कोयला खनन और रेलवे दोहरीकरण कार्य से हुआ वनक्षेत्र कम
अनपरा। निज संवाददाता ऊर्जांचल के वन क्षेत्र में आयी कमी का मुख्य कारण एनसीएल...
अनपरा। निज संवाददाता
ऊर्जांचल के वन क्षेत्र में आयी कमी का मुख्य कारण एनसीएल खदानों को दी गयी जमीनों में तेजी से हो रहा कोयला खनन ओर रेलवे आदि की दोहरीकरण की चल रही परियोजनाओं का माना जा रहा है। प्रभागीय वनाधिकारी रेनुकूट वन प्रभाग मनमोहन मिश्र को भेजी रिपोर्ट में यह जानकारी वनक्षेत्राधिकारी अनपरा ने सौंपी है। फारेस्ट कवर मैपिंग की 17 वीं साइकिल(इंडिया स्टेट आफ फारेस्ट रिपोर्ट 2021)में सोनभद्र में ग्रीन फारेस्ट की भारी कमी को लेकर हो रही जां च में यह बात सामने आयी है। बीते 15 जनवरी को डीएफओं रेनुकूट ने सभी वन क्षेत्राधिकारियों को पत्र लिखकर रिपोर्ट पर पूरी कैफियत तलब की थी। वनक्षेत्राधिकारी अनपरा नवीन राय ने बताया कि सेटेलाइट से की गयी जांच में जीपीएस द्वारा दर्शाये गये वन विहिन क्षेत्रों की पड़ताल की गयी। लगभग 23 जगहों पर की गयी जांच में अधिसंख्य स्थान जहां आवरण कम हुआ है वह एनसीएल को कोयला खनन को स्थानान्तरित की गयी कुल 2010.42 हैक्टेयर वन भूमि के पाये गये है। इनमें परासी,मर्रक,मिसरा,भैरवा, बासी आदि स्थानो ं पर रिपोर्ट के आधार पर जांच की गयी है। खदानों के अतिरिक्त कुछ स्थान रेलवे को दोहरीकरण के लिये दी गयी वनभूमि के भी सामने आये है। रेलवे का शक्तिनगर से लेकर करैला रोड तक ट्रैक दोहरीकरण का कार्य जारी है। विभागीय अधिकारियों का यह तर्क है कि औद्योगिकीकरण विशेषकर कोयला खनन में पौधरोपण से आच्छादित करने में समय लगता है जबकि सेटेलाइट से किये गये सर्वेक्षण की रिपोर्ट अ ौर डिप्टी डायरेक्टर एफसीएम भारतीय वन सर्वक्षण के पूछे गये सवालों का कम से कम ऊर्जांचल में प्रमुख कारण खनन व अन्य रेलवे आदि के कार्य ही है।