ज्ञानवापी मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली अर्जी खारिज
ज्ञानवापी प्रकरण में मूल ढांचे में छेड़छाड़ पर मुकदमा दर्ज करने की मांग के साथ दायर अर्जी को खारिज कर दिया है। स्पेशल सीजेएम की अदालत में अर्जी खारिज होने के बाद जिला जज के कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी।
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जिला जज अजयकृष्ण विश्वेश की अदालत ने ज्ञानवापी प्रकरण में मूल ढांचे में छेड़छाड़ पर मुकदमा दर्ज करने की मांग के साथ दायर अर्जी को खारिज कर दिया है। स्पेशल सीजेएम की अदालत में अर्जी खारिज होने के बाद जिला जज के कोर्ट में निगरानी अर्जी दाखिल की गई थी। अदालत ने गत 23 जून को सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रख लिया था।
वादी जितेंद्र सिंह बिसेन की ओर से अधिवक्ता शिवम गौड़, अनुपम द्विवेदी और मान बहादुर सिंह ने 30 मई को जिला जज की अदालत में निगरानी अर्जी दाखिल की थी। अर्जी के अनुसार प्राचीन मंदिर हटाने के लिए मुगल बादशाहों ने तोड़ने की कोशिश की। बाद में बच्चे हिस्से को पेंटिंग व चूना कर मौलिक पहचान मिटाने का प्रयास किया गया जो उपासनास्थल अधिनियम-1991 की धारा-3 का उल्लंघन है। चूंकि इस क्षेत्र का प्रबंधन अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के पास है, लिहाजा मसाजिद कमेटी के पदाधिकारियों के खिलाफ उपासनास्थल अधिनियम-1991 की धारा-3 (6) के तहत कार्रवाई की जाए।
अधिवक्ताओं ने अर्जी में यह भी बताया कि यह अर्जी स्पेशल सीजेएम की अदालत से खारिज हो चुकी है। अदालत ने अर्जी की गंभीरता को नहीं लिया और एक ही दिन की सुनवाई में खारिज कर दी। इसलिए लोअर कोर्ट के आदेश को खारिज कर मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया जाए। जिला जज ने 23 जून को अर्जी की ग्राह्यता पर सुनवाई की थी। अदालत ने कहा कि इसी प्रकरण का मूलवाद सिविल वाद के तहत दाखिल है जिस पर सुनवाई चल रही है। अर्जी के इन तथ्यों से कोर्ट अवगत भी है। करीब 20 मिनट तक बहस बाद अदालत ने आदेश सुरक्षित रख लिया था।
शुक्रवार को आए आदेश में अदालत ने कहा है कि निचली अदालत का आदेश तार्किक व विधि सम्मत है। क्योंकि वादी ने अर्जी के संबंध में कोई ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे विपक्षी पर आरोप को साबित कर सके। लिहाजा यह अर्जी सुनने योग्य नहीं है। उल्लेखनीय है कि वादी जितेंद्र सिंह बिसेन शृंगार गौरी प्रकरण में वादी राखी सिंह के चाचा और विश्व वैदिक सनातन संघ के मुखिया हैं।