तीन तलाक का अध्यादेश मुसलमानों को नहीं मान्य: मौलाना महमूद मदनी
जमीयत उलेमा-ए-हिंद (महमूद मदनी गुट) के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने केंद्र सरकार के तीन तलाक के अध्यादेश को शरीयत में हस्तक्षेप...
जमीयत उलेमा-ए-हिंद (महमूद मदनी गुट) के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने केंद्र सरकार के तीन तलाक के अध्यादेश को शरीयत में हस्तक्षेप बताया। उन्होंने प्रेस को जारी विज्ञप्ति में कहा कि अध्यादेश भारतीय संविधान में मुसलमानो को दिए गए धार्मिक और शरई मामलों में दिए गए अधिकारों के खिलाफ है।
मौलाना महमूद मदनी ने अध्यादेश का विरोध जताते हुए कहा कि देश की किसी भी संसद को मुसलमानों के धार्मिक और शरई मामलो में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। इसलिए ऐसा कोई भी कानून या अध्यादेश जो सीधे शरीयत में हस्तक्षेप करता हो वह मुसलमानों को मान्य नहीं है।
उन्होंने सरकार को दो टूक चेतावनी देते हुए कहा कि मुसलमान हर स्थिति में शरीयत का पालन करता है और करता रहेगा। मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि उक्त अध्यादेश तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को साथ न्याय नहीं बड़े अन्याय का खतरा बनजाने की आशंका है। क्योंकि इस अध्यादेश से वह हमेशा के लिए त्रिशंकू बना जाएगी और दोबारा निकाह कर फिर से अपनी जिंदगी आरंभ करने के उनके रास्तें बंद हो जाएंगे।
मौलाना महमूद मदनी ने केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद के एक कथन पर आर्श्चय व्यक्त करते हुए कहा कि वह मात्र दो साल में देश भर 201 मामालो का हवाला देकर अध्यादेश को संवैधानिक अनिवार्य बता रहे हैं। मौलाना ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि 16 करोड़ मुस्लिमों की आबादी में एक वर्ष में मात्र 100 मामलो में उक्त अध्यादेश किसी सच्चाई को नहीं बल्कि सरकार हठधर्मिता और आमसहमति की शक्ति को रोंदने के बराबर है। मौलाना महमूद मदनी ने उक्त अध्यादेश को लोकतंत्र के लिए शर्मनाक बताते हुए केंद्र की असंसदीय और दूषित सोच का उदाहरण बताया। अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि सरकार जिस कौम के लिए कानून बना रही है उस कौम के दानिश्वरों और प्रतिनिधियों से सलाह मश्वरा किए बगैर कानून बना लागू कर रही है। जबकि शरीयत के विशेषज्ञों और संगठनों को नजर अंदाज कर अपनी मनमानी का सबूत दे रही है।