ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News उत्तर प्रदेशअटल के गढ़ लखनऊ को 28 सालों में कोई नहीं भेद पाया

अटल के गढ़ लखनऊ को 28 सालों में कोई नहीं भेद पाया

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के गढ़ लखनऊ को 28 सालों में भी कोई भी राजनीतिक दल नहीं भेद सका है। महापौर का चुनाव हो या पार्षद का। विधायक का चुनाव हो या फिर सांसद का। चुनाव दर चुनाव...

अटल के गढ़ लखनऊ को 28 सालों में कोई नहीं भेद पाया
लखनऊ। विजय वर्मा Sun, 24 Mar 2019 10:36 AM
ऐप पर पढ़ें

पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी बाजपेयी के गढ़ लखनऊ को 28 सालों में भी कोई भी राजनीतिक दल नहीं भेद सका है। महापौर का चुनाव हो या पार्षद का। विधायक का चुनाव हो या फिर सांसद का। चुनाव दर चुनाव बीजेपी यहां अपने विरोधियों को पटखनी देती रही है। अटल की तैयार की गयी जमीन से आज भी बीजेपी यहां फसल काट रही है। समय के साथ बीजेपी लखनऊ में लगातार मजबूत होती गई है। वर्ष 2014 में मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने यहां से जीत हासिल की। राजनाथ सिंह ने इस चुनाव में अटल बिहारी बाजपेयी के जीत के अन्तर के रिकार्ड को भी तोड़ दिया।  
लखनऊ को आज भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की कर्मस्थली के रूप में जाना जाता है। वह लखनऊ से पांच बार सांसद चुने गए। अटल से पहले लखनऊ में कभी बीजेपी चुनाव नहीं जीती थी। पहले इसे कांग्रेस के गढ़ के रूप  में जाना जाता था। हालांकि 1989 के चुनाव में जनता दल के मान्धाता सिंह ने दाऊ जी को हराकर जीत दर्ज की थी। इससे पहले 1984 व 1980 के च़ुनावों में कांग्रेस की शीला कौल यहां से सांसद रही हैं। उस समय इसे कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। वर्ष 1991 में अटल बिहारी बाजपेयी के कदम रखने के बाद बीजेपी लगातार मजबूत होती गयी। 

राजनाथ सिंह आज लखनऊ में, 5 कार्यक्रमों में होंगे शामिल

अटल ने खुद तोड़े अपने रिकॉर्ड

खुद अटल बिहारी बाजपेयी अपने ही बनाए रिकार्ड को तोड़ते रहे। वर्ष 1991 में जहां उन्होंने एक लाख 17 हजार 303 वोटों से जीत दर्ज की वहीं 1996 के चुनाव में अपने इस रिकार्ड को तोड़ दिया। इस चुनाव में उन्होंने राज बब्बर को एक लाख 18 हजार 671 वोटों से परास्त किया। 1998 के चुनाव में उन्होंने समाजवादी पार्टी के मुजफ्फर अली को दो लाख 16 हजार से ज्यादा वोटों से हराकर सीट को और मजबूत किया। हालांकि 1999 के चुनाव में कांग्रेस के डॉ. कर्ण सिंह ने उन्हें कड़ी चुनौती दी लेकिन वह भी हार गए। यह चुनाव अटल ने एक लाख 23 हजार से ज्यादा वोटों से जीता। 2004 के लोक सभा चुनाव में अटल बिहारी बाजपेयी ने फिर अपने ही सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इस चुनाव में उन्होंने सपा की मधु गुप्ता को दो लाख 18 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया। लखनऊ अटल व बीजेपी का किला बनता गया जिसे आज तक कोई दल भेद नहीं सका है।

नगर निगम के चुनावों में भी चला जादू

अटल के गढ़ का फायदा बीजेपी को केवल सांसद व विधायकी के चुनावों में ही नहीं मिला बल्कि नगर निगम के चुनावों में भी खूब मिला। लखनऊ के महापौर की सीट पिछले करीब 22 सालों से भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। लखनऊ से बीजेपी के टिकट पर डॉ. एससी राय दो बार महापौर चुने गए। उनके बाद दो बार डॉ. दिनेश शर्मा बीजेपी के टिकट पर रिकार्ड वोटों से जीते।  वर्ष 2017 के चुनाव में भी बीजेपी ने महापौर की सीट पर कब्जा बरकरार रखा। डॉ. एससी राय व दिनेश शर्मा की तुलना में कमजोर मानी जा रहीं संयुक्ता भाटिया को भी यहां की जनता ने महापौर बनाया। उन्होंने  एक लाख 31 हजार से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज की। पिछले 22 सालों में पार्षदी चुनाव में भी बीजेपी का ही दबदबा रहा है।  

नरेन्द्र मोदी को ही देश का प्रधानमंत्री बनना चाहिए : कल्याण सिंह

राजनाथ सिंह ने तोड़े रिकार्ड

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ लोक सभा सीट से जीत दर्ज कर सारे रिकार्ड तोड़ दिए।  राजनाथ सिंह को 2014 के चुनाव में पांच लाख 61 हजार 106 वोट मिले। उनकी विरोधी कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को केवल दो लाख 88 हजार 357 वोट मिले। इस तरह राजनाथ सिंह ने दो लाख 72 हजार 749 वोटों से जीत दर्ज की। इस जीत ने साबित कर दिया कि अटल का गढ़ कमजोर नहीं, बल्कि और मजबूत हुआ है। 

अटल के नाम पर लालजी टण्डन जीते

पूर्व प्रधानमंत्री अटल के चाहने वालों ने उनके मित्र के रूप में पहचाने जाने वाले लालजी टण्डन को भी जिताया। पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है कि लालजी टण्डन अटल का खड़ाऊं लेकर मैदान में उतरे थे। स्थितियां ठीक नहीं थीं। उनके खिलाफ कांग्रेस ने रीता बहुगुणा जोशी व बीएसपी के अखिलेश दास मैदान में थे। चुनौती बड़ी थी। अखिलेश दास ने इस चुनाव को जीतने के लिए बहुत मेहनत की। तब लालजी टण्डन ने करीब 41 हजार वोटों से जीत दर्ज की।

लोकसभा चुनाव 2019: योगी आदित्यनाथ 26 मार्च को गोरखपुर में करेंगे जनसभा


 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें