संभल में सरकारी अमला सोता रहा, प्राइवेट चिकित्सकों ने खोजे टीबी मरीज
देश को टीबी मुक्त बनाने की मुहिम में भागीदार बनकर संभल जनपद के प्राइवेट डाक्टरों ने शानदार काम किया है जबकि सरकारी अमला फिसड़डी साबित हुआ है। मंडल...

देश को टीबी मुक्त बनाने की मुहिम में भागीदार बनकर संभल जनपद के प्राइवेट डाक्टरों ने शानदार काम किया है जबकि सरकारी अमला फिसड़डी साबित हुआ है। मंडल की बात करें तो मुरादाबाद व बिजनौर के प्राइवेट डाक्टरों ने भी बेहतर काम किया है।
संभल जिले में टीबी मरीजों को नोटिफाईड करने में निजी डाक्टरों को भी भागीदार बनाया गया तो संभल जनपद के डाक्टरों ने शानदार काम करके दिखाया। यहां सरकारी डाक्टरों से बहुत ज्यादा प्राइवेट डाक्टरों ने टीबी मरीज नोटिफाई किए हैं। सेंट्रल टीबी डिविजन की वेबसाइट से प आंकड़ों पर अगर नजर डाली जाए तो पा चलता है कि प्रदेश के बड़े शहरों की तुलना में छोटे शहरों के प्राइवेट डाक्टरों ने टीबी मरीजों के नोटिफिकेशन में मिसाल पेश की है। आंकड़ों के मुताबिक इस साल पहली जनवरी से 29 अक्टूबर तक संभल जनपद में कुल 3841 मरीज नोटिफाई हुए हैं। जिसमें से 2186 मरीज प्राइवेट डाक्टरों की ओर से खोजे गए हैं। साफ है कि निजी डाक्टरों ने टीबी के खात्मे को जागरूकता दिखाई है, जबकि सरकारी अमला सुस्त साबित हुआ है। संभल के अलावा मथुरा जनपद में भी प्राइवेट डाक्टरों ने बढ़िया काम किया है। मथुरा में सरकारी अमले द्वारा 3290 तो प्राइवेट डाक्टरों द्वारा 6952 टीबी मरीज अब तक नोटिफाई किये गये हैं। ललितपुर में भी सरकारी और प्राइवेट डाक्टर टीबी मरीजों के नोटिफिकेशन में तकरीबन बराबर रहे हैं। मंडल की बात करें तो अमरोहा सबसे कम प्राइवेट चिकित्सक काम कर रहे हैं।
बहजोई। मुरादाबाद में इस साल सरकारी अमले द्वारा 5666 तो प्राइवेट डाक्टरों द्वारा 3481 टीबी मरीजों का ही नोटिफिकेशन किया गया है। बिजनौर में सरकारी में 5170 तो प्राइवेट में 2537, रामपुर में सरकारी में 4839 तो प्राइवेट में 1390, अमरोहा में सरकारी में 2083 तो प्राइवेट में 600 टीबी मरीजों का नोटिफिकेशन हुआ है।
प्राइवेट चिकित्सकों को इंसेंटिव का प्रावधान
बहजोई। जिला क्षय रोग अधिकारी संतोष कुमार का कहना है कि प्राइवेट डाक्टर को प्रति टीबी मरीज के नोटिफिकेशन पर 500 रुपये और सफलतापूर्वक इलाज पूरा होने पर 500 रुपये दिए जाते हैं।
वर्जन
केंद्र सरकार ने वर्ष 2018 में एक नोटिफिकेशन जारी किया था। इसके मुताबिक, सरकारी के अलावा निजी अस्पतालों के डॉक्टरों को भी टीबी के मरीजों का पूरा ब्योरा सरकार को देना होगा। कोई डॉक्टर मरीजों की रिपोर्ट छिपाता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 269/270 के तहत एफआईआर दर्ज करवाने का नियम है। इसमें छह माह से दो साल तक की सजा का प्रावधान है।
- डॉ संतोष कुमार सिंह, डीटीओ, संभल
