बदायूं लोकसभा सीट समीकरण: 2024 में दौड़ेगी साइकिल या बरकरार रहेगा भाजपा का जलवा? यादव और मुस्लिम वोटरों पर सबकी नजर
सपा का वोटर कहे जाने वाले यादव और मुस्लिम वोटरों ने 2019 में समाजवादी पार्टी का समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिया था। इसका फायदा भाजपा को मिला और संघमित्रा मौर्य सांसद बनीं।

Badaun lok-sabha Seat Equation: 19 लाख से अधिक मतदाताओं वाले बदायूं को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है। बदायूं में यादव और मुस्लिम वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। यही वजह है कि मोदी लहर में भी समाजवादी पार्टी ने 80 में से पांच सीटों पर साइकिल दौड़ाई थी, उनमें से एक बदायूं भी थी। समाजवादी पार्टी का इस सीट पर 1996 से लगातार कब्जा रहा है। सलीम शेरवानी इस सीट से सबसे ज्यादाबार सांसद चुने गए। इसके बाद सपा की टिकट से ही लगातार दो बार धर्मेंद्र यादव यहां से सांसद चुने गए।
सपा का वोटर कहे जाने वाले यादव और मुस्लिम वोटरों ने 2019 में समाजवादी पार्टी का समीकरण ही बिगाड़ कर रख दिया। इसका फायदा भाजपा को मिला और संघमित्रा मौर्य सांसद बनीं। 2024 में एक बार फिर लोकसभा के चुनाव होने हैं। सपा इस सीट को वापस पाने के लिए पूरी शिद्दत से जुट गई है। 2019 के परिणामों को ध्यान में रखकर सपा पीडीए के साथ-साथ एमवाई समीकरणों को भी साधने में लगी है। हालांकि भाजपा वोटरों को अपनी ओर लुभाने में पीछे नहीं है। फिलहाल सबकी नजरें 2024 के लोकसभा चुनाव पर टिकी हैं।
बदायूं का इतिहास
गंगा और रामगंगा नदी के बीच बसा बदायूं संसदीय क्षेत्र छोटे सरकार और बड़े सरकार की प्रसिद्ध दरगाह की वजह से पूरी दुनिया में जाना जाता है। बदायूं मशहूर ऐतिहासिक और धार्मिक शहर है। यह रोहिलखंड में मध्य में होने की वजह से इसका दिल कहलाता है। इल्तुतमिश के शासन काल के दौरान बदायूं 4 साल तक उसकी राजधानी रहा। प्राचीन शिलालेख के आधार पर प्रोफेसर गोटी जॉन ने बताया की बदायूं का पुराना नाम वेदामऊ था। ये शिलालेख पत्थर लिपियों पर लिखे गये और लखनऊ म्यूजियम में संरक्षित हैं। मुस्लिम इतिहासकार रोज खान लोधी ने बताया की राजा अशोक ने यहां बुद्ध विहार और किला बनवाया जिसको उन्होंने बुद्ध्माऊ (बदायूं का किला) कहा जाता है। जॉर्ज स्मिथ के अनुसार बदायूं का नाम अहीर राजकुमार बुद्ध के नाम पर रखा गया था।
बदायूं की पांच विधानसभा में से तीन पर सपा का कब्जा
बदायूं लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र आते हैं जिसमें गुन्नौर, बिसौली- अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित, सहसवान, बिल्सी और बदायूं शामिल है। गुन्नौर की बात करें तो यहां वर्तमान में सपा से राम खिलाड़ी सिंह विधायक हैं। इन्होंने 2022 के चुनाव में भाजपा के अजीत कुमार को शिकस्त दी थी। बिसौली विधानसभा पर भी सपा का कब्जा है। यहां आशुतोष मौर्य मौजूदा विधायक हैं। बदायूं विधानसभा सीट पर भाजपा के महेश गुप्ता विधायक हैं। इन्होंने सपा के रायस अहमद को हराया था। सहसवान विधानसभा की बात करें तो ये सीट सपा के कब्जे में है। यहां मौजूदा विधायक बृजेश यादव हैं। बिल्सी विधानसभा पर मौजूदा विधायक भाजपा के हरीश शाक्य हैं। इन्होंने सपा के चंद्र प्रकाश मौर्य को हराकर चुनाव जीता था।
बदायूं में 2019 से पहले 1991 में जीती थी भाजपा
बदायूं लोकसभा सीट पर भाजपा आखिरी बार 1991 में चुनाव जीती थी। इसके बाद से लगातार सपा का कब्जा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट पर वापसी की थी। 2019 से पहले भाजपा ने इस सीट पर विजय पाने के लिए पुरजोर कोशिश की थी लेकिन हर बार शिकस्त ही मिली। बदायूं में भगवा लहराने के लिए भाजपा के धुरंधरों ने भी पूरी ताकत झोंक दी थी। अमित शाह से लेकर राजनाथ सिंह ने भी यहां कई रैलियां कीं लेकिन कामयाबी हाथ न लगी। 2014 के चुनाव पर नजर डालें तो भाजपा को करीब 32 फीसद वोट मिला था, जबकि सपा के धर्मेंद्र यादव को 48 फीसद वोट मिला था। यही वजह रही कि 2014 का बदला भाजपा ने 2019 में चुका लिया और संघमित्रा मौर्य भाजपा की सांसद बन गईं।
बदायूं लोकसभा सीट समीकरण
19 लाख वोटरों वाले बदायूं में सबसे ज्यादा ज्यादा वोटर यादव बिरादरी के हैं। इनकी संख्या करीब चार लाख बताई जाती है। तीन लाख 75 हजार मुस्लिम वोटर भी यहां चुनाव में राजनीतिक दलों का खेल बनाने ओर बिगाड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा दो लाख 28 हजार गैर यादव ओबीसी वोटर, एक लाख 75 हजार अनुसूचित जाति, एक लाख 25 हजार वैश्य और ब्राह्मण वोटर हैं।
कब कौन रहा सांसद
बदायूं में 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता बदन सिंह विजयी हुए और बदायूं के पहले सांसद बने। अगले चुनाव में भी कांग्रेस ने ही जीत हासिल की। 1962 के चुनाव में भारतीय जन संघ ने इस सीट पर कब्जा किया और अगले चुनाव में भी जनसंघ का कब्जा रहा। 1971 में एक बार फिर कांग्रेस ने वापसी की लेकिन अगले चुनाव में अपनी सीट नहीं बचा पायी। 1977 में भारतीय लोकदल इस सीट पर विजयी रही।
1980 और 1984 में यह सीट कांग्रेस की झोली में आयी, लेकिन 1989 में बदायूं की जनता ने जनता दल के नेता शरद यादव को सांसद चुना। 1991 के बीजेपी ने यहां अपना खाता खोला। लोकसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर स्वामी चिन्मयानन्द ने जीत हासिल की। भाजपा की बदायूं में यह पहली और आखिरी जीत थी। 1996 से लेकर अब तक इस सीट पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। सलीम इकबाल शेरवानी 1996 से 2009 तक लगातार चार बार इस सीट से जीते और उनके बाद मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेद्र यादव यादव का इस सीट पर दो बार सांसद रहे। 2019 के चुनाव में भाजपा ने यह सीट सपा से छीन ली। यहां से वर्तमान में डॉ. संघमित्रा मौर्य भाजपा से सांसद हैं।
