कौन हैं पंडित गणेश्वर शास्त्री जिन्होंने राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त निकाला, पढ़िए प्रोफाइल
अयोध्या के राममंदिर के उद्घाटन की तारीख और रामलला के प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त काशी के पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला है। गणेश्वर शास्त्री ने ही काशी विश्वनाथ का मुहूर्त निकाला था।
अयोध्या में राममंदिर का उद्घाटन 22 जनवरी को होना तय हुआ है। इसी दिन खास मुहूर्त में रामलला का प्राण प्रतिष्ठा भी होगा। रामलला की प्राणप्रतिष्ठा के लिए खास मुहूर्त केवल 84 सेकेंड का है। यह मुहूर्त किसी और ने नहीं बल्कि उन्हीं पंडित गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने निकाला है जिन्होंने राममंदिर के शिलान्यास और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन का भी मुहूर्त निकाला था। काशी में जब 13 दिसंबर की तारीख उद्घाटन के लिए शुभ मानी गई तो काफी विद्वानों ने विरोध भी किया था। लोग 13 नंबर से सहमत नहीं थे। तब भी गणेश्वर शास्त्री ने ही सभी की शंकाओं का समाधान किया था। काशी के रामघाट इलाके में गंगा किनारे रहने वाले पंडित गणेश्वर शास्त्री मूल रूप से दक्षिण भारत से यहां आए थे। उनके साथ भाई पंडित विश्वेश्वर शास्त्री भी रहते हैं। वह भी प्रकांड विद्वान हैं। ज्यादातर बड़े मुहूर्त दोनों भाई मिलकर ही निकालते हैं।
ग्रह, नक्षत्र, चौघड़ियों का पंडित गणेश्वर शास्त्री से बड़ा देश में कोई जानकार नहीं है। बड़े से बड़े मुहूर्तों के धर्मसंकट से निकालने का हुनर भी यह जानते हैं। यहां उनकी अपनी शास्त्रार्थशाला है। उनके परदादा ने दक्षिण से यहां आकर इसकी शुरुआत की थी। कहते हैं उनके दादा जब काशी पहुंचे तो यहां के पंडितों ने उनकी बकायदा परीक्षा ली थी, तब जाकर उन्हें काशी में रहने का मौका मिला था। यहां बच्चों को आचार्य बनने और कर्मकांड की पढ़ाई भी करवाई जाती है। शहीद राजगुरु यहां के स्टूडेंट रह चुके हैं।
राजेश्वर शास्त्री के द्वितीय पुत्र गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ वेदशास्त्र के विद्वान हैं। धर्मप्रचार के लिए वे भारत वर्ष में बीच-बीच में भ्रमण करते रहते हैं। काशी में रहने पर अध्यापन भी करते हैं। सांग्वेद विद्यालय स्थित गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा द्वारा दी जाने वाली व्यवस्थाओं (निर्णयों) वे प्रमुख रूप से करते हैं। लोगों की समस्या के निराकरण के लिए ज्योतिष, आयुर्वेद एवं कर्मकांड के विषय में भी वह मार्गदर्शन नि:स्वार्थ भाव से करते हैं। इस कार्य में द्रविड़ वंश का मुख्य योगदान रहा है।
गणेश्वर शास्त्री के अनुसार 22 जनवरी सबसे बढ़िया दिन है। इस दिन किसी भी मुहूर्त में दोष उत्पन्न करने वाले पांच बाण रोग बाण, मृत्यु बाण, राज बाण, चोर बाण और अग्नि बाण का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। ये पांचों बाण अपने नाम के अनुरूप प्रभाव छोड़ते हैं। 22 जनवरी को भी केवल 84 सेकेंड ऐसे हैं जब प्राण प्रतिष्ठा अति उत्तम बताई है। गणेश्वर शास्त्री के अनुसार दोपहर 12:29:08 बजे से 12:30:32 बजे तक का मुहूर्त दिया गया है।
