अयोध्या केस: विवादित जमीन पर साल 2010 में हाईकोर्ट ने दिया था ये फैसला
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद की मैराथन बुधवार को 40वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई है और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने कहा कि आवेदनों में बदलाव पर पक्षकारों से लिखित में तीन दिन...
अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद की मैराथन बुधवार को 40वें दिन की सुनवाई पूरी हो गई है और सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत ने कहा कि आवेदनों में बदलाव पर पक्षकारों से लिखित में तीन दिन में जवाब मांगा है। ये फैसला 17 नवंबर से पहले आ जाएगा क्योंकि सीजेआई उस दिन रिटायर हो रहे हैं।
आपको बता दें कि 30 सितंबर 2010 को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति एसयू खान और न्यायमूर्ति डीवी शर्मा की बेंच ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुनाया था। फैसला हुआ कि अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ भूमि के तीन बराबर हिस्सा किए जाएं।
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फैसले में राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को दिया गया। राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया गया और बाकी बचा हुआ तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया। बेंच ने इस फैसले के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ही आधार माना था। इसके अलावा भगवान राम के जन्म होने की मान्यता को भी फैसले में शामिल किया गया था।
हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा था कि साढ़े चार सौ साल से मौजूद एक इमारत के ऐतिहासिक तथ्यों की भी अनदेखी नहीं की जा सकती, लेकिन कोर्ट के इस फैसले को अयोध्या विवाद से जुड़े किसी भी पक्ष ने नहीं माना।
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