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अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस के 28 साल पुराने मामले में फैसला कल, 49 आरोपियों में 17 की हो चुकी है मौत 

अयोध्या में ढांचा विध्वंस के 28 साल पुराने मामले में फैसले की घड़ी आ गई है। छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहाने के कथित षड्यंत्र, भड़काऊ भाषण और पत्रकारों पर हमले के 49 मुकदमों में सीबीआई की विशेष...

अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस के 28 साल पुराने मामले में फैसला कल, 49 आरोपियों में 17 की हो चुकी है मौत 
हिन्दुस्तान ब्यूरो,लखनऊTue, 29 Sep 2020 07:51 PM
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अयोध्या में ढांचा विध्वंस के 28 साल पुराने मामले में फैसले की घड़ी आ गई है। छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहाने के कथित षड्यंत्र, भड़काऊ भाषण और पत्रकारों पर हमले के 49 मुकदमों में सीबीआई की विशेष अदालत बुधवार को अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाएगी। इन बीते 28 वर्षों में 49 अभियुक्तों में से 17 की मृत्यु हो चुकी है। लगभग पचास गवाह भी दुनिया से विदा हो चुके हैं। पूरी दुनिया की निगाह लखनऊ की विशेष सीबीआई कोर्ट के इस आने वाले फैसले पर लगी हुई है।

क्या है यह अहम मामला 
केस नंबर 197
छह दिसम्बर, 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा  पूरी तरह ध्वस्त होने के बाद राम जन्मभूमि, अयोध्या के थाना प्रभारी पीएन शुक्ल ने शाम पांच बजकर 15 मिनट पर लाखों अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में मुकदमा कायम किया। इसमें बाबरी मस्जिद गिराने का षड्यंत्र, मारपीट और डकैती शामिल है।
केस नंबर 198
6 दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचे के सम्पूर्ण विध्वंस के लगभग 10 मिनट बाद एक अन्य पुलिस अधिकारी गंगा प्रसाद तिवारी ने आठ लोगों के खिलाफ मुकदमा कायम कराया। उन पर राम कथाकुंज सभा मंच से धार्मिक उन्माद भड़काने वाला भाषण देकर ढांचा गिरवाने का आरोप लगाया। इसमें अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा नामजद आरोपी बनाए गए। भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए ,153बी, 505, 147 और 149 के तहत यह मुकदमा रायबरेली में चला। बाद में इसे लखनऊ सीबीआई कोर्ट में चल रहे मुकदमे में शामिल कर लिया गया। 

गिरफ्तारी के बाद आडवाणी ललितपुर में रखे गए 
विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद अयोध्या में  विवादित स्थल पर बनाए गये अस्थायी राम मंदिर सी मुकदमे के आधार पर पुलिस ने 8 दिसम्बर 1992 को आडवाणी व अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया था।  शांति व्यवस्था की दृष्टि से उन्हें ललितपुर में माताटीला बांध के गेस्ट हउस में रखा गया। इस मुकदमे की जांच उत्तर प्रदेश पुलिस की सीआईडी क्राइम ब्रान्च ने की।  सीआईडी ने फरवरी 1993 में आठों अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी। मुकदमे के ट्रायल के लिए ललितपुर में विशेष अदालत स्थापित की गई।  बाद में आवागमन की सुविधा के लिए यह अदालत रायबरेली ट्रांसफर कर दी गई।

पत्रकारों पर हमले के मामले
इन मामलों के अलावा पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने मारपीट, कैमरा तोड़ने और छीनने आदि के 47 मुकदमे अलग से कायम कराए।  ये मामले लखनऊ सीबीआई कोर्ट से जुड़े रहे। सरकार ने बाद में सभी केस सीबीआई को जांच के लिए दे दिए।  सीबीआई ने रायबरेली में चल रहे केस नंबर 198 की दोबारा जाँच की अनुमति अदालत से ली।  उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 सितम्बर 1993 को नियमानुसार हाईकोर्ट के परामर्श से 48 मुकदमों की सुनवाई के लिए लखनऊ में विशेष अदालत के गठन की अधिसूचना जारी की। लेकिन इस अधिसूचना में केस नंबर 198 शामिल नहीं था, जिसका ट्रायल रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में चल रहा था।

ये हैं 32 अभियुक्त
लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कल्याण  सिंह, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, महंत नृत्य गोपाल दास, डॉ. राम विलास वेदांती, चंपत राय, महंत धर्मदास, सतीश प्रधान, पवन कुमार पांडेय, लल्लू सिंह, प्रकाश वर्मा, विजय बहादुर सिंह, संतोष  दुबे, गांधी यादव, रामजी गुप्ता, ब्रज भूषण सिंह, कमलेश्वर त्रिपाठी, रामचंद्र, जय भगवान गोयल, ओम प्रकाश पांडेय, अमरनाथ गोयल, जयभान सिंह पवैया, स्वामी साक्षी महाराज, विनय कुमार राय, नवीन भाई शुक्ला, आरएन श्रीवास्तव, आचार्य धर्मेंद्र देव, सुधीर कुमार कक्कड़ व धर्मेंद्र सिंह गुर्जर।

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