तमिलनाडु के तिरुविशनल्लूरु से आए थे दादा
गणेश्वर शास्त्री के अनुसार हम लोगों के परदादा राम सुब्रमण्य घनपाठी थे। बोलचाल में उनका नाम रामचंद्र शास्त्री था। तमिलनाडु में कुम्भकोणम बहुत बड़ा तीर्थ स्थान है। कुम्भकोणम के पास एक मध्यार्जुन क्षेत्र हैं। शिव के 108 शिवक्षेत्र हैं उनमें एक मध्यार्जुन क्षेत्र हैं। पार्वती जी ने वहां तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव अर्जुन के वृक्ष से प्रकट हुए थे। अर्जुन के वृक्ष को हिंदी में काहू कहते हैं। संस्कृत में अर्जुन कहते हैं। उसका व्यवहार में उस तिरुविडमरुपूरु वर्तमान में उसका नाम है। इस क्षेत्र के पास एक स्थान है उसका नाम तिरुविशनल्लूरु का स्थान है। वहां एक बड़े सत्पुरुष हुए श्रीधर स्वामी अइयावाट, वहां अब भी वार्षिक मेला लगता है। उस गांव में हमारे पूर्वज रहते थे।
दादा पहली बार पैदल ही काशी आए थे
परदादा जी के पिता का नाम वेंटकर शेषाद्रि था। उनके सुपुत्र थे राम सुब्रमण्य घनपाठी। दो सौ साल पहले दक्षिण भारत में कृष्णयजुर्वेद के दो आधिकारिक शीर्ष विद्वान थे। एक तो राम सुब्रमण्य घनपाठी और दूसरे मुत्तु घनपाठी। आज दक्षिण भारत में कृष्णयजुर्वेद के जितने भी विद्वान हैं इन्हीं दो विद्वानों की परंपरा में आते हैं। तीसरा कोई नहीं थे जो बहुत बड़े विद्वान रहे हों और सभी को पढ़ाया भी हो। रामसुब्रमण्य घनपाठी, शेषजटावल्लव की पद्वी मिली थी, वह वहां से पैदल प्रयाग आए। उस गांव से वहां से गंगा जल लेकर पैदल रामेश्वर गए। रामेश्वर भगवान को गंगाजल अर्पित किया। फिर वहां से राम सेतु का बालू लेकर काशी आए। छह महीने में पैदल आए थे। ऐसा कहते हैं।
36 दिन तक काशी के विद्वानों ने ली परीक्षा
काशी में उनका 36 दिन तक काशी के विद्वानों ने परीक्षा ली गई। मंत्रपाठ में वह कहीं नहीं चूके। यहां मान्यता हो गई कि बहुत बड़े विद्वान हैं। वे यहां पर मणिकर्णिका घाट के पास रहते थे। बिना मांगे जो मिले उसी से निर्वाह करते थे। मणिकर्णिका घाट पर दिन भर कृष्णयजुर्वेद का घनपारायण और विष्णु सहस्रनाम का पारायण किया करते थे। दशाश्वमेध घाट से सब्जी बेचने वाली महिलाएं जब शाम को घर जाने के लिए वापस उतरतीं तो जो सब्जी आदि बची रहती उन्हें दे देतीं। उसी को सफा करके रात में पका कर खाते थे।
चार बेटे सभी विद्वान
उनके चार पुत्र हुए सबसे बड़े सीताराम शास्त्री थे। वह न्याय के बहुत बड़े विद्वान थे। दूसरे पुत्र का नाम लक्ष्मण शास्त्री था। वह न्याय, वेदांत और शुक्लयजुर्वेद के विद्वान थे। तीसरे पुत्र नारायण शास्त्री थे जो पुराण आदि के विद्वान थे। चौथे पुत्र वेंकटेश शास्त्री अंग्रेजी और इतिहास के विद्वान थे। राम सु्ब्रमण्य घनपाठी ने जब उनके दूसरे पुत्र लक्ष्मण शास्त्री को 14 वर्ष की अवस्था तक वेद पढ़ाया। कैलाश चंद्र शिरोमणि महाशय के सानिध्य में न्याय शास्त्र का अध्ययन किया। महामहोपाध्याय सुब्रमण्य शास्त्री जो मैसूर से आए थे, उनकी कन्या अन्नपूर्णा के साथ लक्ष्मण शास्त्री का विवाह करा के राम सुब्रमण्य शास्त्री ने स्वयं संन्यास ग्रहण कर लिया। अगले 20 वर्ष तक उत्तराखंड में रहे। उन दिनों ऐसी मान्यता था कि बदरीनारायण कोई जाता है तो वापस आएगा या नहीं लेकिन वह बीस साल बाद पुन: काशी आए।