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आल्हा की पत्नी ने स्थापित किया था सोनासरि मंदिर

रेउसा। आशीष मिश्रा जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर गांजरी क्षेत्र के...

आल्हा की पत्नी ने स्थापित किया था सोनासरि मंदिर
हिन्दुस्तान टीम,सीतापुरWed, 14 Apr 2021 10:40 PM
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रेउसा। आशीष मिश्रा

जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर गांजरी क्षेत्र के कस्बा सेउता में स्थित मां सोनासरि देवी मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक है। मंदिर में वासंतिक नवरात्र के दौरान दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं। पूजा अर्चना कर देवी मां का आशीर्वाद लेते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुराद यहां पूरी होती है।

मंदिर के गर्भग्रह में स्थित पिंडी स्वरूप मां सोनासरि देवी की लाट आल्हा की पत्नी रानी सोनवा द्वारा स्थापित बताई जाती है। यह स्थान बिरया गढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां हीर सिंह और वीर सिंह दो भाई राजा हुआ करते थे। आल्हा ऊदल जिला महोबा के राजा परमाल के सेनानायक थे। उन्हें वीर सिंह से अनबन हो गई जिस कारण आल्हा ऊदल ने सेउता पर चढ़ाई कर दी। तीन माह तेरह दिन तक यहां भयंकर युद्ध हुआ लेकिन आल्हा ऊदल गांजर को फतह नहीं कर पाए तब महोबा में आल्हा ने गांजर जीतने के लिए मां भगवती की आराधना की। बताते हैं कि वहां से आकर मां भगवती निर्जन वन में पिंडी स्वरूप विराजमान हो गईं। आल्हा की पत्नी रानी सोनवा के नाम से ही सोनासरि देवी मंदिर का नाम पड़ा। यह ब्यौरा आल्हा छंद की किताब गांजर की लड़ाई में देखने को मिलता है।

नीम के पेड़ से निकली थीं देवी:

मंदिर के गर्भग्रह में मौजूद पिंडी स्वरूप मूर्ति नीम के पेड़ से निकली थी। इसे ऊपर उठाने के काफी प्रयास किए गए लेकिन बाधाएं आती रहीं। पिंडी को उठाने के प्रयास पर आल्हा की अंगुलियों के निशान पिंडी पर बताए जाते हैं। मंदिर के गर्भ ग्रह के चारों तरह रामजानकी, जगन्नाथपुरी, सन्तोषी मां,बजरंग बली, भगवान शिव, लक्ष्मी नारायण, राधा कृष्ण सहित देवी देवताओं के मंदिर स्थित हैं। मंदिर के मुख्यद्वार पर अर्जुन के रथ पर श्री कृष्ण सारथी के रूप में विराजमान हैं।

मुराद पूरी होने पर नेत्ररोगी चढ़ाते हैं चांदी की आंखें:

मंदिर के पुजारी मोहित तिवारी व प्रेम शुक्ला बताते हैं कि यहां पर हर मनोकामना पूर्ण होती है। कोरोना काल से पहले सैकड़ों लोग प्रतिदिन दर्शन करने यहां आते रहे हैं। लेकिन प्रत्येक अमावस्या, वासंतिक व शारदीय नवरात्र में भारी भीड़ होती थी। लेकिन इस बार कोरोना के भय से श्रद्धालुओं का आना कम हो गया है। मान्यता है कि यहां पर नेत्र रोग से पीड़ित लोग मुराद लेकर आते हैं। मुराद पूरी होने पर चांदी की आंखें चढ़ाते हैं। मंदिर की अनुपम छता बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

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