सौहार्द की मिसाल: क्षत्रियों के मंदिर में पूजा करते हैं दलित पुजारी
जात न पूछो साधु की, लेकिन यहां जाति बतानी बेहद जरूरी इसलिए है, क्योंकि उससे सौहार्द की मिसाल कायम होती...
जात न पूछो साधु की, लेकिन यहां जाति बतानी बेहद जरूरी इसलिए है, क्योंकि उससे सौहार्द की मिसाल कायम होती है। दरअसल दलितों को लेकर तमाम बातें लोगों को सुनने को मिलती हैं, लेकिन शाहजहांपुर जिले में एक स्थान ऐसा भी है, जहां दलितों का बड़ा सम्मान है। रोजा क्षेत्र के लोईखेड़ा स्थित ठाकुरद्वारा के पुजारी हमेशा दलित ही होते हैं। यह परंपरा मुगलकाल से पड़ी थी, जो अब तक चल रही है। इस वक्त यहां बारवें दलित पुजारी बाबा लक्कड़दास ठाकुरद्वारा और हनुमान मंदिर की सभी जिम्मेदारियों को निर्वाहन कर रहे हैं।
अयोध्या अखाड़ा के बाबा भरतदास डंकावाले के अधिकार क्षेत्र में लोईखेड़ा का स्थान आता है। वहीं से यहां पुजारी की नियुक्ति की जाती है। इस अखाड़े का प्रभाव क्षेत्र नैमिष भी है। नैमिष में भरतदास को डंकावाले बाबा के नाम से भी जानते हैं। उन्हीं के अंडर में ही लोईखेड़ा स्थान भी है। इस स्थान पर 1972 से बाबा लक्कड़दास पुजारी हैं। करीब 25 वर्ष की अवस्था में लक्कड़दास बाबा को लोईखेड़ा का पुजारी बनाया गया था, अब वह अस्सी साल के ऊपर हैं।
बाबा लक्कड़दास बताते हैं कि उनसे पहले यहां 11 पुजारी नियुक्त रहे, सभी पुजारी दलित ही रखे जाते हैं। उन्होंने बताया कि पूर्व में कभी यहां अन्य बिरादरी के पुजारी रखे गए, लेकिन उनके साथ कुछ न कुछ घटित ही होता रहा, ऐसा सुना जाता है। बाबा लक्कड़दास को अपने से पहले मोहनदास, प्रेमदास, गुलाबदास तक ही नाम याद है। लक्कड़दास बताते हैं कि उनके बाद नियुक्ति अखाड़े से ही होगी। उन्होंने कहा कि जीवन के 50 बरस तो लोईखेड़ा में काटते होने को आए, हमेशा ही उनका सभी ने आशीर्वाद लिया और उन्हें बराबर सम्मान मिला।
कनेंग गांव के शरद सिंह बताते हैं कि जब कभी लोईखेड़ा मंदिर में जब भी कोई अन्य पुजारी रखा गया, तो वहां उसके साथ घटना हो गई, लेकिन दलित पुजारियों के साथ कभी कोई भी घटना नहीं हुई। यह परंपरा मुगलकाल से है, इसलिए यहां हमेशा दलित पुजारी ही रहे हैं। शरद सिंह ही इस ठाकुरद्वारा के पुर्न उद्धार में समाज के अन्य लोगों के साथ लगे हैं। यह स्थान काफी ऊंचाई पर था, लेकिन माफियाओं ने यहां खनन करा कर मिटटी बेच डाली। करीब 60 बीघा जमीन ठाकुरद्वारा के नाम है, लेकिन काफी जमीन बाहर से आए लोगों ने कब्जा कर ली है। हालांकि इस स्थान को फिर से रमणीक और मनोहारी बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
====================
बाछिल राजपूतों से जुड़ा है लोईखेड़ा का इतिहास
=दरअसल लोईखेड़ा बाछिल राजपूतों की गढ़ी हुआ करती थी। कनेंग निवासी शरद सिंह बताते हैं कि शाहजहांपुर का इतिहास पुस्तक में पढ़ने को मिलता है कि मुगलकाल में शाहजहांपुर में बाछिल राजपूतों का राज्य था। यह बाछिल राजपूत किसी को भी राजस्व नहीं देते थे। तब कन्नौज के नवाब मिश्री खां और रोहेला सरदारों ने बाछिल राजपूतों के किले पर धावा बोल दिया। इस में बाछिलों का राज्य खत्म हो गया। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान बाछिल राजा की गर्भवती रानी अपने दो अन्य पुत्रों के साथ मायके में होने की वजह से बच गई थीं। उन्हीं बाछिल राज्य की एक गढ़ी रोजा क्षेत्र के गढ़ी में थी, जिसे अब लोईखेड़ा ठाकुरद्वारा के नाम से जाना जाता है। बाद में रानी के दो पुत्रों ने कांट क्षेत्र में 84 गांव और सबसे छोटे पुत्र ने रोजा क्षेत्र में बाछिल राजपूतों के 22 गांव बसाए।
