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सचित्र 23 एसआरए पीआईसी 7- भारत नेपाल सीमा पर कटान करती राप्ती, धारा में पड़ा

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हिन्दुस्तान टीम,श्रावस्तीSat, 23 Oct 2021 06:55 PM
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सचित्र

23 एसआरए पीआईसी 7- भारत नेपाल सीमा पर कटान करती राप्ती, धारा में पड़ा पेड़

फ्लैग- बाढ़ के बाद शुरू हो गया कटान का कहर, सीमा के पिलर पर मड़राया खतरा

सीमा के पिलर की ओर तेजी से काट रही राप्ती

कटान

- खतरे के निशान से नीचे आया जलस्तर, कटान में आयी तेजी

- पहले ही धारा में समा चुका है पिलर संख्या 642

जमुनहा संवाददाता

बाढ़ का खतरा कम होते ही कटान ने तेजी पकड़ ली है। कटान के कारण एक पिलर पहले ही धारा में समा चुका है और दूसरे पिलर की ओर तेजी से काट रही है। इससे ककरदरी मार्ग पर भी संकट पैदा हो गया है।

पिछले दिनों आयी राप्ती नदी की बाढ़ ने जिले में व्यापक तबाही मचाई है। बाढ़ के का कहर रुकने के बाद राप्ती अब तेजी से कटान करने लगी है। भारत नेपाल सीमा पर ककरदरी के पास कटान तेज हो गई है। भारत नेपाल सीमा पर लगा स्तंभ संख्या 642 पहले ही धारा में समा गया है। वहीं अब पिलर संख्या 641 पर खतरा मड़राने लगा है। पिलर संख्या 641 से धारा की दूरी 40 मीटर ही बची है। पिछले दो दिनों से कटान तेज है और करीब 20 मीटर तक नदी आगे बढ़ गई है। कटान के कारण ककरदरी को जाने वाला पगडंडी रास्ता बह गया है। स्तंभ के कट जाने से सीमांकन में परेशानी होती है। वहीं पर सरहद पर तैनात एसएसबी जवानों को गश्त करने में भी परेशानी होती है।

सीमा पर दोनों देशों के लोग करते हैं खेती

नेपाल सीमा के दोनों ओर भारत और नेपाल के किसान खेती करते हैं। जमुनहा के किसानों को खेती करने के लिए करीब 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। वहीं पर नेपाल के किसानों को भी खेती करने के लिए इतनी ही दूरी तय करनी पड़ती है। बाढ़ में फसल तो बही ही है। साथ ही कटान से खेत भी नदी में समा रहे हैं। पिछले तीन दिनों में सरहद के दोनों ओर के करीब 50 बीघा खेत नदी में समा चुके हैं। जिसमें ककरदरी, जमुनहा, बांसगढ़ी, कलकलवा के साथ ही नेपाल के गांव ककरदरी, भगवानपुर आदि गांवों के किसानों के खेत शामिल हैं। किसान परशुराम और नाथूराम ने बताया कि राप्ती की धारा जमुनहा के पास कभी इधर तो कभी उधर होती रहती है। पांच साल पहले धारा जमुनहा के करीब बह रही थी। लेकिन अब जमुनहा से पांच किलोमीटर दूर पहुंच गई है। नई और पुरानी धारा के बीच में पड़ी जमीन पर खेती में परेशानी होती है। कभी बाढ़ तो कभी कटान के कारण हजारों एकड़ की खेती प्रभावित होती रही है। इससे खेतिहर होते हुए भी इस क्षेत्र के किसान परेशान रहते हैं।

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