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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषणाओं से खुश नहीं है भाकियू, कहा किसानों को निराशा हुई

भारतीय किसान यूनियन ने केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण(Finance Minister Nirmala Sitharaman) द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज( Economic Package)को किसानों के लिए निराशाजनक बताया है। भाकियू के...

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की घोषणाओं से खुश नहीं है भाकियू, कहा किसानों को निराशा हुई
प्रमुख संवाददाता, लखनऊThu, 14 May 2020 07:33 PM
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भारतीय किसान यूनियन ने केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण(Finance Minister Nirmala Sitharaman) द्वारा घोषित आर्थिक पैकेज( Economic Package)को किसानों के लिए निराशाजनक बताया है। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने बयान जारी कर कहा है कि इस पैकेज में कृषि ऋण को तीन माह के आगे बढ़ाने एवं नए किसान क्रेडिट कार्ड से लोन दिए जाने  के अलावा नया क्या है? 

हमारे नीति निर्धारकों को यह बात कब समझ में आएगी कि अगर हमारे  कृषि ,कृषि उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल होता तो उन्हें ऋण की आवश्यकता कहा थी। बैंक उन्हें ऋण देने में इतना नहीं हिचक रहे होते। बैंकों के  पहले से ही यह  राशि पड़ी है। पर नया ऋण लेकर कोई भी जोखिम उठाने की स्थिति में नहीं है।  

उन्होंने कहा है कि इससे साफ पता चलता है कि भारत एक गहरे आर्थिक संकट के जाल में फंसा है। यह आर्थिक संकट का जाल कोरोना की ही देन नहीं है, बल्कि इससे पूर्व का है। कोरोना संकट ने इसे और बढ़ा दिया है। भारत में नोटबन्दी और जीएसटी से तबाह हुई अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार द्वारा कुछ समय तक 'मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप, स्मार्ट सिटी, सांसद ग्राम, विदेशी निवेश, पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था जैसे जुमलों से ढकने की कोशिश की गई। पर पिछले वित्तीय वर्ष के तीसरी तिमाही के आंकड़े आने तक खुद मोदी सरकार मान चुकी थी कि हमारी विकास दर अब 4.5 प्रतिशत पर रहेगी। कृषि की विकास दर 2.7 पर सिमट चुकी है। जिसके आधार पर सरकार किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दम भरती है।  इससे बाजारों में मांग का भारी अभाव पैदा हो गया। यानी देश में आम आदमी की क्रय शक्ति में भारी गिरावट आ चुकी थी।  

तब तमाम अर्थशास्त्रियों, विपक्षी दलों, , ट्रेड यूनियन से लेकर किसान संगठनों ने सरकार से मांग की थी कि देश में अगर लिक्विडिटी (तरलता) को बढ़ाना है तो आम लोगों के हाथों में पैसा देना होगा। इसमें मज़दूरों की न्यूनतम मजदूरी व न्यूनतम वेतन में बृद्धि, मनरेगा में 200 दिनों का काम और शहरी गरीबों के लिए भी मनरेगा जैसे स्कीम लाना, किसानों को उनकी उपज की लागत का डेढ़ गुना दाम और सरकारी खरीद की गारंटी, देश के हर किसान  के लिए एक न्यूनतम आय की गारंटी स्कीम,किसानों के लिए सम्मान निधि की राशि को बढ़कर 24000 सालाना , किसानों का सभी तरह के ऋण माफ करना,फल,सब्जी,दूध,पोल्ट्रीफार्मर, मधुमक्खी पालक,मछली उत्पादक किसानों के नुकसान की भरपाई, जैसे उपाय किए जाने की मांग थी । पर केन्द्र सरकार बड़े कारपोरेट घरानों पर मेहरबान रही।

आज  वित्तमन्त्री की घोषणाओं में कहीं भी किसानों,मजदूरों की मांगों को स्थान मिलता नहीं दिखा। मार्च-अप्रैल के वेतन बिना ही भूख से लड़ते-मरते मजदूरों का बड़ा हिस्सा अपने गांवों की ओर लौट रहा है।  केंद्र व राज्य सरकारों की पूर्ण उपेक्षा से इतनी अमानवीय तकलीफों को झेल कर जो मजदूर गांव लौटे हैं, उनका बड़ा हिस्सा सामाजिक आर्थिक सुरक्षा  की गारंटी के बिना जल्दी वापसी नहीं करेगा। जिससे कई राज्यो की खेती प्रभावित होगी। 
 

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