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करवा चौथ पर दिनभर निर्जल व्रत रख चंद्रमा को दिया अर्घ्य

हाथों में रची कलात्मक मेहंदी। सोलह श्रृंगार कर दुल्हन की तरह सजीं महिलाओं के समूह। किसी के हाथ में लाल तो किसी के हाथ हरी कांच की चूड़ियां। हाथ में करवा और आरती का थाल लेकर चंद्र दर्शन का इंतजार करते...

करवा चौथ पर दिनभर निर्जल व्रत रख चंद्रमा को दिया अर्घ्य
हिन्दुस्तान टीम,रामपुरMon, 09 Oct 2017 12:24 AM
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हाथों में रची कलात्मक मेहंदी। सोलह श्रृंगार कर दुल्हन की तरह सजीं महिलाओं के समूह। किसी के हाथ में लाल तो किसी के हाथ हरी कांच की चूड़ियां। हाथ में करवा और आरती का थाल लेकर चंद्र दर्शन का इंतजार करते महिलाओं के समूह। घरों के साथ पार्कों और मंदिरों में पूजा करने उमड़ी महिलाओं की भीड़। यह दृश्य था रविवार को को हुए करवा चौथ पूजन का। चंद्र दर्शन हुए चलनी ने झांककर चांद का दीदार किया। पति की आरती उतारकर किया करवा चौथ व्रत किया उद्यापन।

शिव पार्वती और गणेश भगवान की अर्चना

सुबह होते ही सुहागिन महिलाओं ने स्नान-ध्यान कर करवा चौथ व्रत करने का संकल्प लिया। संकल्प के बाद करवे में जल भरा। विधि-विधान से शिव-पार्वती के साथ गणेश भगवान की पूजा अर्चना की। विधि-विधान से पूजा अर्चना के बाद शिव पार्वती को आंवले का भोग लगाया। दिनभर पूजा करने का क्रम चलता रहा। पुरुषों ने भी महिलाओं के साथ व्रत धारण किया।

मंदिरों में उमड़ी भीड़, किया सामूहिक पूजन शाम होते ही मंदिरों में महिलाओं की भीड़ हो गई। जिला पंचायत मार्ग स्थित शिव मंदिर में सामूहिक पूजा हुई। चंद्र दर्शन से पहले शिव पार्वती की पूजा की गई। महिलाओं ने सामूहिक रूप से करवा चौथ व्रत की कथा सुनाई। एक महिला कथा पढ़ती तो समूह में बैठी महिलाएं सुनती। कथा के बाद चंद्र दर्शन होते ही अर्ध्य दिया। माईं का थान स्थित महामाया मंदिर, अग्रवाल धर्मशाला स्थित शक्ति दरबार, प्राचीन राधा कृष्ण मंदिर, आदर्श मैदान स्थित श्री हरि मंदिर, बगिया जोकीराम स्थित मंदिर, आवास विकास कालोनी स्थित नर्मदेश्वर मंदिर में सामूहिक पूजन किया गया।

निर्जल व्रत का आरती के बाद किया उद्यापन

दिनभर निर्जल व्रत करने के बाद शाम होते ही महिलाओं ने सजना-संवरना शुरू कर दिया था। चंद्र दर्शन होने से पहले घरों और परिवारों में सामूहिक पूजा की गई। चंद्र दर्शन होते ही चंद्रमा को चलनी से निहारा। चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद उतारी पति की आरती। सास स्वसुर के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। बड़ों और सास स्वसुर ने अखंड सौभाग्यवती रहने का आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद लेने के बाद बाद पति के चरण स्पर्श कर उनके हाथों जल ग्रहण कर व्रत का समापन किया।

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