अंशु ने यूनिवर्सिटी में दाखिले के बाद अपराध की दुनिया में रखा कदम, जानिए कैसे बन गया मेराज और मुकीम का जानी दुश्मन
उत्तर प्रदेश के सीतापुर का रहने वाला अंशु दीक्षित लखनऊ विवि में पढ़ाई के दौरान अपराधियों के संपर्क में आया। उसने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एसटीएफ पर गोलियां चलाई थीं। दिसम्बर...
उत्तर प्रदेश के सीतापुर का रहने वाला अंशु दीक्षित लखनऊ विवि में पढ़ाई के दौरान अपराधियों के संपर्क में आया। उसने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एसटीएफ पर गोलियां चलाई थीं। दिसम्बर 2014 में उसे गिरफ्तार किया गया था। कभी मुख्तार के लिए काम करने वाले अंशु ने शुक्रवार को चित्रकूट जेल में मुख्तार और मुन्ना बजरंगी के लिए काम करने वाले मेराजुद्दीन और मुकीम काला की हत्या कर दी। बताया जा रहा है कि मेराज की कुछ वर्षों से अंशु से तनातनी रहती थी।
मूल रूप से सीतापुर के मानकपुर कुड़रा बनी का रहने वाले अंशु ने अपराध की दुनिया में कदम छात्र सियासत के जरिए रखा था। बताया जा रहा है कि लखनऊ विश्वविद्यालय में वह छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री विनोद त्रिपाठी का साथी था लेकिन बाद में उसने ही उनकी हत्या कर दी थी। अंशु वर्ष 2008 में गोपालगंज (बिहार) के भोरे में अवैध असलहों के साथ पकड़ा गया था। करीब छह साल बाद पेशी से लौटते समय सीतापुर रेलवे स्टेशन पर सिपाहियों को जहरीला पदार्थ खिलाकर फायरिंग करते हुए वह फरार हो गया था। अंशु पर पुलिस ने 50 हजार का इनाम घोषित किया था। बाद में एक बार मुखबिर की सूचना पर भोपाल में यूपी, एमपी एसटीएफ और भोपाल क्राइम ब्रांच की संयुक्त टीम ने घेराबंदी की तो अंशु ने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी।
उस मुठभेड़ में एसटीएफ लखनऊ के सब इंस्पेक्टर संदीप मिश्र और क्राइम ब्रांच भोपाल के सिपाही राघवेंद्र गंभीर रूप से घायल हो गए थे। लखनऊ में गोरखपुर के तत्कालीन सभासद फैजी की हत्या और सीएमओ हत्याकांड में भी अंशु का नाम आया था, लेकिन केस में वह मुल्जिम नहीं बना था। अंशु ने फरारी के दौरान छह महीने तक भोपाल में डेरा डाल रखा था। वहां भी उस पर 10 हजार रुपए का इनाम पुलिस ने घोषित किया था।
मुख्तार गैंग के लिए असलहों का इंतजाम करता था मेराज
शुक्रवार को अंशु के हाथों चित्रकूट जेल में मारा गया अपराधी मेराजुद्दीन मूल रूप से वाराणसी का रहने वाला था। वह पहले मुन्ना बजरंगी बाद में मुख्तार अंसारी से जुड़ा। वाराणसी में सब उसे मेराज भाई के नाम से जानते थे। बताया जा रहा है कि वह मुख्तार अंसारी गैंग के लिए हथियारों का इंतजाम करता था। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर असलहों का लाइसेंस बनवाने का वह मास्टरमाइंड था। उसने पिछले साल अक्टूबर में जैतपुरा पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया था। मेराज के जरिए पुलिस को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बने नौ लाइसेंसी पिस्टलों और राइफल का पता चला था। बताया जा रहा है कि अंशु की मेराज से तनातनी तो थी ही मुकीम काला को मारने के लिए उसने सुपारी ले ली थी। इसी मकसद से उसने खुद का चित्रकूट जेल में ट्रांसफर कराया था। शुक्रवार को चित्रकूट जेल में उसने दोनों की हत्या कर दी। हालांकि बाद में खुद भी पुलिस के हाथों मारा गया।