नहीं जलानी पड़ेगी पराली, खेतों में ही नष्ट हो जाएंगे अवशेष
:फसल अवशेष प्रबंधन प्रशिक्षण में कृषि वैज्ञानिकों ने दी जानकारी ज्ञानिक डॉ.डीपी सिंह ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से खेतों के पोषक तत्वों का नुकसान...
सोहना। हिन्दुस्तान संवाद
कृषि विज्ञान केंद्र सोहना में इन सीटू फसल अवशेष प्रबंधन योजना के तहत चल रहे पांच दिवसीय आवासीय प्रशिक्षण का शुक्रवार को समापन हो गया। इस दौरान कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को खेतों में पराली जलाए बगैर नष्ट करने के तरीके बताए।
वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ.डीपी सिंह ने बताया कि फसल अवशेष जलाने से खेतों के पोषक तत्वों का नुकसान होता है। इससे पर्यावरण के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। पशुओं के चारे पर भी संकट खड़ा हो जाता है। सीआरएम के प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ.प्रदीप कुमार ने धान की कटाई के बाद पराली प्रबंधन के लिए बायो डिकम्पोजर का घोल बनाने व छिड़काव करने के तरीके बताए। उन्होंने कहा कि डिकम्पोजर का प्रयोग किसी फसल के अवशेषों को मिट्टी में मिलाकर मृदा में जीवांश पदार्थ की मात्रा में बढ़ोतरी कर सकते हैं। डॉ.एसएन सिंह ने नई धान की फसल को खेत में ही डीकंपोज करने को कहा। उन्होंने बताया कि पूसा डीकम्पोजर एक ऐसा छोटा कैप्सूल है जो फसल अवशेषों को लाभदायक कृषि अपशिष्ट खाद में बदल देता है। एक कैप्सूल की कीमत सिर्फ 4-5 रुपये है और एक एकड़ खेत के अवशेष को उपयोगी खाद में बदलने के लिए केवल चार कैप्सूल की जरूरत होती है। डॉ.एसके मिश्र ने बताया कि फसल अवशेष कम्पोस्ट खाद बनाने में सहायक है जो कि मृदा की भौतिक, रासायनिक व जैविक क्रियाओं में लाभदायक है। मौसम विशेषज्ञ सूर्य प्रकाश सिंह ने फसल अवशेष प्रबंधन पर समसामयिक कार्य व मौसम के बारे में लोगों को जागरूक किया। इस मौके पर नीलम सिंह, दीप नारायण सिंह, अर्जुन सिंह यादव, प्रेम कुमार चौरसिया, याकूब, विक्रम, हजारी, राम निवास, सिकंदर,गफ्फार, राजमन आदि मौजूद रहे।