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रामपुर में हर तरफ था अफरा-तफरी का माहौल

15 अगस्त 1947 को पूरे देश में आजादी का जश्न मन रहा था, लेकिन रामपुर में उस दिन जश्न नहीं, बल्कि हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। कुछ लोग मुल्क की तरह...

रामपुर में हर तरफ था अफरा-तफरी का माहौल
हिन्दुस्तान टीम,रामपुरSat, 12 Aug 2023 11:20 PM
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15 अगस्त 1947 को पूरे देश में आजादी का जश्न मन रहा था, लेकिन रामपुर में उस दिन जश्न नहीं, बल्कि हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। कुछ लोग मुल्क की तरह रामपुर की भी आजादी की मांग कर रहे थे। वहीं कुछ खास लोग ऐसे भी थे जो रामपुर को पाकिस्तान में शामिल कराने की मांग कर रहे थे।
अंग्रेजों की गुलामी से देश भले ही 1947 में आजाद हो गया, लेकिन रामपुर को यह आजादी दो साल बाद मिली। यहां रामपुर नवाब का राज चलता रहा। 1949 में जाकर रामपुर आजाद हुआ। लेकिन, इससे पहले रामपुर में खासा बवाल हुआ। वरिष्ठ अधिवक्ता रहे स्वर्गीय शौकत अली खां न सिर्फ बताते थे बल्कि, उनके द्वारा लिखी गई किताब-रामपुर का इतिहास के अनुसार-रामपुर में 15 अगस्त 1947 को जश्न नहीं मना था, बल्कि लोग परेशान थे। यहां तीन अगस्त की शाम को कुछ लोगों ने रणनीति बनाई और चार अगस्त 1947 को रामपुर में वबाल हो गया।

सोची-समझी साजिश थी उस वक्त का बवाल

उस वक्त रामपुर में हुआ बवाल सोची समझी साजिश का हिस्सा थी। तब रजा अली नवाब थे और वशीर हुसैन जैदी रामपुर रियासत के मुख्यमंत्री थे, जबकि वली अहद (नवाब रजा अली खां के बड़े बेटे) मुर्तजा अली खां आर्मी चीफ थे। नवाब साहब और उनके बेटे में भी कुछ अनबन थी। इसी को लेकर चीफ मिनिस्टर वशीर हुसैन जैदी ने कुछ लोगों को उकसा दिया और वबाल हो गया।

हाईकोर्ट, तहसील और मालखाने को लगा दी आग

आक्रोशित लोगों ने उस समय रामपुर में स्थापित नवाबी हुकूमत के हाईकोर्ट, तहसील और मालखाने को भीड़ ने फूंक दिया था। नवाब ने बाहर से फौज बुलाई थी और 12 लोगों की जान चली गई थी। अनेक लोगों को जेल में बंद कर दिया गया था। इस कारण उनके परिजन परेशान थे।

-उस वक्त रामपुर में हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल था। पुरानी तहसील के पास बवाल हुआ था। इसी बवाल में शोर मचाते हुए दो लड़के भागे थे, जिन्हें गोली मार दी गई। रजा इंटर कालेज मैदान में उनकी कब्र आज भी हैं।

-नफीस अहमद सिद्दीकी, इतिहासकार

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