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बच्चे की सेहत के लिए सुबह दूध की जगह दें दलिया

मेरा बच्चा ठीक से खाना नहीं खाता, उसे भूख नहीं लगती। यह शिकायत 90 प्रतिशत माताओं की हैं। वहीं, ज्यादातर माताएं बच्चे के टिफिन में चिप्स, पिज्जा, टॉफी, बिस्कुट आदि रखकर देती हैं। बहुत हुआ तो बच्चे को...

बच्चे की सेहत के लिए सुबह दूध की जगह दें दलिया
लखनऊ, वरिष्ठ संवाददाताSun, 18 Nov 2018 10:23 AM
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मेरा बच्चा ठीक से खाना नहीं खाता, उसे भूख नहीं लगती। यह शिकायत 90 प्रतिशत माताओं की हैं। वहीं, ज्यादातर माताएं बच्चे के टिफिन में चिप्स, पिज्जा, टॉफी, बिस्कुट आदि रखकर देती हैं। बहुत हुआ तो बच्चे को सुबह एक गिलास दूध पिलाकर स्कूल भेज देती हैं। 

एक दिन खिचड़ी जरूर खाएं
यह बच्चे की सेहत और विकास के लिए नुकसानदेह है। यह जानकारी बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. आशुतोष वर्मा ने दी।

वह शनिवार को केजीएमयू के सांइटिफिक कन्वेंशन सेंटर में आयोजित पेडिकॉन-2018 को संबोधित कर रहे थे। डॉ. आशुतोष वर्मा ने कहा कि दूध पीने के बाद बच्चा स्कूल में तीन से चार घंटे बैठता है। इस दौरान वह कुछ नहीं खाता है। दूध गैस बनाता है। आगे चलकर बच्चे को कब्ज जैसी पेट संबंधी दूसरी बीमारी की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। तमाम माताएं बच्चे को केला खिलाकर स्कूल भेज देती हैं। इससे बच्चे का पेट खराब होने का खतरा बना रहता है। डॉ. आशुतोष वर्मा ने कहा कि बच्चों को सुबह दूध पिलाने से बचें। इसके स्थान पर दलिया दें। यह सबसे अच्छा नाश्ता है। इसमें दूध, चीनी और अनाज तीनों वस्तुएं मिल जाती हैं। 

बच्चा सेल निगले तो शहद पिलाएं: पीजीआई में पीडियाट्रिक गेस्ट्रोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एसके याचा ने कहा कि बच्चों के आस-पास छोटी चीजें न रखें। सबसे ज्यादा खतरनाक बैटरी का सेल है। घड़ी, कैलकुलेटर आदि का सेल बच्चे निगल लेते हैं। पीजीआई की ओपीडी में एक महीने में चार से पांच ऐसे मामले आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि समय पर बच्चे के शरीर से सेल नहीं निकाला गया तो वह आहार नाल को नुकसान पहुंचा देता है। इसका अल्कलाइन कैमिकल खाने की नली को जला देता है। इसके प्रभाव को रोकने के लिए 10-10 मिनट पर 10 एमएल शहद पिलाएं।

इलाज में न करें देरी: 
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अनूप वाजेपयी ने कहा कि यदि नवजात तेज-तेज सांस ले। शरीर नीला पड़ता है। बच्चे का वजन नहीं बढ़ रहा है। वह दूध नहीं पीता है। उसे बार-बार निमोनिया हो रहा है तो यह दिल की बीमारी भी हो सकती है। समय पर इलाज न हो तो बच्चे को बचाना मुश्किल हो जाता है। जन्म के एक साल के अंदर उसका इलाज या ऑपरेशन हो जाता है तो बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है।.

तीनों तकनीक से ऑपरेशन में मरीज को अस्पताल में कम दिन गुजारने पड़ते हैं। खून का रिसाव कम होता है। संक्रमण का खतरा भी नहीं रहता है। ऑपरेशन का दर्द भी मरीज को नहीं सहना होता है। भगंदर में समय पर इलाज कराएं। 

डॉ. अरशद ने बताया कि वॉफ्ट या लिफ्ट तकनीक से ऑपरेशन आसान हो गया है। ऑपरेशन के दौरान मांसपेसियों को नुकसान नहीं होता है। उन्होंने बताया कि लेजर तकनीक से ऑपरेशन संभव है।.

बदलती जीवनशैली में काम करने का तरीका बदल गया है। पहले लोग दिन में काम करते थे। अब देर रात तक काम कर रहे हैं। देर रात खाना खाते हैं। नतीजतन खाने को पचने का वक्त नहीं मिल पाता है। पेट संबंधी दूसरी गंभीर बीमारी का खतरा बढ़ गया है। यह जानकारी इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रोनोमेडिसिन के जनरल सेक्रेटरी व केजीएमयू फिजियोलॉजी विभाग के डॉ. नरसिंह वर्मा ने दी। शनिवार को वह केजीएमयू में पत्रकारों से जानकारी साझा कर रहे थे। डॉ. नरसिंह वर्मा ने बताया कि देर रात तक जागने व उसके बाद भोजन करने से डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, मोटापा और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि इंडियन सोसाइटी ऑफ क्रोनोमेडिसिन के तीन दिवसीय वार्षिक सम्मेलन में विशेषज्ञ दिनचर्या से जुड़ी बीमारियों पर जानकारी देंगे।

डफरिन अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. सलमान खान ने बताया कि छोटी बीमारियों में बच्चों को एंटीबायोटिक दवा देने से बचना चाहिए। सामान्य दवाओं से इलाज करें। क्योंकि एंटीबायोटिक तत्कालिक तो फायदा पहुंचाती है लेकिन आगे चलकर उसके नुकसान हैं। छोटी-छोटी बीमारी में डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही दवाएं दें।

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