बिकरू कांड में कुख्यात विकास के करीबी अमर की पत्नी खुशी दुबे की जमानत खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर के चर्चित बिकरू कांड में कुख्यात विकास दुबे के करीबी अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे की जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया है। कोर्ट ने जनवरी...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर के चर्चित बिकरू कांड में कुख्यात विकास दुबे के करीबी अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे की जमानत याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने दिया है। कोर्ट ने जनवरी माह में दाखिल जमानत याचिका पर लंबी सुनवाई के बाद गत एक जुलाई को फैसला सुरक्षित कर लिया था।
खुशी दुबे की जमानत के समर्थन में उसके अधिवक्ता प्रभाशंकर मिश्र ने कहा कि उसे को इस अपराध में फंसाया गया है, क्योंकि घटना से कुछ दिन पहले ही उसकी अमर दुबे से शादी हुई थी। वह नाबालिग है और उसका या उसके मां-पिता, भाई-बहनों का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। वह न तो विकास दुबे की सहयोगी थी और न ही उसके गिरोह की सदस्य थी। वह गलत जगह पर, गलत समय पर एक निर्दोष से ज्यादा कुछ नहीं थी।
पूरे एपिसोड में उसका जरा सा भी रोल नहीं था। उसके बारे में जो कुछ भी कहा गया है, वह पुलिस द्वारा पूरी तरह से मनगढ़ंत है। इसके अलावा कानून के उल्लंघन में एक बच्ची होने के कारण 2015 के अधिनियम की धारा 12(1) के तहत जमानत की हकदार है। खुशी को उसके पिता हर तरह के नैतिक, शारीरिक व मनोवैज्ञानिक खतरे से बचा सकते हैं। उसके पिता यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि जमानत पर रहते हुए वह किसी अपराधी के संपर्क में न आए।
दूसरी ओर अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा कि खुशी विकास दुबे और उनके गिरोह द्वारा किए गए भीषण अपराध के लिए कोई मूक दर्शक नहीं थी। उन्होंने उस भीषण घटना में जीवित बचे लोगों के बयानों के संदर्भ में इस बात पर जोर दिया कि खुशी पूरे हमले में सक्रिय भागीदार थी। वह किसी भी पुलिसकर्मी को नहीं बख्शने के लिए पुरुषों की सहायता कर रही थी और उन्हें उकसा रही थी। उन्होंने कहा कि खुशी नाबालिग है और बोर्ड ने ऐसा घोषित किया है, फिर भी उसकी आयु 16 वर्ष से अधिक है। बोर्ड ने प्रारंभिक मूल्यांकन पर यह माना है कि याची के पास अपेक्षित मानसिक और शारीरिक है। अपराध करने की क्षमता के साथ परिणामों को समझने की क्षमता भी है। मनीष गोयल ने बाराबंकी में सरकारी प्रेक्षण केंद्र बालिका में रखी गई याची के आचरण के संबंध में वहां के सहायक अधीक्षक द्वारा बोर्ड को संबोधित रिपोर्ट का हवाला दिया जिसमें यह कहा गया है कि वह अन्य लड़कियों को बताती है कि उसके बहुत प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ संपर्क हैं। वह बार-बार अन्य लड़कियों को धमकाती है कि वह केंद्र से किसी को भी कभी भी अगवा करा सकती है।
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि जिस घटना में याची शामिल थी, वह सामान्य प्रकार की नहीं थी। उसमें आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया गया और छह अन्य घायल हो गए। यह एक जघन्य अपराध है जो समाज की अंतरात्मा को झकझोर देता है। याची ने प्रथमदृष्टया घटना में सक्रिय रूप से भाग लिया है। इन परिस्थितियों में याची को जमानत पर रिहा करने की अनुमति देना निश्चित रूप से न्याय के लक्ष्य को परास्त कर देगा।
कोर्ट ने कहा कि केवल किशोर होने की घोषणा मात्र से कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर को अधिकार के रूप में जमानत पर रिहा करने का अधिकार नहीं है। अधिनियम का एक गंभीर उद्देश्य किशोर अपराधियों की बेहतरी हासिल करना है। कोर्ट ने कहा कि प्रावधान में उल्लिखित पहले दो आधारों पर ही विशेषाधिकार से वंचित किया जा सकता है कि रिहा होने पर किशोर को किसी ज्ञात अपराधी के साथ लाए जाने की संभावना है या रिहा किए जाने के परिणामस्वरूप किशोर के नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे के संपर्क में आने की संभावना है।
यह न्यायालय निरीक्षण गृह के सहायक अधीक्षक द्वारा रिपोर्ट किए गए याची के आचरण की भी अनदेखी नहीं कर सकता। सहायक अधीक्षक द्वारा जो कुछ भी रिपोर्ट किया गया है, वह कठोर अपराधियों के साथ याची के निरंतर घनिष्ठ संबंध को दर्शाता है, क्योंकि उसने अपने संसाधनों के अन्य लड़कियों को किसी को भी ऑब्जर्वेशन होम से अपहरण करने की धमकी दी है।