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दुलर्भता का चिंतन करेंगे तभी पता चलेगी अहमियत

प्रवचन महमूदाबाद। जीव अनंतकाल तक अनेक योनियों में जन्म-मरण धारण करता हुआ महान...

दुलर्भता का चिंतन करेंगे तभी पता चलेगी अहमियत
Newswrap हिन्दुस्तान, सीतापुरSun, 23 May 2021 09:34 PM
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प्रवचन

महमूदाबाद। जीव अनंतकाल तक अनेक योनियों में जन्म-मरण धारण करता हुआ महान पुण्य के योग्य से मनुष्य पर्याय प्राप्त करता है। इस मनुष्य पर्याय को प्राप्त करके सतत इसकी दुलर्भता का चिंतन करते रहना चाहिए। जब तक किसी वस्तु की दुर्लभता का चिंतन नहीं आता, तब तक मूल्यवान प्रतीत नहीं होती, उसका उपयोग किस प्रकार करना चाहिए इसका विचार नहीं आता। मनुष्य पर्याय की दुलर्भता का बोध होते ही इस पर्याय का एक-एक मिनट कीमती हो जाता है, वो जीव अपने एक-एक क्षण का सही उपयोग करना चाहता है। एक भी क्षण व्यर्थ खोना नहीं चाहता।

यह बात स्थानीय दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान भावलिंगी संत राष्ट्रयोगी श्रमणाचार्य विमर्श सागर महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि इस श्रेष्ठ मनुष्य पर्याय को प्राप्त करके हमें इस बात का चिंतन अवश्य ही करना चाहिए कि इस छोटे से दुर्लभ जीवन में हमारा क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य अर्थात् करने योग्य कार्य कौन सा है और नहीं करने योग्य क्या है। हमें सतत अतीत की पर्यायों के दुख, पीडाएं स्मृति में आनी चाहिए तभी इस पर्याय की दुलर्भता का सम्यक बोध होगा। जिस प्रकार एक अत्यंत गरीब परिवार का बेटा, अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में जैसे-तैसे पढ़ लिखकर जब किसी योग्य ओहदे या पद पर पहुॅंचता है तो उसे अपना अतीत पल पल याद आता है। सभी अनुकूलताओं के बीच रहता हुआ भी वो कभी अतीत की प्रतिकूलताओं को विस्मृत नहीं करता और पूरी ईमानदारी के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करता है। व्यक्ति कितनी भी बड़ा क्यों न हो जाये उसे कभी अपनी औकात नहीं भूलना चाहिए इससे दूसरों की पीड़ाओं का भी अनुभव बना रहता है। अतीत पर्यायों की दुखमय स्मृति और वर्तमान पर्याय की दुलर्भता का बोध हमें हर कदम पर सचेत रखता है। अनुकूलताओं में गाफिल नहीं होने देता। पुण्य कर्म के उदय से प्राप्त सभी प्रकार के सुख संसाधन, अनुकूलताऍं, उपयोग करने के लिये हैं, भोग और उपयोग करने के लिये नहीं। ये थोड़ा सा समय भी हमने अगर इ्द्रिरय भोग, सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति में लगा दिया तो हमने अपने सथ बहुत बड़ा अन्यास कर दिया। अगर घर परिवार में सब कुछ अनुकूल हो, शारीरिक रूप से स्वस्थता हो और मानसिक रूप भी प्रशस्त हो तो आत्म कल्याण के विषय में अवश्य चिंतन करना चाहिए। अपनी शक्ति के अनुसार किसी योग्य सद्गुरू के निर्देशन में तप, व्रत आदि धारण करके कर्मश्रय का पुरूषार्थ करना चाहिए।

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