हम सीट मांग नहीं दे रहे हैं... क्या अखिलेश यादव के तेवर कांग्रेस के लिए संदेश
अखिलेश यादव लगातार बड़ा दिल दिखाने और त्याग की बात कर रहे हैं लेकिन अब कांग्रेसी हसरतों से सपा चौकन्नी हो गई है। दरअसल, कांग्रेस के कई नेता चाहते हैं कि UP में सीट बंटवारा 2009 के आधार पर हो।

Samajwadi Party in INDIA Alliance: इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे की कवायद चल रही है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में सीट बंटवारे का आधार क्या हो इसे लेकर नेताओं और पार्टियों के अलग-अलग नजरिए सामने आ रहे हैं। यूपी में अखिलेश यादव लगातार बड़ा दिल दिखाने और त्याग की बात कर रहे हैं लेकिन अब कांग्रेसी हसरतों से समाजवादी पार्टी चौकन्नी हो गई है। दरअसल, कांग्रेस के नेता चाहते हैं कि यूपी में सीट बंटवारा 2009 के लोकसभा चुनाव परिणाम के आधार पर हो जब उनकी पार्टी ने 21 सीटें जीती थीं। जाहिर है सपा के लिए ये मुश्किल है। हाल में अखिलेश के कड़े तेवरों के पीछे यही वजह बताई जा रही है।
बता दें कि दो दिन पहले अखिलेश यादव ने सीट बंटवारे पर कड़े तेवर दिखाते हुए कहा था कि समाजवादी पार्टी गठबंधन में सीट मांग नहीं रही है, सीट दे रही है। गठबंधन के सभी सहयोगी दलों से मिलकर सीटों पर बात हो जाएगी। अखिलेश ने इशारे-इशारे में कांग्रेस को 2019 के गठबंधन और उसमें कांग्रेस के प्रदर्शन की याद भी दिलाई। उस चुनाव में सपा और कांग्रेस साथ थीं। लेकिन उनके गठबंधन को सिर्फ 54 सीटों से संतोष करना पड़ा था। कांग्रेस 114 सीटों पर लड़ी थी जिनमें से सिर्फ सात सीटों पर उसे जीत मिली थी। जबकि समाजवादी पार्टी को 311 सीटों में से सिर्फ 47 सीटों पर जीत मिली थी। अखिलेश ने कहा कि हमने पहले भी गठबंधन किए थे और समाजवादी पार्टी ने त्याग किया था, इस बार लड़ाई बड़ी है। समाजवादी पार्टी सबको साथ लेकर चलेगी। हालांकि सीट बंटवारे पर भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य का बयान पहले आ चुका है। सीट बंटवारे को लेकर सपा प्रमुख ने कहा कि मुंबई की बैठक में तय हुआ है कि जिस राज्य में जो प्रमुख दल होगा, प्रस्ताव उसी को दिया जाएगा।
कांग्रेस की चाहत
इंडिया गठंधन में सीट बंटवारे को लेकर माना जा रहा है कि कांग्रेस उन 21 लोकसभा सीटों पर सबसे ज्यादा जोर लगाएगी, जिन पर 2009 के चुनाव में उसकी जीत हुई थी। हालांकि राजनीतिक जानकारों का कहना है तब से लेकर आज तक यूपी की जमीनी सच्चाई में काफी बदलाव हो चुका है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत बहुत बुरी नज़र आई। 2014 में जहां उसने सिर्फ दो सीटें जीतीं वहीं 2019 में कांग्रेस सिर्फ एक रायबरेली सीट पर ही जीत दर्ज कर सकी। यहां से सोनिया गांधी ने चुनाव जीता। यूपी की ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस मुकाबले में भी नज़र नहीं आई। सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को अमेठी में लगा जहां बीजेपी उम्मीदवार स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी से पार्टी की पारंपरिक सीट भी छीन ली।
कांग्रेस की चुनौती
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अब भी यूपी में कांग्रेस की हालत बहुत अच्छी नहीं हुई है। कई सीटों पर उसके पास प्रत्याशी तक के लाले पड़ सकते हैं। 2009 के चुनाव में कबरपुर, अमेठी, रायबरेली, बहराइच, फैजाबाद, फर्रुखाबाद, गोंडा, झांसी, बाराबंकी, बरेली, धौरहरा, डुमरियागंज, कानपुर, खीरी, कुशीनगर, महाराजगंज मुरादाबाद, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, सुल्तानपुर और उन्नाव सहित जिन 21 सीटों पर कांग्रेसी झंडा फहराया था उनमें से भी 18 सीटों पर भगवा फहरा रहा है। अकेले रायबरेली सीट के लिए चुनौती कड़ी होती जा रही है। दरअसल, 2009 के बाद यूपी में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से गिरता चला गया है। पिछले 14 सालों में पार्टी ने देश के इस सबसे बड़े राज्य में कई प्रयोग किए लेकिन सफलता नहीं मिली। धीरे-धीरे जगदंबिका पाल, आरपीएन सिंह, डॉ.संजय सिंह, जितिन प्रसाद और अन्नू टंडन सरीखे पार्टी के कई पुराने नेताओं ने दूसरी पार्टी की राह पकड़ ली या फिर राजनीति से दूर होते चले गए। अब इन हालात में पार्टी के सामने 2024 से पहले अपने संगठन को दोबारा खड़ा करना और बूथ स्तर तक मजबूत टीम गठित करना बड़ी चुनौती है। हालांकि सीट बंटवारे में 2009 के पैमाने को आधार बनाने के हिमायती पार्टी के कई नेता मानते हैं कि पिछले एक साल में राहुल गांधी की सक्रियता और कार्यक्रमों की वजह से कांग्रेस की स्थिति में काफी सुधार हुआ है और ऐसे में INDIA गठबंधन के बैनर तले यदि उसके ज्यादा उम्मीदवार मैदान में उतरते हैं तो एक बार फिर कई सीटों पर जीत का परचम लहराया जा सकता है।
