-लॉ-बोर्ड भी जमीन की मिल्कियत की दावेदारी करता है। मुफ्ती अरशद फारुकी ने सरकार की नियत पर सवाल उठाते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के चलते इस तरह की याचिका डाली गई है।

उधर, याचिका पर दारुल उलूम मोहतमिम मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि मामला र्स्वोच्च न्यायालय में है। और अभी तक उन्हें सरकार द्वारा दायर याचिका में पेश किए गए तथ्यों की जानकारी नहीं है। मामला सुप्रीम कोर्ट में होने और तथ्यों की जानकारी के बिना किसी का भी बोलना उचित नहीं है। मुस्लिम पर्सनल-लॉ-बोर्ड इसमें पक्षकार है। इसलिए तथ्यों पर आधारित सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही सर्वमान्य होना चाहिए।

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