किसान छोड़ रहे गोवंशीय पशु, सरकारी खजाने पर बढ़ रहा बोझ
जनपद में आवारा गोवंशीय पशुओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। पशुपालक दूध नहीं देने व बांझ निकलने पर मादा गोवंशीय पशुओं के अलावा सांड को छोड़ देते...
जनपद में आवारा गोवंशीय पशुओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। पशुपालक दूध नहीं देने व बांझ निकलने पर मादा गोवंशीय पशुओं के अलावा सांड को छोड़ देते हैं। मगर इसका बोझ सरकारी खजाने पर पड़ रहा है। 82 गोशालाओं में मौजूदा समय में करीब 13 हजार गोवंशीय पशु हैं। हर महीने 1.17 करोड़ से अधिक रुपये का खर्चा हो रहा है। सहभागिता में करीब 1308 गोवंशीय पशु किसानों को दे रखे हैं। इनका खर्चा भी शासन द्वारा वहन किया जा रहा है।
वर्ष 2019 में शासन ने गांव-गांव घूम रहे गोवंशों को पकड़वाकर गोशालाओं में बंद करने के आदेश दिए थे। उस समय जनपद में बहुत कम संख्या में गोशालाएं थीं और इनमें गोवंशों की संख्या भी काफी कम थी। मगर उसके बाद से निरंतर जनपद में आवारा गोवंशीय पशुओं की संख्या में इजाफा होता रहा है, जो अब तक जारी है। किसान दूध नहीं देने, बांझ हो जाने पर गोवंशीय पशुओं को छोड़ देते हैं। सांडों के द्वारा काम नहीं होने के कारण उन्हें भी छोड़ा जा रहा है। इनके खर्चें का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ रहा है। करोड़ों रुपया जनपद में आवारा गोवंशीय पशुओं के लिए आ रहा है। 82 गोशालाओं में बंद गोवंशीय पशुओं पर एक साल में करीब 14 करोड़ से अधिक रुपये की धनराशि खर्च हो रही है। एक महीने में 1.17 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च हो रही है। यह बजट शासन से सीधा आ रहा है। एक पशु को प्रतिदिन 30 रुपये की खुराक मिलती हैं। इसमें भूसा, हरा चारा, खल व चोकर सहित अन्य चारा शामिल है।
वर्जन.......
जनपद में पहले 35 गोशालाएं थीं। जिनमें दिसंबर 2022 तक 5832 गोवंशीय पशु संरक्षित थे। इस वर्ष जिले में 82 गोशालाएं स्थापित हो चुकी हैं। 1308 गोवंशीय पशु सहभागिता में किसानों को दे रखे हैं। उन्हें भी हर महीने 900 रुपया शासन द्वारा दिया जा रहा है। जिले में सहभागिता में दिए पशुओं की संख्या को भी जोड़ दिया जाए, तो करीब 13 हजार आवारा गोवंशीय पशु संरक्षित हैं। शासन द्वारा अब चारे का बजट ग्राम पंचायतों को दिया जा रहा है। ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम प्रधान, सचिव व लेखपाल देख रहे हैं। ब्लाक स्तर पर खंड विकास अधिकारी और पशु चिकित्सा अधिकारी जबकि जिला स्तर पर सीडीओ और मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी इस कार्य को देख रहे हैं।
डा. तेजसिंह यादव, अपर निदेशक पशु चिकित्सा विभाग।